रुद्रप्रयाग. कहा जाता है कि पहाड़ का पानी और जवानी उसके काम नहीं आती है. इस कहावत को गलत साबित करने का काम किया है रुद्रप्रयाग जिले के कोटमल्ला गांव के जगत सिंह ने. उन्होंने एक ऐसा जंगल लगा दिया है जिससे पानी भी ठहरता है और लोगों को रोजगार भी मिल रहा है. प्रेम से लोगों ने उनको ‘जंगली’ नाम दिया है. ये नाम उनको अपने गांव में अकेले दम पर जंगल लगाने के लिए दिया गया है. उत्तराखंड के किसी भी आम नौजवान की तरह जगत सिंह चौधरी जब जवान हुए तो बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स की नौकरी करने लगे.
जगत सिंह जब भी छुट्टियों में अपने गांव लौटते तो उनको एक बात से बहुत तकलीफ होती थी. उनके गांव की महिलाएं जलावन और चारे के लिए 10 से 15 किलोमीटर दूर जंगलों में जाती थीं. इस काम में उनका पूरा दिन निकल जाता था. इतना ही नहीं कई बार जंगली जानवर महिलाओं पर हमला कर देते थे. जिसमें कई महिलाएं घायल हो जाती थीं और कुछ महिलाओं की तो जान भी चली जाती थी. महिलाओं की इस तकलीफ से जगत सिंह बहुत परेशान हो गए.
महिलाओं की तकलीफ से हुए जगत सिंह बेचैन
महिलाओं की तकलीफ को दूर करने के लिए जगत सिंह को एक उपाय सूझा. उनकी एक पुश्तैनी पहाड़ी जमीन बंजर और खाली पड़ी हुई थी. करीब 7 एकड़ की ये जमीन ढालू थी, जिसमें पानी नहीं रुकता था. जगत सिंह ने इसी जमीन में चारे और जलावन के लिए पेड़ लगाने का फैसला किया. इसके बाद 1973-74 से जगत सिंह जब भी छुट्टियों में घर आते तो इसी जमीन में पेड़ लगाते थे. उसके बाद वह साल में दो बार छुट्टियों में घर आने लगे और पेड़ों की देखभाल करने लगे. वे बरसात में जरूर छुट्टी पर घर आते और पेड़ लगाते थे. 1980 में रिटायर होने के बाद जगत सिंह ने अपना पूरा जीवन इसी जंगल को समर्पित कर दिया. वह पूरे दिन इसी जंगल में काम करते, गड्ढे बनाते, खाई खोदते और पेड़ों की देखरेख करते थे. जगत सिंह 3 किलोमीटर दूर से पानी लाकर पेड़ों को जिंदा रखते. धीरे-धीरे ये पेड़ बड़े होने लगे.
लगातार 19 साल तक की तपस्या
जगत सिंह की करीब 19 साल की मेहनत और तपस्या के बाद उनके लगाए पेड़ जंगल बन गए. 1993 में स्थानीय राजकीय हाई स्कूल, लदौदी के प्रधानाचार्य रमेश चंद्र सिरावत और कुछ क्षेत्रीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बाकायदा सर्टिफिकेट जारी कर उनको ‘जंगली’ की उपाधि से सम्मानित किया. क्योंकि उन्होंने अपने गांव में जंगल लगा दिया था. इस पर पत्रकारों की नजर पड़ी और ये खबर अखबारों में छप गई. जगत सिंह जंगली को अब तक 100 से ज्यादा सामाजिक सम्मान मिल चुके हैं. उन्हें 2002 में वृक्षमित्र पुरस्कार मिला 1995 में विज्ञान भारती ने उनको आर्यभट्ट पुरस्कार से सम्मानित किया.
सरकारी अधिकारियों ने अपनाया मॉडल
जब ये खबर अखबारों में छपी तो इसे पढ़कर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव (उत्तरांचल) डॉ. आर.एस. टोलिया 10 दिन के बाद ही जगत सिंह ‘जंगली’ के घर पहुंच गए. उन्होंने उनके पूरे जंगल का निरीक्षण किया. इसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के कृषि विभाग, वन विभाग और सभी जिला अधिकारियों को पत्र लिखकर ‘जंगली’ के मॉडल को देखने और बरसात से पहले उसके आधार पर वृक्षारोपण के प्रोजेक्ट बनाने के निर्देश दिए. आर.एस. टोलिया ने जगत सिंह जंगली से वचन लिया कि अब वे अपने गांव से बाहर निकालकर लोगों को इसके बारे में जानकारी बांटेंगे.
