PM मोदी ने नोटबंदी पर की थी चर्चा! जानिए क्या लिखा है इस पर प्रणब दा ने

'द प्रेसिडेंशियल इयर्स' प्रणब मुखर्जी द्वारा लिखी चौथी किताब है. पूर्व राष्ट्रपति का पिछले साल निधन हो गया.
'द प्रेसिडेंशियल इयर्स' (The Presidential Years) में प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि 'नोटबंदी के लक्ष्य को, जिसे सरकार ने बताया था, पाया नहीं जा सका. लेकिन, ऐसी घोषणाओं के लिए 'हड़बड़ी और आश्चर्य' का होना, पूरी तरह से जरूरी होता है.'
- News18Hindi
- Last Updated: January 5, 2021, 10:30 PM IST
नई दिल्ली. भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी संस्मरण वाली किताब 'द प्रेसिडेंशियल इयर्स' में लिखा है कि नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कोई सलाह नहीं ली थी. अपनी किताब में उन्होंने लिखा है कि "प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी को लेकर 8 नवंबर 2016 की अपनी घोषणा से पहले चर्चा नहीं की थी. मुझे इसकी जानकारी तब हुई जब बाकी देशवासियों की तरह मैंने उन्हें टेलीविजन पर देश को संबोधित करते हुए सुना." यह मुखर्जी द्वारा लिखी गई चौथी किताब है. 31 अगस्त 2020 को नई दिल्ली में 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया.
अचानक की गई नोटबंदी की घोषणा के लिए बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को आलोचना सुननी पड़ी थी. मुखर्जी ने लिखा है कि ऐसी घोषणा के लिए 'हड़बड़ी और आश्चर्य' पूरी तरह से जरूरी थे. ऐसा कहा गया था कि ऐसी घोषणा से पहले प्रधानमंत्री मोदी को साथी सांसदों और विपक्ष को भरोसे में लेना था, लेकिन मेरी पक्की राय है कि चर्चा करने के बाद नोटबंदी करना संभव ही नहीं है. इस कारण से मुझे आश्चर्य नहीं है कि उन्होंने घोषणा से पहले मुझसे चर्चा नहीं की. यह मोदी की चौंका देने वाली घोषणाएं करने की स्टाइल में पूरी तरह से फिट भी था.
प्रणब मुखर्जी ने आगे लिखा कि घोषणा के बाद प्रधानमंत्री ने उनसे नोटबंदी की जरूरत पर चर्चा की और काला धन, भ्रष्टाचार से लड़ाई और आतंकियों को मिलने वाले धन पर रोक जैसे मुद्दों पर जानकारी दी. उन्होंने मुझसे सहयोग भी चाहा. पूर्व राष्ट्रपति ने आगे लिखा, "मैंने उन्हें बताया कि इस बोल्ड स्टेप के कारण अर्थव्यवस्था की गति कुछ समय के लिए धीमी हो सकती है. इसके लिए अतिरिक्त सतर्कता बरतनी चाहिए ताकि गरीबों पर लंबे समय के लिए कष्ट न हो. इसके साथ ही मोदी से पूछा कि क्या आप इस बारे में आश्वस्त हैं कि 'बदलने के लिए पर्याप्त मुद्रा उपलब्ध है.' प्रणब दा ने लिखा है कि मैंने उन्हें अपना समर्थन दिया.
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय का जिक्र करते हुए प्रणब मुखर्जी ने लिखा, "सत्तर के दशक में प्रधानमंत्री कार्यालय को नोटबंदी हेतु एक पत्र भेजा था, लेकिन उसे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वीकार नहीं किया. उन्हें मेरे सुझाव स्वीकार नहीं थे, उनका कहना था कि अभी तक अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा पूरी तरह मुद्रा पर निर्भर नहीं है, वहीं इसका बड़ा हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़ा हुआ है. इंदिरा गांधी ने तर्क दिया कि यदि ऐसा किया जाए तो हो सकता है कि लोगों का मुद्रा नोट से विश्वास ही उठ जाए."अपनी किताब में मुखर्जी ने नोटबंदी के निर्णय पर उठने वाले सवालों को जायज बताया है, क्योंकि इससे लोगों का बैंकिंग सिस्टम में भरोसा हिल गया था.

प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि यह बात भी बिना किसी विरोध के कहनी होगी कि काला धन वापसी, काला धन के कारोबार को पंगु करने और कैशलेस समाज की सुविधा जैसे नोटबंदी के कई लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हो सकी.
अचानक की गई नोटबंदी की घोषणा के लिए बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को आलोचना सुननी पड़ी थी. मुखर्जी ने लिखा है कि ऐसी घोषणा के लिए 'हड़बड़ी और आश्चर्य' पूरी तरह से जरूरी थे. ऐसा कहा गया था कि ऐसी घोषणा से पहले प्रधानमंत्री मोदी को साथी सांसदों और विपक्ष को भरोसे में लेना था, लेकिन मेरी पक्की राय है कि चर्चा करने के बाद नोटबंदी करना संभव ही नहीं है. इस कारण से मुझे आश्चर्य नहीं है कि उन्होंने घोषणा से पहले मुझसे चर्चा नहीं की. यह मोदी की चौंका देने वाली घोषणाएं करने की स्टाइल में पूरी तरह से फिट भी था.
प्रणब मुखर्जी ने आगे लिखा कि घोषणा के बाद प्रधानमंत्री ने उनसे नोटबंदी की जरूरत पर चर्चा की और काला धन, भ्रष्टाचार से लड़ाई और आतंकियों को मिलने वाले धन पर रोक जैसे मुद्दों पर जानकारी दी. उन्होंने मुझसे सहयोग भी चाहा. पूर्व राष्ट्रपति ने आगे लिखा, "मैंने उन्हें बताया कि इस बोल्ड स्टेप के कारण अर्थव्यवस्था की गति कुछ समय के लिए धीमी हो सकती है. इसके लिए अतिरिक्त सतर्कता बरतनी चाहिए ताकि गरीबों पर लंबे समय के लिए कष्ट न हो. इसके साथ ही मोदी से पूछा कि क्या आप इस बारे में आश्वस्त हैं कि 'बदलने के लिए पर्याप्त मुद्रा उपलब्ध है.' प्रणब दा ने लिखा है कि मैंने उन्हें अपना समर्थन दिया.
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय का जिक्र करते हुए प्रणब मुखर्जी ने लिखा, "सत्तर के दशक में प्रधानमंत्री कार्यालय को नोटबंदी हेतु एक पत्र भेजा था, लेकिन उसे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वीकार नहीं किया. उन्हें मेरे सुझाव स्वीकार नहीं थे, उनका कहना था कि अभी तक अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा पूरी तरह मुद्रा पर निर्भर नहीं है, वहीं इसका बड़ा हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़ा हुआ है. इंदिरा गांधी ने तर्क दिया कि यदि ऐसा किया जाए तो हो सकता है कि लोगों का मुद्रा नोट से विश्वास ही उठ जाए."अपनी किताब में मुखर्जी ने नोटबंदी के निर्णय पर उठने वाले सवालों को जायज बताया है, क्योंकि इससे लोगों का बैंकिंग सिस्टम में भरोसा हिल गया था.
प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि यह बात भी बिना किसी विरोध के कहनी होगी कि काला धन वापसी, काला धन के कारोबार को पंगु करने और कैशलेस समाज की सुविधा जैसे नोटबंदी के कई लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हो सकी.