भुवनेश्वर. तेजी विकसित होते डिजिटल वर्ल्ड में भी ओडिशा के गागुआ गांव के लोगों ने अच्छी पुरानी डाक व्यवस्था में अपना भरोसा नहीं खोया है और अपने गांव में चंदा जमा करके एक कमरे का पक्का डाकघर बनाने का फैसला किया. ओडिशा के इस गांव में करीब सौ साल पुराने पोस्ट ऑफिस की नई इमारत को बनाने की मांग को जब लंबे समय तक डाक विभाग ने अनसुना किया तो लोगों ने चंदा जमा करके करीब सौ साल पुराने पोस्ट ऑफिस के लिए एक पक्का कार्यालय बनवा दिया.
कुछ साल पहले ओडिशा के केंद्रपाड़ा ब्लॉक के गागुआ गांव में डाकघर का ऑफिस जंगली झाड़ियों और टूटे हुए फर्नीचर से घिरी एक फूस की झोपड़ी भर थी. इस डाकघर के लिए पक्का ऑफिस बनाने की मांग लंबे समय से डाक विभाग के पास पड़ी थी. जब डाक विभाग ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया तो गांववालों ने खुद चंदा जमा करके इस पोस्ट ऑफिस के लिए एक पक्का कार्यालय बनाने का फैसला किया. चंदे से बने नए पोस्ट ऑफिस की इमारत 16 मार्च को उद्घाटन किया गया.
पोस्ट ऑफिस की नई इमारत के लिए 5,000 रुपये का चंदा देने वाले एक ग्रामीण निरंजन बल ने कहा कि जिस घर में डाकघर काम करता था, वह ढहने के कगार पर था. पिछले साल हमने लोगों को एक पक्का पोस्ट ऑफिस बनाने के लिए चंदा करने के लिए प्रेरित करना शुरू किया. कई लोगों ने उदारता से चंदा दिया और हम 2 लाख रुपये की लागत से डाकघर की इमारत को पूरा करने में सक्षम हो पाए.
लगभग एक सदी पुराना है गांव का डाकघर
गागुआ गांव में डाकघर सन् 1927 में स्थापित किया गया था और अब लगभग एक सदी से ये ग्रामीणों की सेवा कर रहा है. एक ग्रामीण प्रह्लाद त्रिपाठी ने कहा कि ग्रामीणों ने बार-बार डाक अधिकारियों से डाकघर के लिए एक पक्के भवन के निर्माण के लिए बजट देने का अनुरोध किया था. लेकिन उनके अनुरोधों पर विचार नहीं किया गया. अंत में ग्रामीणों ने उपलब्ध संसाधनों से अपने दम पर एक पक्का पोस्ट ऑफिस बनाने का फैसला किया. पूर्व पोस्टमास्टर हरीश चंद्र सामल ने कहा कि कूरियर सेवाएं केवल शहरों में उपलब्ध हैं. फिर भी गांव के लोग मनीआर्डर के माध्यम से पैसे भेजने और हासिल करने के अलावा पत्र लिखते हैं. उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा कि ग्रामीणों का यह काम प्रशासन और राजनेताओं के लिए आंखें खोलने वाला होना चाहिए.
ग्रामीणों का जताया आभार
वर्तमान पोस्टमास्टर बसंती मुर्मू ने ग्रामीणों का आभार जताया और कहा कि गांव के लोगों ने केवल तीन महीने में पक्के भवन का निर्माण कर दिया. क्योंकि उनका अभी भी सदियों पुरानी डाक व्यवस्था में विश्वास कायम है. उन्होंने बताया कि डाकघर में करीब 500 ग्रामीणों के पास पासबुक हैं.
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