महिलाओं और पुरुषों को मिलने वाली तनख्वाह या किसी तरह के भुगतान में अंतर कोई नई बात नहीं है. किसी कंपनी की सीईओ से लेकर खेत में काम करने वाले मजदूर तक, पैसों के भुगतान के मामले में महिलाओं को हमेशा से ही हर क्षेत्र में कम पैसा दिया जाता रहा है. लेकिन एक राज्य ऐसा है जहां महिलाओं की कमाई पुरुषों के बराबर या कुछ मामलों में उनसे ज्यादा है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)- 5 में दावा किया गया है कि राष्ट्रीय औसत 39.9 फीसद की तुलना में गुजरात की करीब 53. 2 फीसद महिलाओं का कहना है कि उन्हें समान भुगतान किया जाता है. 2019 में हुआ सर्वेक्षण गुजरात के 29,368 परिवारों के साथ किया गया था, जिसमें 33,343 महिलाएं भी शामिल थीं.
सर्वेक्षण में शामिल विवाहित महिलाओं में से 38.2 फीसद ने कहा कि वह काम कर रही थीं. कुल काम करने वाली महिलाओं में से 78 फीसद ने कहा कि उन्हें उनके काम का भुगतान कर दिया गया था. भारत भर में केंद्र शासित प्रदेश दमन-दीव एवं दादर नगर हवेली में सबसे ज्यादा महिलाओं ने (59.9 फीसद) कहा कि वह अपने पति के बराबर या ज्यादा कमा रही हैं. इसके बाद गुजरात (53.2 फीसद), चंडीगढ़ (52.7 फीसद), छत्तीसगढ़ (47.6 फीसद) और अरुणाचल प्रदेश (47 फीसद ) की महिलाओं ने बराबर कमाई की बात कही.
मनरेगा जैसी योजना का कमाल
आनंदी की सह-संस्थापक नीता हारिदिकर का कहना है कि रोजगार में बढ़ोतरी की एक वजह मनरेगा जैसी योजनाएं हो सकती है, यह उन जिलों में भी पहुंच गई है जहां पर पहले नहीं थी इसलिए बराबर भुगतान में इजाफा हुआ है. यही नहीं महिलाओं में शिक्षा के मामले में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
शिक्षा और जागरूकता
सहज नाम के एनजीओ की निदेशक रेणु खन्ना बताती हैं कि शिक्षा और जागरूकता की वजह से महिलाओं में अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ी है. लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि ग्रामीण और शहरी गुजरात में काफी फर्क है. यही नहीं कोविड के बाद जिनकी नौकरी पहले गई वह महिलाएं ही थीं, यही नहीं उन्हें नौकरी वापस भी मिली तो पहले वाले वेतन पर नहीं मिली थी.
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