पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा- गैजेट हमें गुलाम बना रहे, सजगता बरतें. (ANI)
नई दिल्ली. आम तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बच्चों से मिलने और उनसे संवाद करने का कोई मौका नहीं चूकते हैं. लेकिन 10वीं और 12वीं बोर्ड के पहले देश भर के छात्रों के साथ उनका संवाद परीक्षा पर चर्चा अब देश दुनिया में भारतीय बच्चों को आकर्षित कर रहा है. शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान कहते हैं कि ये एक जनआंदोलन का रूप ले चुका है. परीक्षा पर चर्चा और एग्जाम वॉरियर ऐसे जन आंदोलन बन गए हैं तो बच्चों को अगली सदी में सफलता पूर्वक ले जाने मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. आलम ये है कि 2023 के इस छठी परीक्षा पर चर्चा में भारत और साथ ही दुनिया भर के 38 लाख भारतीय बच्चों ने रजिस्ट्रेशन कराया. पीएम मोदी ने शुरुआत ही इस बात से की कि आज उनकी भी परीक्षा है. पीएम मोदी जानते हैं कि ये बच्चे आने वाला कल हैं इसलिए उन्हें समझना और समझाना उन्हें भी बहुत सारी सीख देकर जाता है. बच्चों से तो पीएम मोदी ने खूब बातें की. अपनी सरल भाषा और कई बार चुटीले अंदाज में काफी कुछ समझाया लेकिन बार बार तालियों की गड़गड़ाहट बता रही थी कि बच्चों को उनकी बातें कितनी भायीं. अंत में पीएम मोदी ने कहा कि सामान्य व्यक्ति भी सफल शख्सियत बनता है.
बच्चों की चिंता थी कि घर वालों का दबाव है कि नंबर कम आए तो हमारा क्या होगा. पीएम ने खुद अपना उदाहरण और शीर्ष क्रिकेटरों का उदाहरण लेकर समझाया कि नतीजों की चिंता किए बगैर काम पर ध्यान लगाओ. कुछ बच्चों की चिंता समय के सही मैनेजमेंट नहीं हो पाने की थी तो पीएम मोदी ने उसे घर में मां का उदाहरण दे कर समझाया कि समय का मैनेजमैंट कैसे करें. पीएम ने समझाया कि परीक्षा मे गलत तरीके का इस्तेमाल करने से बच्चे अपने आप को कैसे दूर रखें. हर रेलवे स्टेशन पर पटरी होती है और उस पर ब्रिज भी होता है. लेकिन लोग पटरी से ही पार करते हैं. वहां लिखा होता है शॉर्ट कट विल कट यू शॉर्ट. इसलिए आप उधर मत फंसिए. मेहनत कीजिए. कौवे और कम पानी वाले घड़े की कहानी सुनाकर बच्चों को हार्ड वर्क और स्मार्ट वर्क का मतलब समझाया. बच्चों की हंसी तब भी छूट गयी जब पीएम मोदी ने कहा कि ये कथा जब लिखी गयी थी जब स्ट्रॉ नहीं होते थे वरना कौवा बाजार जाकर स्ट्रॉ भी लेकर आता. पीएम मोदी ने डिजिटल उपवास की बात कर सबको अचंभित कर दिया. पीएम मोदी ने कहा की स्क्रीन से चिपके रहने के कारण आज कल के छोटे परिवारों में संवाद घट रहा है. लोग इसके गुलाम बनकर अपना व्यक्तित्व खोते जा रहे हैं. जैसे प्राचीन काल में आरोग्य के लिए उपवास की जरूरत पड़ती थी, उसी तर्ज पर अब जरूरत है चंद घंटों के डिजिटल उपवास की. जब पूरा परिवार साथ बैठकर बातें कर सके.
ऐसी कई बातें थीं जो पीएम मोदी ने बच्चों को कहीं, समझायीं और उनसे जुड़ी कहानियां सुनाकर बच्चों के दर्द और तनाव को बांटने की कोशिश भी की. लेकिन पूरी परीक्षा पर चर्चा की बड़ी बात ये कि इनमें से कई जवाबों के पीछे भी आलोचकों और दुनिया के लिए संदेश छुपे हुए थे.
