देश में होनी चाहिए सुप्रीम कोर्ट की 4 बेंच, संसदीय समिति की सिफारिश

सुप्रीम कोर्ट की चार बेंच बनाने का सुझाव. (File pic)
समिति ने कहा है कि सिर्फ दिल्ली में केंद्रित होने की वजह से दूरदराज इलाके के गरीब लोग सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) तक नहीं आ पाते हैं.
- News18Hindi
- Last Updated: March 17, 2021, 11:38 AM IST
नई दिल्ली. पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी यानी संसदीय समिति (Parliamentary Standing committee) ने अपनी 107वीं रिपोर्ट संसद (Parliament) को सौंप दी है. इसमें कुछ अहम सिफारिशें की गई हैं. समिति की ओर से तैयार की गई इस रिपोर्ट में देश में मौजूद न्यायपालिका (Indian Justice System) में कुछ सुधार किए जाने और उसे बेहतर बनाए जाने के संबंध में तीन अहम सुझाव दिए गए हैं.
इसके अलावा समिति ने ये भी सिफारिश की है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को सिर्फ दिल्ली में केंद्रित नहीं होना चाहिए. बल्कि दिल्ली के अलावा कोलकाता, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में भी इसकी बेंच स्थापित होनी चाहिए. समिति ने कहा है कि दिल्ली में केंद्रित होने की वजह से दूरदराज इलाके के गरीब लोग सुप्रीम कोर्ट तक नहीं आ पाते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यायपालिका में सामाजिक और आर्थिक विविधता नजर आनी चाहिए. इसका मतलब ये है कि कोर्ट में हर धर्म, जाति और हर आर्थिक वर्ग के जज होने चाहिए. अलग-अलग पृष्ठभूमि से आने वाले जज आम लोगों की भावनाओं और उनकी दिक्कतों को बेहतर समझ पाएंगे.
रिपोर्ट में जजों की कमी पर भी गंभीर चिंता जताई गई है. हाईकोर्ट में जजों की रिक्तियां 37 से 39 फीसदी हैं. 2016 में देश भर में 126 हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति हुई थी जो कि 2020 में घटकर सिर्फ 66 हो गई. इसलिए समिति ने सिफारिश की है कि हाईकोर्ट के जजों की रिटायरमेंट की उम्र 62 से बढ़ाकर 65 कर दी जाए. सुप्रीम कोर्ट में जजों की रिटायरमेंट उम्र 65 ही है. इसलिए दोनों जगह बराबर होनी चाहिए.
इसके अलावा समिति ने ये भी सिफारिश की है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को सिर्फ दिल्ली में केंद्रित नहीं होना चाहिए. बल्कि दिल्ली के अलावा कोलकाता, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में भी इसकी बेंच स्थापित होनी चाहिए. समिति ने कहा है कि दिल्ली में केंद्रित होने की वजह से दूरदराज इलाके के गरीब लोग सुप्रीम कोर्ट तक नहीं आ पाते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यायपालिका में सामाजिक और आर्थिक विविधता नजर आनी चाहिए. इसका मतलब ये है कि कोर्ट में हर धर्म, जाति और हर आर्थिक वर्ग के जज होने चाहिए. अलग-अलग पृष्ठभूमि से आने वाले जज आम लोगों की भावनाओं और उनकी दिक्कतों को बेहतर समझ पाएंगे.