श्रीनगर के शिल्पकार गुलाम नबी दार अपनी कला के लिए दुनियाभर में फेमस हैं.
भारत अपनी लोक परंपरा, कला और सांस्कृतिक विरासत के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है. जब भी सुंदरता और कला का जिक्र किया जाता है तो कश्मीर की खूबसूरत नक्काशी का नाम जरूर लोगों को जुबां पर आता है. इसी कला,संस्कृति और हुनर को जिंदा रखने का जिम्मा उठाया है श्रीनगर के रहने वाले डार (Srinagar based artisan Ghulam Nabi Dar ) ने. 70 साल के शिल्पकार गुलाम नबी अखरोट की लकड़ी पर अपने खूबसूरत नक्काशी से बने कलाकृतियों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं, लेकिन इनका सफर आसान नहीं था.
शिल्पकार गुलाम नबी डार कहते हैं, ‘गरीबी की वजह से मैंने इस कला को शुरू किया. लेकिन उस वक्त जो अनुभवी कलाकार थे वो किसी को सिखाने के लिए तैयार नहीं थे. वे कहते थे मैं अभी बहुत छोटा हूं. ये काम तो बड़ों का है. मैं पार्कों में जाया करता था और वहां फूलों को खिलते हुए देखा करता था. फिर मैं उन्हीं फूलों के साथ बैठ जाता था. वहां से गुजरने वाले लोग सोचते थे की ये मैं क्या कर रहा हूं.’
शिल्पकार गुलाम नबी दार बोले ‘लोग मुझे पागल कहते थे’
गुलाम नबी डार बताते हैं, ‘फूलों के पास मुझे देखकर लोग पागल कहते थे. इस कला के लिए मैंने काफी कुछ सहन किया है.’ गरीबी के कारण गुलान नबी के पिता ने 5वीं क्लास में ही उन्हें एक लकड़ी की कार्यशाला में नौकरी पर लगा दिया, लेकिन वो इससे खुश नहीं थे क्योंकि वे अपनी कल्पना को अंजाम नहीं दे पा रहे थे. फिर उन्होंने वो नौकरी छोड़ी और बड़े कारिगरों के साथ काम करने लगे और लगातार अपने हुनर को तराशा. यही वजह है कि आज श्रीनगर के घरों के दरवाजों पर उनकी नक्काशी की कलाकृति हर जगह दिखाई देती है. इतना ही नहीं गुलाम नबी डार अपने कला के दम पर थाईलैंड, जर्मनी और ईराक जैसे देशों तक पहुंच गए. गुलाम नबी ने अपनी पूरा जीवन जम्मू-कश्मीर की इस धरोहर को बचाने, इसे संभालने और इसे जीवित रखने के लिए समर्पित कर दिया है.
15वीं सदी में कश्मीर में शुरू हुई थी लकड़ी की नक्काशी
15वीं शताब्दी में कश्मीर में लकड़ी की नक्काशी की कला शुरू हुई थी. हालांकि, इस विलुप्त होती परंपरा को गुलाम नबी डार जैसे शिल्पकारों जीवित रख रहे हैं. उनके बनाए हैंडमेट ज्वैलरी को दुनिया भर में पहचान मिली है. छोटी उम्र से ही गरीबी और कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद वे डटे रहे और अब इस क्षेत्र के कुछ बचे हुए उस्तादों में से एक हैं. अपने जुनून, समर्पण और कड़ी मेहनत से डार ने न केवल इस कला को जीवित रखा है बल्कि दुनिया को भारत की समृद्ध वूड क्राफ्ट की विरासत से अवगत भी कराया.
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