बच्चों का कहना अगर नंबर कम आए तो क्या होगा?
इस सवाल के जवाब की शुरुआत पीएम मोदी ने खुद अपनी तुलना से की. पीएम मोदी ने कहा कि आप तमाम चुनाव जीतते चले जाओ लेकिन हर चुनाव में एक ही बात का लोग दबाव डालते हैं कि इस बार वाला हार जाओगे. कुछ कहने लगते हैं कि 250 सीटें ही जीत पाओगे. अगर इतनी जीतो तो आवाज आती है की 300 जीतनी चाहिए थी. पीएम मोदी ने एक स्टार बल्लेबाज की चर्चा करते हुए कहा कि वो मैदान में उतरता है औऱ हजारों लोग चौके छक्के का शोर मचाने लगते हैं लेकिन वो सिर्फ हर गेंद पर ध्यान देता है. भावनाओं में नहीं बहता. इसलिए किसी को दबाव मे नहीं आना चाहिए. दबाव लेने की जरूरत ही नहीं है बल्कि लगातार अपना काम और मेहनत ज्यादा से ज्यादा करते रहना चाहिए. अब ये संदेश तो सिर्फ बच्चों के लिए तो नहीं था.
बच्चों को टाइम मैनेजमेंट की चिंता, पीएम ने कहा मां से सीखो टाइम मैनेजमेंट
परीक्षा पर चर्चा से सिर्फ एक दिन पहले भी पूरे देश ने कर्तव्य पथ पर नारी शक्ति का जलवा देखा है. ये उदाहरण है कि पीएम मोदी ने अपने 8 सालों के कार्यकाल में महिला शक्ति को यानी देश की आधी आबादी को सशक्त करने में कितनी बड़ी भूमिका अदा की है. पीएम मोदी ने बच्चों को टाइम मैनेजमेंट के गुर भी खूब समझाए. लेकिन हर घर में मां की भूमिका की याद पूरे देश को दिला ही दी. पीएम मोदी ने बच्चों को कहा कि आपने अपने घरों में मां को काम करते देखा है. क्या आपने कभी सोचा है कि उनका टाइम मैनेजमेंट कितना बढ़िया होता है. परिवार में किसे कितने बजे क्या चाहिए, मां ही मैनेज करती है और वो भी सही समय पर सबका काम पूरा मिलता है. मां को पता होता है कि उसे इतने समय में इतना काम पूरा करना है इसलिए कोई भी काम उसे बोझल नहीं करता है. यहां तक की तमाम व्यस्तताओं के बावजूद वो थोड़ा समय बचा भी लेती है. ये है मैनेजमेंट का गुर. पीएम की बड़ों को सीख यही सीख थी कि काम करने से थकान नहीं होती बल्कि काम समय पर नहीं करने से थकान होती है. साथ ही कठिन मान कर काम को छोड़ना नहीं चाहिए बल्कि उसे भी प्राथमिकताओं में रखना चाहिए.
आलोचना हमें समृद्ध करती है, आरोप लगाने वालों को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं
बच्चों ने सवाल ये उठाया था कि आलोचना से उनका आत्मविश्वास टूटता है. लेकिन पीएम मोदी ने कहा कि घर में गुस्सा आलोचना से नहीं बल्कि टोका टाकी से आता है. पीएम मोदी ने माता-पिता से आग्रह किया कि बच्चों की जिंदगी आलोचना कर के बदल नहीं सकते बल्कि बच्चों की भलाई के लिए इससे बाहर निकलें. अब बारी आयी आलोचना करने वाले को आईना दिखाने की. पीएम मोदी ने बिना नाम लिए तमाम आलोचकों को संदेश दिया कि आलोचना करने वाले तो आदतन करते रहते हैं इसलिए उसे बक्से में डाल दिया कीजिए. उस पर सिर मत खपाइए. यहां पर पीएम मोदी ने विपक्ष की भी चुटकी ले ली. उन्होंने कहा कि संसद में बहुत से सांसद और मंत्री बहुत तैयारी कर के बहस में हिस्स लेने आते हैं. लेकिन अपने स्वभाव से मजबूर विपक्ष में बैठे कई लोग बैठे-बैठे टिप्पणी करते रहते हैं. जो पढ़-लिख कर बोलने आया है कि वो भी जानता है कि फलां विपक्षी सांसद ऐसा ही करेगा लेकिन इस टोका-टाकी के कारण तैयारियां पीछे छूट जातीं हैं और वो टिप्पणी के पेंच में फंस जाता है.
