Corona Vaccination: देशभर में कोवैक्सीन लगवाने से इनकार और बवाल पर जानिए क्या कह रहे विशेषज्ञ

कोवैक्सीन अब तक सारे सुरक्षा मानकों पर सही उतरी- सांकेतिक फोटो ( news19 creative)
Covid Vaccination in India: कोरोना वायरस के खिलाफ भारत में कोवैक्सीन और कोविशील्ड को लगाने की मंजूरी दी गई है लेकिन फ्रंटलाइन वर्कर्स और डॉक्टरों का एक बड़ा हिस्सा कोवैक्सीन लगवाने से इनकार कर रहा है. इनका कहना है कि कोवैक्सीन के तीसरे फेज का ट्रायल पूरा होने से पहले इसे इस्तेमाल की मंजूरी दे दी गई है. आईसीएमआर के विशेषज्ञ कोवैक्सीन को लेकर उठाए जा रहे सभी सवालों के जवाब यहां दे रहे हैं.
- News18Hindi
- Last Updated: January 22, 2021, 5:39 PM IST
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के महामारी विज्ञान और संक्रामक रोग विभाग के प्रमुख डॉ. समिरन पांडा ने वैक्सीन को लेकर फैले संदेहों को सिरे से खारिज किया है. साथ ही बताया है कि न केवल कोवैक्सीन के इमरजैंसी इस्तेमाल को मिली मंजूरी नियमानुसार सही है बल्कि आज के दौर में यह बेहद जरूरी भी है. डॉ. पांडा ने वैक्सीन को लेकर तमाम सवालों पर अपनी राय दी है.
सवाल 1: कोरोना टीकाकरण अभियान को किस रूप में देखते हैं, जबकि देश में कोरोना संक्रमण की संख्या में कमी देखी जा रही है ?जवाब: हां, यह सच है कि अभी महामारी घट रही है, लेकिन भारत एक विशाल देश है. कुछ राज्य ऐसे हैं, जहां हम संक्रमण की दूसरी और तीसरी लहर देख रहे हैं. इसके अलावा कुछ ऐसे स्थान भी हैं, जहां कोरोना की मृत्यु दर (Corona Death Rate) अभी भी राष्ट्रीय औसत से ऊपर है. इसके अलावा, नए म्यूटेंट आज अपनी उपस्थिति बना रहे हैं. उसकी पूरी जानकारी अभी तक विशेषज्ञों के पास नहीं है. जब हम विश्व स्तर पर देखें, तो यह बात सामने आती है कि इससे पहले कभी भी वैज्ञानिकों ने इतने कम समय में टीका नहीं लगाया था. वह 12 जनवरी, 2020 था, जब वैज्ञानिकों ने वायरस के जीनोमिक मेकअप को डीकोड किया और इतने सारे टीके 10 महीने से भी कम समय में नैदानिक परीक्षणों में प्रवेश करने के लिए तैयार हो गए. इसलिए हमारी सलाह है कि हम लोग बुद्धिमानी दिखाएं और कोरोना टीका लगवाएं. वैज्ञानिकों ने पूरा जांच-परख करने के बाद ही टीका बनाया है.
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सवाल 2: भारत बायोटेक के कोवैक्सिन को तीसरे फेज के ट्रायल पूरा करने से पहले ही प्रयोग की अनमुति दे दी गई, इस फैसले को आप कैसे देखते हैं ?
जवाब. यह सच है कि हम एक महामारी से प्रभावित हैं. इस तरह के संकट में, वैज्ञानिकों और नियामक अधिकारियों को नई जानकारियों से लैस होना होता है. एक वैक्सीन के आकलन के तेज तरीके खोजने होते हैं, लेकिन निश्चित रूप से इसकी सुरक्षा से भी कोई समझौता नहीं कर सकते.
पहले चरण में सुरक्षा के लिए एक टीका विकसित किया जाता है. दूसरे चरण में अतिरिक्त सुरक्षा डेटा प्राप्त करने के साथ ही इसकी प्रतिरक्षा का परीक्षण किया जाता है. तीसरे चरण के ट्रायल में हम एक समूह को वैक्सीन और दूसरे ग्रुप को प्लासीबो देते हैं और यह जांच करते हैं कि जिस समूह को प्लेसीबो दिया गया था उसमें संक्रमण की संख्या वैक्सीन दिए गए ग्रुप से कहीं ज्यादा है. वास्तव में प्लेसीबो वाले ग्रुप में संक्रमण की संख्या ज्यादा होनी भी चाहिए क्योंकि इसी से हमें पता चलता है कि वैक्सीन वायरस के संक्रमण की संभावना से सुरक्षा कर रही है.
रेगुलेटरी अथॉरिटीज ने कोवैक्सीन को मंजूरी देने से पहले इन सभी बिंदुओं पर निश्चित ही विचार किया होगा. कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब देने के लिए, जैसे कि हम तीसरे चरण के ट्रायल पूरा होने तक इंतजार कर सकते हैं. तो इसके लिए अथॉरिटीज को कोरोना महामारी के विभिन्न पहलुओं को देखना होगा. जैसे कि यह जीवन पर कैसे प्रभाव डाल रहा है.
सवाल 3: कोवैक्सीन के विकास के विभिन्न चरणों के बारे में बताइए.
जवाब. एक टीके का परीक्षण सबसे पहले छोटे जानवरों जैसे चूहे, हम्स्टर और खरगोश पर किया जाता है. इस दौरान टीके के प्रभाव खासकर संभावित विषाक्तता पर ध्यान दिया जाता है. अच्छे परिणामों के बाद, टीके को बड़े जानवरों जैसे कि रीसस, बंदरों पर परीक्षण किया जाता है क्योंकि कुछ मानव रोगों की नकल की जाती है. इसके बाद जांच के तहत, वैक्सीन देकर जानवरों के एक समूह को वायरस के संपर्क में लाया जाता है, जबकि दूसरे समूह को वायरस का टीका लगाए बिना ही वायरस के संपर्क में लाया जाता है. कोवाक्सिन के मामले में, हमने पाया कि टीका लगाए गए जानवर अपने श्वसन पथ से संक्रमण को बहुत तेजी से दूर कर पा रहे थे. हिस्टोपैथोलॉजी से पता चला कि उनके सभी ऊतक सामान्य थे, जबकि जिन जानवरों को टीका नहीं दिया गया था, उनमें वायरस ( सार्स कोविड-2) से लड़ने के बाद ऊतको का नुकसान बहुत ज्यादा हुआ था. इसके बाद, जब भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को मानव परीक्षण के पहले चरण में ले जाया गया तो इसके परिणाम बहुत ज्यादा प्रभावशाली आए. आप जानते हैं कि एक टीके की तीन महत्वपूर्ण मापदंडों पर जांच की जाती है. पहला सुरक्षा, दूसरा यह पर्याप्त प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (इसकी इम्यूनोजेनेसिटी) को जन्म देता है, और तीसरा, प्रतिरक्षा प्रणाली कब तक संक्रमण (वैक्सीन प्रभाव का स्थायित्व) को दूर रख सकती है.