जंगल में शुरू की प्राकृतिक खेती
जगत सिंह ‘जंगली’ ने उन पेड़ों के बीच प्राकृतिक खेती 1990 में ही शुरू कर दी थी. उन्होंने हल्दी, अदरक, इलायची जैसे मसाले और सब्जियां वहां पर उगाना शुरू कर दिया. इस तरह उस जंगल से उन्होंने अपनी आमदनी अर्जित की. जंगल लगाने का परिणाम यह हुआ कि उस बंजर जमीन में पत्तियों के गिरने के कारण ह्यूमस और कॉर्बन बढ़ने लगा. जगत सिंह ने कुछ जड़ी-बूटियां भी अपने जंगल में लगाने का काम किया. जगत सिंह ने एक और काम किया है. जब 2002 में उत्तराखंड के राज्यपाल उनका जंगल देखने आए तो उन्होंने आग्रह किया कि अभी जड़ी-बूटियों को उगाने और बेचने पर प्रतिबंध है. आप इस प्रतिबंध को हटाने के लिए प्रयास करें. इस पर फौरन सरकार ने कदम उठाया और अब उत्तराखंड में जड़ी-बूटियों को उगाने और बेचने को कोई प्रतिबंध नहीं है. इससे छोटे किसानों को लाभ हुआ.
बंजर जमीन से फूटा पानी का सोता
आज 40 साल बाद पेड़ों की जड़ें इतनी मजबूत हो गई हैं कि वे मिट्टी और पानी को रोक लेती हैं. करीब 40 साल पहले बंजर पड़ी उस जमीन से आज पानी का सोता फूट रहा है. जिससे जगत सिंह के साथ ही उनके गांव के लोग भी लाभ उठा रहे हैं. उनके सोते के बहते पानी को गांव में नीचे रोकने के लिए सरकार ने टैंक बनवाया है.
क्लाइमेट चेंज रोकने के लिए जंगल जरूरी
जगत सिंह ‘जंगली’ ने पर्यावरण संरक्षण और क्लाइमेट चेंज को रोकने के लिए वुड, स्टोन और पिट टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल किया है. इनके जंगल लगाने से इलाके में बायो डायवर्सिटी बढ़ी है. अब तक 10 लाख से ज्यादा छात्र उनके लगाए जंगल को देखने के लिए आ चुके हैं. विदेशों से अनेक शोधकर्ता इस बात की खोज में वहां आते हैं कि किस तरह उन्होंने इतना बड़ा एक जंगल लगा दिया है. जगत सिंह का कहना है कि अगर क्लाइमेट चेंज रोकना है तो पौधे लगाने चाहिए. इससे जल, जंगल और जमीन का संरक्षण होगा. जिससे हिमालय के ग्लेशियरों को बचाया जा सकता है.
पहाड़ी राज्यों को मिले पर्यावरण रायल्टी
जगत सिंह ‘जंगली’ ने 1997 में पर्यावरण बचाने के लिए हिमालय के सभी पहाड़ी राज्यों को रॉयल्टी देने की बात कही. उन्होंने कहा कि हिमालय के लोगों के पानी और शुद्ध हवा के कारण देश में खेती हो रही है. इसलिए उनको रायल्टी देनी चाहिए. इसके लिए जगत सिंह ने रुद्रप्रयाग से दिल्ली के राजघाट तक पदयात्रा की. उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल और राष्ट्रपति के. आर. नारायण को भी एक मांग पत्र दिया था.
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पर्यापरण और रोजगार दोनों जरूरी
जगत सिंह ‘जंगली’ का कहना है कि पर्यावरण बचाने के साथ-साथ रोजगार की व्यवस्था करना भी जरूरी है. इस दिशा में काम करने की जरूरत है. जगत सिंह ‘जंगली’ का मानना है कि पेड़ लगाना आसान है. जबकि उन्हें 10 साल तक बच्चे की तरफ पाल-पोस कर जिंदा रखना कठिन है. जगत सिंह ‘जंगली का मानना है कि ऐसे पेड़ लगाए जाने चाहिए, जिनसे रोजगार भी मिले. उनका मानना है कि अगर इंसान प्रकृति की सेवा करेंगे तो उसका आशीर्वाद जरूर मिलेगा. जगत सिंह जंगली का मानना है कि प्राकृतिक संसाधन संपन्न समाज ही सबल समाज है. प्राकृतिक संसाधन खत्म होने से समाज के साथ ही मानव का जीवन खत्म हो जाएगा. करोड़ों इंसानों की आजीविका जल, जंगल और जमीन से जुड़ी है और उसकी सुरक्षा जरूरी है.
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