S-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम का पहला बेड़ा पंजाब सेक्टर में होगा तैनात. फाइल फोटो
नई दिल्ली: मॉस्को से पहला एस-400 मिसाइल सिस्टम (S-400 Missile System) भारत के लिए निकल चुका है. यह वह सिस्टम है जिसे खरीदने के लिए भारत ने 5.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए हैं. बताया जा रहा है कि यह करार अमेरिकी प्रतिबंध की धमकी के तहत किया गया है. एस-400 दुनिया का सबसे बेहतरीन हवाई सुरक्षा सिस्टम (Air Defence System) है, जो ड्रोन से लेकर बैलिस्टिक मिसाइल (Ballistic Missile) तक हर एक चीज का सामना करने की काबिलियत रखता है.
एस-400 ट्रायम्फ हवाई सुरक्षा सिस्टम क्या है
वाशिंगटन (Washington) के सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडी के मुताबिक, एस-400 ट्रायम्फ, एक मोबाइल, सतह से हवा में मार करने वाला मिसाइल सिस्टम है. जो एयरक्राफ्ट, यूएवी, क्रूज मिसाइल (Cruise Missile) और बैलिस्टिक मिसाइल को रोकने की काबिलियत रखता है.
ऐसा माना जाता है कि इस अत्याधुनिक मिसाइल सिस्टम का विकास 1993 में सोवियत यूनियन के पतन के तुरंत बाद किया गया था. इसे एस-300 मिसाइल सुरक्षा सिस्टम की तर्ज पर तैयार किया गया है जिसमें मिसाइल संग्रहण, कंटेनर, लॉन्चर और राडार जैसे पहलू भी शामिल हैं. कहा जाता है कि एस -400 का परीक्षण 1999 या 2000 की शुरुआत में प्रारंभ हुआ था. पहला हथियार 2007 में बनकर चालू हुआ था. रूस ने एस-400 की विभिन्न इलाकों में तैनाती की जिसमें मॉस्को का रक्षातंत्र भी शामिल है. रूस ने एस-400 को 2015 में इसे सीरिया और मॉस्को के क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद उसके कुछ हिस्सों में भी इसे तैनात किया था.
कितना ताकतवर है एस-400 सिस्टम
यह मिसाइल सिस्टम 400 किमी की रेंज में किसी भी हवाई लक्ष्य को साधने की क्षमता रखता है, खास बात ये है कि एक ही वक्त में 36 लक्ष्य एक साथ साध सकता है. इसे सक्रिय करने में पांच मिनट का वक्त लगता है. ये रूस के पहले वाले हवाई सुरक्षा तंत्र से दोगुना ज्यादा असरदार है. और इसमें मौजूदा और भविष्य की हवाई, आर्मी और नौसेना की इकाई के साथ एकीकृत होने की क्षमता है.
एक साथ कई लक्ष्यों को भेदने वाले एस-400 में चार प्रकार की मिसाइल जिसमें पुराने वाले एस-300 के वेरियंट भी शामिल हैं, होती हैं. इनमें पहला है, 48N6DM जो 250 किमी की रेंज में हवाई लक्ष्यों को भेद सकता है. वहीं 40N6 की रेंज 400 किमी की होती है और जो लंबी दूर पर ही हवाई लक्ष्यों को रोकने के लिए सक्रिय रडार होमिंग का इस्तेमाल करती है.
एस-400 इलेक्ट्रॉनिक काउंटर –काउंटरमेजर्स (यानी मुकाबला करने और हमले पर दिए गए जवाब) जैसी अत्याधुनिक तकनीक के साथ आता है, जो जाम करने के प्रयासों को विफल करता है और साथ ही इसका राडार कम क्षमता वाले लक्ष्यों को पता करने की क्षमता रखता है.
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इसी तरह 9M96E और 9M96E2 मध्यम रेंज की जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल है. यह तेज गति से जाने वाले लक्ष्यों जैसे फाइटर एयरक्राफ्ट को मारने की ताकत रखती है. 9M96E की रेंज 120 किमी है. इसके अलावा 77N6 पर फिलहाल परीक्षण चल रहा है. जिसमें मार गिराने की ताकत होती है. जिसे खासतौर पर बैलिस्टिक मिसाइल को नष्ट करने के लिए डिजाइन किया गया है.
अपने प्रतियोगियों की तुलना में यहां कहां टिकता है
GlobalSecurity. org की रिपोर्ट बताती है कि एस-400 रूस की मिसाइल सुरक्षा और वायु सुरक्षा के मामले में मील का पत्थर साबित होगा. संभव है कि ट्रायम्फ अकेला ऐसा सिस्टम होगा जो करीबी, मध्यम और दूर की रेंज की सुरक्षा कर सकता है. रूस का दावा है कि युद्ध के मामले में एस-400 का दुनियाभर में कोई मुकाबला नहीं है.
रिपोर्ट बताती है कि इसकी तुलना में अमेरिका का बना टर्मिनल हाइ एल्टिट्यूड एरिया डिफेंस यानी थाड की रेंज छोटी है और वह क्षितिज के पार लक्ष्य भेदने की क्षमता नहीं रखता है. केवल एंटी बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम होने की वजह से वो अन्य हवाई लक्ष्यों को साध नहीं सकता है. एस-400 की एक और खूब है, चलाओ और भूल जाओ.. यानि मिसाइल में लगी हुई होमिंग डिवाइस लक्ष्य को लॉक करके खुद ब खुद खत्म कर देती है.
रूस के सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि एस-400 रेंज और एल्टिट्यूड दोनों में ही अमेरिकी सिस्टम से कहीं गुना बेहतर है. यह 400 किमी की रेंज में लक्ष्य साध सकता है वहीं क्रूज मिसाइल या दुशमन के एयरक्राफ्ट को 10 मीटर के एल्टिट्यूड पर भी नष्ट कर सकता है.
ऑबजर्वन रिसर्ज फाउंडेशन की रिपोर्ट बताती है कि जहां तक भारत की ज़रूरत की बात है, इसकी क्षमता और लंबी दूरी की मारक क्षमता की सामने और कोई प्रणाली टिकती नहीं है. यही नहीं एस-400 कॉन्फिगरेशन की लागत पश्चिमी समकक्षों से लगभग आधी है.
एस-400 किन देशों के पास
आर्मी-टेक्नोलॉजी के मुताबिक, रूसी सेना की 20 से ज्यादा टुकड़ियां 2015 से एस-400 ट्रायम्फ का संचालन कर रही हैं. इनकी योजना 2020 तक इसे 50 ले जाने की थी. वो देश जिनके पास यह मिसाइल सिस्टम में उनमें 2015 में सबसे पहले इसे लेने वालों में अल्जीरिया और रूस का करीबी बेलारूस है.
चीन ने 2018 में दो सिस्टम लिए थे वहीं तुर्की ने 2019 में पहली बटालियन के लिए इसे लिया था. भारत ने 2018 में 5 एस-400 ट्रायम्फ सिस्टम खरीदने के करार पर हस्ताक्षर किए थे. 5.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का यह सौदा भारत के अब तक के सबसे बड़े सौदों में से एक है.
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