पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन (फाइल फोटो)
युद्ध दुनिया के किसी भी हिस्से में हो, इंसानियत को बड़ी और स्थाई चोट पहुंचाता है. युद्ध की वजह से मानवता को लगने वाले ज़ख़्मों का दर्द अक्सर कई पीढ़ियां शिद्दत से महसूस करती हैं. यूक्रेन पर रूस के हमले ने करोड़ों लोगों को दहशत से भर दिया है. अमेरिका और यूरोप के अभी तक के रुख़ से तो नहीं लगता कि रूस और यूक्रेन की जंग विश्व युद्ध में बदलेगी, लेकिन हालात कब उल्टी करवट ले लें, कहा नहीं सकता. इधर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन से फ़ोन पर बात कर यह सुनिश्चित करने का गंभीर प्रयास किया है कि युद्ध जल्द ख़त्म किया जाए.
बातचीत का पक्षधर है भारत
राष्ट्रपति पुतिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यूक्रेन से जुड़े हालात के बारे में जानकारी दी. मोदी ने पुतिन से कहा कि रूस और नाटो के बीच मतभेद सिर्फ़ ईमानदार बातचीत से ही सुलझाए जा सकते हैं. उन्होंने पुतिन से बातचीत में सभी पक्षों से हिंसा तुरंत ख़त्म किए जाने और कूटनैतिक स्तर पर बातचीत के रास्ते पर लौटने की अपील की. मोदी चाहते हैं कि रूस युद्ध को तत्काल रोक दे.
मोदी निभाएंगे बड़ी भूमिका
इससे पहले रूस इस मसले पर भारत के रुख़ की खुल कर तारीफ़ कर चुका है. उधर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से जब यह पूछा गया कि क्या भारत इस मामले में उनके साथ है, तो उन्होंने जवाब दिया कि इस बारे में बातचीत की जा रही है. लेकिन अब पुतिन से मोदी की फ़ोन पर बातचीत के बाद स्पष्ट है कि युद्ध जारी रहने की सूरत में भारत दोनों पक्षों में से किसी एक के साथ खड़ा नज़र नहीं आना चाहेगा. युद्ध ख़त्म होने पर भारत समस्या के कूटनैतिक हल के लिए तटस्थ समाधानकर्ता की भूमिका में ही रहेगा.
क्या है असल समस्या की जड़?
समस्या का कारण यह है कि रूस नाटो में यूक्रेन को शामिल करने की योजना के ख़िलाफ़ है. यूक्रेन कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहा है और वहां की काफ़ी आबादी रूसी भाषा बोलती है और रूसी संस्कार अपना रही है. वहां 80 लाख से ज़्यादा रूसी मूल के लोग रहते हैं. रूस से यूक्रेन की दो हज़ार किलोमीटर सीमा लगती है. अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हो गया, तो रूस को अपना दबदबा कम होने की आशंका है. अभी रूस की राजधानी मॉस्को से पश्चिमी देशों की दूरी 1600 किलोमीटर है. लेकिन अगर यूक्रेन नाटो का सदस्य बनता है, तो यह दूरी मात्र 640 किलोमीटर रह जाएगी.
राष्ट्रपति पुतिन से शांति क़ायम करने की अपील कर प्रधानमंत्री मोदी ने एक तरह से यूक्रेन का साथ ही दिया है. ऐसे समय में जब यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की साफ़-साफ़ कह रहे हैं कि युद्ध से पहले बड़ी-बड़ी बातें करने वाले अमेरिका और नाटो ने अब उन्हें अकेला छोड़ दिया है, तब प्रधानमंत्री मोदी ने रूस से युद्ध समाप्त करने की अपील कर यूक्रेन में तबाही रोकने का पक्ष लेते हुए जेलेंस्की के घावों पर मरहम लगाने का ही काम प्रत्यक्ष रूप से किया है.
