फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ याचिका खारिज, सरकार से अलग विचार होना राजद्रोह नहीं: सुप्रीम कोर्ट

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा लिये गये एक निर्णय को लेकर असहमति वाले विचारों की अभिव्यक्ति को राजद्रोह नहीं कहा जा सकता है.
- News18Hindi
- Last Updated: March 4, 2021, 10:35 AM IST
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अनुच्छेद 370 (Article 370) को निरस्त किये जाने को लेकर दिये गये बयान पर नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) के खिलाफ कार्रवाई किये जाने के अनुरोध वाली एक जनहित याचिका बुधवार को खारिज कर दी. न्यायालय ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा लिये गये एक निर्णय को लेकर असहमति वाले विचारों की अभिव्यक्ति को राजद्रोह नहीं कहा जा सकता है.
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की एक पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया और ऐसे दावे करने के लिए याचिकाकर्ताओं पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया और उन्हें चार सप्ताह के भीतर इस धनराशि को सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता कल्याण कोष में जमा कराने का निर्देश दिया.
'बयान में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो हमें इतना आपत्तिजनक लगे'पीठ ने कहा, 'केन्द्र सरकार द्वारा लिये गये एक निर्णय पर असहमति वाले विचारों की अभिव्यक्ति को राजद्रोह नहीं कहा जा सकता है. बयान में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो हमें इतना आपत्तिजनक लगे कि एक अदालत द्वारा कार्यवाही शुरू करने के लिए कार्रवाई का कारण दिया जाए.'
न्यायालय उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को बहाल किये जाने पर उनके (अब्दुल्ला) बयान का उल्लेख किया गया था और दलील दी गई थी कि यह स्पष्ट रूप से राजद्रोह की कार्रवाई है और इसलिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124-ए के तहत उन्हें दंडित किया जा सकता है.
पूर्व मुख्यमंत्री कश्मीर चीन को 'सौंपने' की कोशिश कर रहे- याचिका
यह याचिका रजत शर्मा और डा.नेह श्रीवास्तव ने दाखिल की थी. इसमें आरोप लगाया गया था कि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री कश्मीर चीन को 'सौंपने' की कोशिश कर रहे हैं इसलिए उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए.
याचिका में कहा गया था , 'फारूक अब्दुल्ला ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के तहत एक दंडनीय अपराध किया है. जैसा कि उन्होंने बयान दिया है कि अनुच्छेद 370 को बहाल कराने के लिए वह चीन की मदद लेंगे जो स्पष्ट रूप से राजद्रोह का कृत्य है और इसलिए उन्हें आईपीसी की धारा 124-ए के तहत दंडित किया जाना चाहिए.' (भाषा इनपुट के साथ)
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की एक पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया और ऐसे दावे करने के लिए याचिकाकर्ताओं पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया और उन्हें चार सप्ताह के भीतर इस धनराशि को सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता कल्याण कोष में जमा कराने का निर्देश दिया.

न्यायालय उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को बहाल किये जाने पर उनके (अब्दुल्ला) बयान का उल्लेख किया गया था और दलील दी गई थी कि यह स्पष्ट रूप से राजद्रोह की कार्रवाई है और इसलिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124-ए के तहत उन्हें दंडित किया जा सकता है.
पूर्व मुख्यमंत्री कश्मीर चीन को 'सौंपने' की कोशिश कर रहे- याचिका
यह याचिका रजत शर्मा और डा.नेह श्रीवास्तव ने दाखिल की थी. इसमें आरोप लगाया गया था कि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री कश्मीर चीन को 'सौंपने' की कोशिश कर रहे हैं इसलिए उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए.
याचिका में कहा गया था , 'फारूक अब्दुल्ला ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के तहत एक दंडनीय अपराध किया है. जैसा कि उन्होंने बयान दिया है कि अनुच्छेद 370 को बहाल कराने के लिए वह चीन की मदद लेंगे जो स्पष्ट रूप से राजद्रोह का कृत्य है और इसलिए उन्हें आईपीसी की धारा 124-ए के तहत दंडित किया जाना चाहिए.' (भाषा इनपुट के साथ)