सौरभ कृपाल कहते हैं कि 'शुरू में मुझे बस इतना पता था कि मुझे लड़कों से प्यार है.' (फाइल फोटो)
नई दिल्ली. वरिष्ठ वकील और अपने समलैंगिक होने को खुले तौर पर स्वीकार करने वाले सौरभ कृपाल (Saurabh Kirpal) उन पांच अधिवक्ताओं में शामिल हैं, जिनका नाम सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 19 जनवरी को उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए दोहराया था. अगर केंद्र सरकार की मंजूरी मिलती है तो वह भारत के पहले खुले तौर पर समलैंगिक न्यायाधीश (First Gay Judge) हो सकते हैं. लेकिन उनकी जिंदगी इतनी भी आसान नहीं थी.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार 1980 के दशक में दिल्ली में पले-बढ़े सौरभ कृपाल के पास उस समय बताने के लिए शब्द नहीं होते थे, जो वह मसूस करते थे. इसके बारे में बात करते हुए वह कहते हैं, ‘उस समय ‘गे’ शब्द मुश्किल से ही अस्तित्व में था. मुझे बस इतना पता था कि मुझे लड़कों से प्यार है. मुझे बस इतना ही पता था.’ जैसे-जैसे समय बीतता गया, वैसे-वैसे सौरभ खुद को बेहतर समझने लगे. वह आगे कहते हैं ‘जैसे-जैसे समय बीतता गया, मैं खुद को और अधिक प्यार करने लगा. और इन सबसे ऊपर, मैंने खुद को बहुत अधिक स्वीकार करना शुरू कर दिया.’
मालूम हो कि सौरभ कृपाल न्यायमूर्ति बीएन कृपाल (भारत के 31वें मुख्य न्यायाधीश) और अरुणा कृपाल के तीन बच्चों में सबसे छोटे हैं. उन्होंने सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली से स्नातक की पढ़ाई की. इसके बाद वह कानून में स्नातक की डिग्री के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय चले गए. उनका कहना है कि ‘यह उस समय के आसपास था जब वह अपनी दूसरी डिग्री के लिए यूके में थे.’ उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अपनी मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद खुद को थोड़ा बेहतर समझना शुरू किया.
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वह कहते हैं, ‘एक बच्चे के रूप में, जब मैं अलग-अलग विषयों की जानकारी हासिल करता था, तब मैं यौन क्रिया के वर्णन को पढ़कर भ्रमित हो जाता था. मैं एक महिला के साथ कुछ भी करने की कल्पना नहीं कर पाता था, खासकर जब ऐसे अहसास के साथ मुझे स्कूल में लड़कों पर क्रश था! उस समय कोई किताबें नहीं थीं, कोई इंटरनेट नहीं था, मूल रूप से इसे लेकर कोई जानकारी नहीं थी.’
ऐसे हुई थी पार्टनर से मुलाकात
साल 2001 में जब वह जिनेवा में थे, उस दौरान उनकी मुलाकात एक स्विस नागरिक निकोलस जर्मेन बाकमैन (Nicolas Germain Bachmann) से हुई. निकोलस रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति के साथ काम कर रहे थे और सिएरे लियोन के प्रमुख थे, उस समय वह अपनी मां से मिलने जिनेवा जा रहे थे. सौरभ कृपाल कहते हैं, ‘निको को तीन महीने के लिए जिनेवा में रहना था, लेकिन हमें इतना ज्यादा प्यार हो गया था कि वह दो हफ्ते में मेरे साथ आ गए.’
क्या था परिवार का रिएक्शन
साल 2004 में कपल ने भारत आने का फैसला किया. वह कहते हैं, ‘मैं हमेशा से भारत वापस आने का इरादा रखता था. जब हम प्यार में पड़ गए, तो निको ने भी मेरा साथ दिया और वह भी मेरे साथ आ गए.’ परिवार के रिएक्शन पर वह कहते हैं, ‘मेरे दोस्त और परिवार निको से मिले. हमारी आशंकाएं अक्सर इस बात से उपजती हैं कि परिवार कैसे प्रतिक्रिया देगा, मेरे मामले में शुरू से ही मेरे माता-पिता को उससे प्यार हो गया था. वे उसे पसंद करते थे.’
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