रूस को नहीं प्रतिबंधों की परवाह
रूस ने यूक्रेन पर सीधा हमला बोल कर विश्व को यह संकेत स्पष्ट रूप से दे दिया है कि उसे कड़े से कड़े आर्थिक प्रतिबंधों की कतई परवाह नहीं है. ऐसे में अगर रूस-यूक्रेन युद्ध लंबे समय तक चलता है, तो विश्व के शक्ति समीकरण बुरी तरह गड़बड़ा सकते हैं. ऐसे में भारत को फूंक-फूंक कर क़दम रखने की ज़रूरत है. कोविड-19 से जूझ रही दुनिया के लिए यह युद्ध दूसरा सबसे बड़ा ख़तरा बन कर उभर सकता है. विश्व शक्तियों को इस बात को भी समझना होगा.
क्या छिड़ सकता है विश्व युद्ध?
हम जानते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में युद्ध की यह सबसे बड़ी स्थिति है. युद्ध शुरू होने से पहले बाइडेन के बयानों से लग रहा था कि तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हो सकती है. हालांकि अभी तक ऐसा नहीं हुआ है, लेकिन निकट भविष्य में ऐसा नहीं होगा, यह कहना पूरी तरह सही नहीं होगा.
हमें पता है कि जो बाइडेन ने साफ़ कहा है कि वह अपने या नाटो के सैनिक यूक्रेन की मदद के लिए नहीं भेजेगा, लेकिन नाक की इस लड़ाई में अमेरिका यूक्रेन की हथियारों और दूसरे युद्धक साज-ओ-सामान से मदद ज़रूर कर रहा होगा या जल्द ही करेगा. यूक्रेन रूसी मिसाइल मार गिराने का दावा कर रहा है, अगर यह सही है, तो ऐसा कर पाना तभी संभव है, जब उसके पास आधुनिकतम मिसाइल रक्षा प्रणाली हो. यह उसे किसी ताक़तवर देश से ही हासिल हो सकती है.
विश्व कूटनय में बढ़ी हलचल
रूस के यूक्रेन पर प्रत्यक्ष हमने ने विश्व कूटनीति में भी बड़ी हलचल मचा दी है. रूस का आरोप है कि संयुक्त राष्ट्र का शीर्ष प्रशासन पश्चिमी देशों के दबाव में है. अपने क्षेत्र पर नज़र डालें, तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने भी रूसी राष्ट्रपति पुतिन से द्विपक्षीय संबंधों को लेकर उसी दिन बात की, जिस दिन मोदी से पुतिन की बात हुई. उधर अमेरिका भारत के संपर्क में रहने की बात सार्वजनिक कर चुका है, तो उसने रूस-यूक्रेन युद्ध के संबंध में पाकिस्तान को भी अपनी स्थिति के बारे में आगाह कर दिया है.
ज़ाहिर है कि सभी वैश्विक समूह मंथन में लगे हैं. परमाणु शक्ति संपन्न दुनिया के लिए कोई छोटी सी चिंगारी भी महाविनाश का कारण बन सकती है. ऐसे में शांति और शक्ति के एक साथ पुजारी भारत की भूमिका बड़ी हो जाती है. ज़ाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह विश्व शांति स्थापित करने की दिशा में स्वयं को सक्षम साबित करने का बड़ा अवसर है और वे इसे चूकेंगे भी नहीं.
यूएन में रूस लगा देगा वीटो
तकनीकी तौर पर देखें, तो अमेरिका के साथ ही रूस को भी संयुक्त राष्ट्र में वीटो पावर हासिल है. यूएन में रूस के ख़िलाफ़ अगर कोई बड़ी कार्रवाई की जाती है, तो रूस उस पर वीटो लगा कर उसे निष्प्रभावी बना देगा. वैसे भी संयुक्त राष्ट्र वैश्विक मसलों या द्विपक्षीय मसलों के हल में अपनी स्थापना के बाद से अभी तक कोई बहुत प्रभावी भूमिका नहीं निभा पाया है. ताक़तवर देश अपने पूर्वाग्रहों, दुराग्रहों के अनुसार ही अपना वैश्विक तुलनात्मक व्यवहार सुनिश्चित करते रहे हैं.