पीएम मोदी यहीं नहीं रुके. उन्होंने कहा कि आलोचना करने के लिए बहुत अध्ययन करना पड़ता है. बहुत मेहनत करने के बाद ही सही आलोचना करना संभव होता है. पीएम ने बच्चों को बताया कि ज्यादातर लोग सिर्फ आरोप लगाते हैं, आलोचना नहीं करते. जबकि आलोचना और आरोप दोनों के बीच एक बहुत बड़ी खाई है. आलोचना हमें समृद्ध करती है और हमारी गलतियां बताती है जबकि आरोप लगाने वालों को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है. पीएम मोदी का ये संदेश भी शायद बड़ों के लिए ही था कि आलोचना को गंभीरता से लेने की जरूरत होती है और उससे सीख कर अपना काम सुधारा जा सकता है.
बिना ध्यान बंटे अपनी तैयारी कैसे पूरी करें
एक छोटे बच्चे का सवाल था लेकिन पीएम मोदी ने इस बहाने पूरे आधुनिक युग के पारिवारिक मूल्यों की ही समीक्षा कर डाली. पीएम मोदी जानते हैं कि डिजिटल माध्यमों का बच्चों पर ही क्या पूरे समाज पर असर पड़ा है. पीएम मोदी ने एक गणना के मुताबिक बताया कि देश के लिए चिंता विषय ये है की यहां लोग रोजाना औसतन 6 घंटे स्क्रीन पर लगाते हैं. जो डेटा का व्यापार करते हैं ये उनके लिए खुशी की बात है. लेकिन टॉक टाइम होता था तब 20 मिनट मोबाईल पर जाता था. लेकिन अब क्या होता है. हमारी क्रिएटिविटी का 6 घंटा स्क्रीन पर जाए तो ये समाज के लिए गलत हो रहा है. गैजेट हमें गुलाम बना कर रख देता है. परमात्मा ने हमे एक व्यक्तित्व दिया है. उसे क्यों हम टेक्नोलॉजी का गुलाम बना रहे हैं.
पीएम मोदी ने खुद का जिक्र करते हुए कहा कि उनके हाथों में किसी ने कभी मोबाइल या गैजेट नहीं देखा होता. दुनिया जानती है कि पीएम मोदी डिजिटल इंडिया का ही सपना देखते हैं. कम से कम 1997 से जब से मैंने उनकी राजनीति को कवर करना शुरू किया है उन्हें हमेशा आधुनिक गैजेट का इस्तेमाल करने पाया है. इसलिए पीएम ने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि वो भी हर आधुनिक गैजेट का खूब इस्तेमाल करते हैं. लेकिन कभी समय से ज्यादा इस्तेमाल नहीं करते. पीएम मोदी कहते हैं कि हमें इन गैजेट्स का गुलाम नहीं बनना है. वो आपके भीतर का सामर्थ्य खत्म कर देता है. भारत के बच्चे पहाड़ा भूल रहे हैं. हम अपनी क्षमता खो रहे हैं. हमें प्रयास करना होगा इसे वापस लाने के लिए. हमें लगातार खुद को रिफ्रेश करने की आवश्यकता है. हमारे आरोग्य शास्त्र में उपवास की परंपरा भी होती है. यानी फास्टिंग की. लेकिन अब वक्त बदल चुका है. आपसे निवेदन करता हूं कि आप सब इस टेक्नोलॉजी की फास्टिंग कर सकते हैं क्या. चंद घंटों के लिए ही सही. सप्ताह में एक दिन कम से कम. उससे हुए फायदे को देखिए. छोटे परिवार डिजिटल ट्रैप में फंस रहे हैं.
परीक्षा पर चर्चा में पीएम मोदी ने अपने अंदाज से 2 घंटे तक छात्रों को बांधे रखा. आखिर ये संदेश देना नहीं भूले कि जिंदगी जीनी भी है और जीतते जीतते ही जीनी है.
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