नई दिल्ली. कोरोना महामारी के दौर में लगभग सभी ने RT-PCR टेस्ट के बारे में सुना होगा. बहुतों ने कराया भी होगा. लेकिन क्या कभी सोचा है कि ये आखिर होता क्या है? लैब में इस टेस्ट के दौरान क्या-कैसे देखा जाता है? इसी से जुड़ा है, N Gene और ORF1ab, जिन पर लैब टेक्निशियंस की नजरें ज्यादा रहती हैं? इसी तरह की एक शब्द CT value भी खूब चर्चा में रहा है. इससे कोरोना संक्रमण की स्तर मापा जाता है. लेकिन क्या यह प्रमाणिक है? जानते हैं इनके बारे में सब कुछ
RT-PCR टेस्ट क्या है ?
रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमरीज चेन रिएक्शन यानी RT-PCR टेस्ट एक मॉलिक्यूलर टेस्ट होता है. मॉलिक्यूल मतलब अणु. ये कई तरह के होते हैं. जैसे प्रोटीन्स, कार्बोहाइड्रेट्स, लिपिड्स और न्यूक्लियक एसिड्स आदि. इन्हें दुनिया में हर जिंदा जीव का मूल तत्व कहा जा सकता है. शरीर में ऐसे असंख्य मॉलिक्यूल्स होते हैं. RT-PCR टेस्ट में कोरोना का पता उसके वायरस में मौजूद खास तरह के इन्हीं मॉलिक्यूल्स के जरिए ही लगाया जाता है. कोरोना वायरस (Corona Virus) की सतह पर कुकुरमुत्ते की तरह के स्पाइक्स यानी खूंटे जैसे होते हैं. इन्हीं में ऐसे प्रोटीन मौजूद रहते हैं, जो इंसानी शरीर के अंदर डिफेंस का काम करने वाले सेल्स पर हमला करते हैं.
RT-PCR टेस्ट होता कैसे है ?
इसकी शुरुआत नमूने यानी सैंपल लेने से होती है. आमतौर पर दो जगहों से सैंपल लिया जाता है. एक- मुंह के अंदर लार से और दूसरा- नाक के अंदर बलगम से. एक छोटे से रूई के फाहे (स्वैब) को इन दोनों जगहों पर लार और बलगम से भिगोया जाता है. उसे शीशीनुमा डिब्बी में सीलबंद करके पैथलॉजी लैब में आगे की जांच के लिए भेज दिया जाता है. लैब में टेस्ट का दूसरा चरण शुरू होता है. वहां सैंपल में इंसानी डीएनए के अंश मिलाए जाते हैं. इंसानी डीएनए को वायरस के डीएनए जकड़ लेते हैं तो संक्रमण की पुष्टि हो जाती है. यहां बता दें कि कोरोना का वायरस मूलरूप से RNA वायरस होता है. उसे पहले DNA में बदला जाता है. इसके लिए RNA में कुछ खास एंजाइम मिलाए जाते हैं. उसके बाद इंसान और कोरोना वायरस के डीएनए के मिश्रण को PCR मशीन में रखा जाता है. ये मशीन फ्लूरोसेंट डाई यानी चमकदार रंग छोड़ती है, टारगेट डीएनए में उसकी मात्रा में होने वाली बढ़ोतरी को मापा जाता है.
और ORF1ab क्या है ?
कोरोना वायरस शरीर में एक और हथियार लेकर आता है. इसका नाम है ORF1ab.ये बेसिकली दो चीजों से मिलकर बना होता है- ORF1a और ORF1b. अमेरिका के नैशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नॉलजी इन्फॉर्मेशन (NCBI) के मुताबिक, कोरोना के Sars-CoV-2 वायरस को इसी ORF1ab के जरिए अपनी संख्या बेहद तेजी से बढ़ाने में मदद मिलती है. ये कोरोना वायरस के अंदर इंसानी शरीर के डिफेंस को नाकाम करने की ताकत भी बढ़ाता है.
टेस्ट और CT वैल्यू का क्या संबंध है?
कोरोना के RT-PCR टेस्ट की रिपोर्ट में जिस चीज पर डॉक्टरों की नजरें ज्यादा रहती हैं, वो है CT वैल्यू. CT का मतलब साइकल थ्रैशहोल्ड (cycle threshold). इसका पता लगाने के लिए RT-PCR टेस्ट के दौरान स्वैब के सैंपल में इंसानी डीएनए मिलाकर उसे पीसीआर मशीन में रखा जाता है. फिर इसे गर्म करने और ठंडा करने का सिलसिला शुरू होता है. इस सिलसिले को साइकल (यानी चक्र) कहते हैं. हर चक्र में कुछ केमिकल रिएक्शन होते हैं और वायरस का डीएनए अपनी कॉपी यानी प्रतिरूप तैयार कर लेता है.
आमतौर पर RT-PCR में सैंपल को गर्म करने और ठंडा करने के 35 चक्र (साइकल) दोहराए जाते हैं. हर चक्र में डीएनए के टारगेट सेक्शंस की संख्या दोगुनी हो जाती है. जैसे-जैसे संख्या बढ़ती है, उस पर केमिकल के रूप में फ्लूरोसेंट डाई यानी चमकदार रंग बढ़ता चला जाता है. इसी चमकदार रंग की मात्रा (CT Value) को कंप्यूटर की मदद से हर चक्र के बाद मापा जाता है. जब रंग की मात्रा एक निश्चित मानक तक पहुंच जाती है, तब वायरस की पुष्टि कर दी जाती है.
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के मुताबिक, जितने चक्र या साइकल में फ्लूरोसेंट डाई उस मानक तक पहुंचती है, उसे CT वैल्यू के रूप में दर्ज किया जाता है. जितनी कम CT वैल्यू होगी, वायरस का लोड उतना ही ज्यादा होगा. अगर 35वें चक्र तक भी वायरस का पता नहीं चलता तो रिजल्ट निगेटिव घोषित कर दिया जाता है.
ये जीन वायरस के स्पाइक्स में मौजूद रहते हैं. RT-PCR टेस्ट मुख्य रूप से इन्हीं की पहचान के लिए किया जाता है. N जीन यानी न्यूक्लियोकैप्सिड (nucleocapsid). ये जीन मूलरूप से एक प्रोटीन होता है. कोरोना का वायरस इंसान के शरीर में किस तरह घुसपैठ करके जगह बनाएगा और जिंदा रहेगा, यही तय करता है. हमारे शरीर के अंदर इस तरह का सिस्टम होता है कि अगर कोई वायरस अंदर घुसता है तो बॉडी सेल्स उस पर टूट पड़ते हैं. वह इंटरफेरॉन्स (interferons) छोड़ते हैं. ये भी एक तरह के प्रोटीन्स होते हैं. ये वायरस को कमजोर करने की कोशिश करते हैं. इंसानी शरीर के सेल्स और कोरोना वायरस की इसी जंग में N जीन उसकी मदद करते हैं. इसी की वजह से बॉडी सेल्स कोरोना के खिलाफ जंग में कमजोर पड़ जाते हैं.
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