ऐसे में नाटो और दूसरी विश्व शक्तियां अपने-अपने स्तर पर ही रूस की मुश्कें कसने की कार्रवाई कर सकती हैं. नाटो देशों ने अपनी सेनाओं को तैयार रहने को कह दिया है, लेकिन ऐसी आशंका नहीं है कि रूस पर नाटो का सीधा हमला होगा. नाटो के नियमानुसार अगर किसी नाटो देश पर हमला होता है, तो सभी सदस्य देशों के सेनाएं जवाब देती हैं. तकनीकी तौर पर यूक्रेन अभी नाटो का सदस्य नहीं है. सारा बखेड़ा इस बात को लेकर ही है.
रूस और चीन आएंगे साथ?
अमेरिका के माथे पर इस सवाल की आशंका से भी चिंता की लकीरें गहरी होनी चाहिए कि अगर अमेरिका की पक्षधर सभी विश्व शक्तियों ने कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए, तो क्या रूस और चीन के और नज़दीक आने की संभावना बन सकती है? परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से ऐसा होता है, तो यह स्थिति भारतीय हितों पर असर डालने वाली हो सकती है. इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बहुत युक्ति से काम लेना होगा.
चीन अभी किसके साथ?
यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली यानी यूएनजीए में हालांकि चीन खुल कर रूस का समर्थन नहीं किया है, लेकिन यह जरूर कह दिया है कि सभी को बातचीत के ज़रिए ही किसी समाधान पर पहुंचना होगा. चीन ने यह कह कर एक तरह से रूस का बचाव किया है कि रूस ने लगातार कहा है कि वह बातचीत करने को तैयार है, उसकी युद्ध लड़ने की कोई इच्छा नहीं है. ऐसे में चीन चाहता है कि कूटनैतिक रास्ते से ही कोई समाधान निकले और वो ख़ुद इसमें सक्रिय भूमिका निभा सकता है. चीन ने यह भी कहा कि अमेरिका को किसी भी तरीक़े से चीन या दूसरे देशों के अधिकारों का हनन नहीं करना चाहिए.
अर्थव्यवस्था पर असर
रूस-यूक्रेन विवाद का समाधान जल्द नहीं हुआ, तो इसका असर भारत समेत पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, यह तय है. युद्ध के पहले दिन भारत में शेयर बाज़ार में उल्लेखनीय गिरावट इस बात का ठोस प्रमाण है. हालांकि भारतीय शेयर बाज़ार अगले ही दिन 25 फ़रवरी को संभल गया. युद्ध लंबा खिंचा, तो दुनिया भर में कच्चे तेल और गैस के दाम बढ़ने की आशंका है. भारत में विपक्ष ने पेट्रोल-डीज़ल और रसोई गैस की क़ीमतों को पहले से ही चुनावी मुद्दा बना रखा है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार को नए सिरे से रणनीति पर अभी से विचार करना होगा.
भारतीयों की सुरक्षा की चिंता
भारत के लिए चिंता की एक और बड़ी बात यह है कि यूक्रेन में हज़ारों भारतीय छात्र-छात्राएं फंसे हैं. हालांकि भारत सरकार कई दिन पहले ही उन्हें वहां से निकलने के लिए एडवाइज़री जारी कर चुकी है, लेकिन अब युद्ध बाक़ायदा शुरू होने के बाद वहां बचे भारतीय विद्यार्थियों और भारत में उनके परिवारों की चिंता बढ़ गई है.
यूक्रेन की सीमा से लगे हंगरी, पोलैंड, स्लोवाक रिपब्लिक और रोमानिया के भारतीय दूतावास स्वदेशी छात्र-छात्राओं को निकालने की क़वायद में लगे हैं. वायु सेना के विमान भी तैयार हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन को इस मामले में अपनी चिंता से भी अवगत करा दिया है. यूक्रेन में फंसे भारतीयों को जल्द ही वहां से सुरक्षित भारत लाना सुनिश्चित किया जाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं है. भारत पहले भी कई देशों में ऐसे अभियान सफलतापूर्वक चला चुका है.
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