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पत्रकार के खिलाफ एमजे अकबर की मानहानि के मुकदमे में कुछ यूं होंगे सारे दाव-पेंच

File photo of MJ Akbar.(PTI)

File photo of MJ Akbar.(PTI)

'आपराधिक मानहानि में आम तौर पर सबूत के लिए बहुत अधिक गुंजाइश नहीं है, बल्कि इसमें यह जरूरी होता है कि अभियुक्त द्वारा स ...अधिक पढ़ें

    यौन उत्पीड़न के आरोपों के चलते एमजे अकबर ने बुधवार को विदेश राज्यमंत्री पद से इस्तीफा  दे दिया. अकबर अब गुरुवार को वरिष्ठ महिला पत्रकार के खिलाफ दायर मुकदमे के मामले में दिल्ली की एक अदालत में होंगे. पत्रकार ने सोशल मीडिया पर केंद्रीय मंत्री के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली पहली महिला हैं. मामले की सुनवाई एडिशनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल के कोर्टरूम में होगी.

    इस पहले मानहानि का एक बड़ा मुकदमा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज पीबी सावंत ने दायर किया था, जिसमें उन्होंने वर्ष 2011 में एक समाचार चैनल के खिलाफ 100 करोड़ रुपए की मानहानि का दावा ठोका था. रिपोर्ट के मुताबिक उनकी लड़ाई पैसे के लिए नहीं थी, बल्कि मीडिया एथिक्स की थी. अगर उन्हें यह राशि मिल जाती तो वो उसे डोनेट करना चाहते थे.

    ब्रिटेन, श्रीलंका और अमेरिका सहित कई देशों ने मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा है. हालांकि भारत में औपनिवेशिक युग के बाद से मानहानि कानून में किसी भी तरह का कोई बदलाव नहीं हुआ है. यहां मानहानि के मामले दीवानी और आपराधिक दो तरीके से दायर किए जा सकते हैं. दीवानी मानहानि में वह व्यक्ति जिसे बदनाम किया जाता है, उच्च न्यायालय या अधीनस्थ अदालतों में जा सकता है और मुआवजे की मांग कर सकता है. वहीं, आपराधिक मानहानि में जिस व्यक्ति के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज किया गया है उसे दो साल की कारावास या जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है.

    अब, एमजे अकबर को आपराधिक मानहानि के मुकदमें को स्थापित करने लिए क्या साबित करना होगा? पहली शर्त है कि अपमानजनक बयान कहीं प्रकाशित होना चाहिए. मामला या तो लिखित या मौखिक रूप में प्रकाशित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसके बारे में कोई दूसरा व्यक्ति भी जानता है या किसी और ने भी सुना है.

    अगली शर्त यह साबित करना है कि इससे व्यक्ति की प्रतिष्ठा   को ठेस पहुंची है. यह मानहानि के मामले को सिद्ध करने का मूल आधार है, जो कि बेहद जरूरी है.

    इसकी आखिरी शर्त है कि घटना के बारे में समाज के प्रबुद्ध वर्ग को इसकी जानकारी होनी चाहिए, ताकि उसे आप सबूत के तौर पर पेश कर सकें.

    लेकिन क्या इसका उपयोग किसी की आवाज को दबाने के लिए किया जा सकता है?

    अकबर के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला पत्रकार ने अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा था कि सच्चाई ही उनका एकमात्र डिफेंस है. धारा 499 के पहले अपवाद के तहत, सच केवल तभी डिफेंस होगा अगर बयान जनहित में हो. हालांकि इसका मूल्यांकन न्यायालय द्वारा तथ्यों के माध्यम से किया जाएगा.

    इस धारा के दूसरे और तीसरे अपवाद में यह भी नोट किया गया है कि आरोपी अपने बचाब में नेकनियती की दलील दे सकता है. लेकिन उसे इस तरह से होना चाहिए कि किसी के चरित्र को नुकसान पहुंचाए बिना उसकी बात जनता तक पहुंच सके.

    ऐसे अधिकांश मामलों में सबूत जुटाने या अदालत की प्रक्रियाओं में कई साल लग जाते हैं. हालांकि, वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी का कहना है कि 'आपसी सहमति से मामला रफा-दफा करने और कड़ी कार्रवाई के बीच बहुत महीन रेखा है' और इस मामले में पत्रकार को अदालत में लड़ना होगा.

    कानूनी दिग्गज ने यह भी कहा कि मानहानि के मामले में कोर्ट रूम की प्रक्रिया आसान नहीं होगी. उन्होंने न्यूज18 से कहा, 'क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान सबकुछ बदल जाएगा और अदालत में कोई सहानुभूति नहीं होगी.' वह कहते हैं, 'इस कानून में कोई खामी नहीं. आप दुनिया में कहीं भी किसी व्यक्ति बेजा आरोप नहीं लगा सकते हैं और अगर आप ऐसे करते है, तो केस तो बनता है. अब इस केस में महिला को अपनी सच्चाई साबित करनी होगा.'

    हालांकि, ऐसे मामलों पर वकीलों का कहना है कि केस की अवधी तीन से दस साल तक भी हो सकती है.

    मानहानि के कई मुकदमें लड़ चुके केटीएस तुलसी का मानना है कि ऐसे मामलों में 'आम तौर पर इसकी सलाह नहीं दी जाती है' क्योंकि इसकी हर सुनवाई में सभी तथ्यों को सार्वजनिक करना होता है.

    लोकसभा में मानहानि को खत्म करने की मांग करने वाला एक विधेयक 2017 में पेश किया गया था.

    न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी पंत की एक खंडपीठ ने 2016 में आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय दंड संहिता के प्रासंगिक खंडों को कायम रखते हुए विशेष रूप से आईपीसी की धारा 494 और सिविल कानून की धारा 500 के अंतर्गत कहा था कि मानहानि में फ्रीडम ऑफ स्पीच का कोई चिलिंग इफेक्ट नहीं होता.

    एक बार मानहानि मामले में ट्रायल शुरू होने के बाद, सबूत पेश किए जाने की आवश्यकता होती है और इसे 'पूर्व-सम्मन साक्ष्य' कहा जाता है.

    सुप्रीम कोर्ट के वकील संग्राम पटनायक ने न्यूज18 से कहा, 'ऐसे मामलों में पीड़ित को ट्रायल के लिए तैयार रहना चाहिए. मामले में कोई समझौता नहीं हो सकता और केस कोर्ट के फैसले के साथ ही खत्म हो सकता है. ट्रायल के लिए छह महीने की निश्चित अवधि होनी चाहिए, जो कि सिर्फ एक सुझाव है.'

    वकील ने कहा, 'लगभग सभी सबूत पूर्व-सम्मत साक्ष्य के रूप में पेश करना होता है, जिसके बाद सबूत को सत्यापित करने के लिए क्रॉस एग्जामिनेशन शुरू होता है.'

    हालांकि, पटनायक ने कहा कि आपराधिक मानहानि में आम तौर पर सबूत के लिए बहुत ज्यादा गुंजाइश नहीं है, बल्कि इसमें यह जरूरी होता है कि अभियुक्त द्वारा सच को कैसे डिफेंस किया जाता है.

    Tags: Me Too, MJ Akbar, Sexual Abuse, Sexual Harassment, Sexualt assualt

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