डेढ़ सौ साल पुराने एडल्टी कानून की कमियां सामने आने के बाद उसकी समीक्षा की जरूरत भी अब महसूस की जा रही है. सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस पर सुनवाई की. महिला-पुरुष समानता की दृष्टि से ये धारा 497 में बदलाव खासा अहम माना जा रहा है
क्या है एडल्टरी या धारा 497 ?
यदि कोई पुरुष किसी विवाहित महिला के साथ उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है लेकिन उसके पति की सहमति नहीं लेता है तो उसे पांच साल की जेल होगी. लेकिन जब पति किसी दूसरी महिला के साथ संबंध बनाता है तो उसे अपने पत्नी की सहमति की कोई जरुरत नहीं है.
150 साल पुराना कानून
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान महिला और पुरुष को समान नजर से नहीं देखता और आपराधिक कानून पुरुष और महिलाओं के लिए बराबर है.
सीआरपीसी की धारा 198(2)
इस अपराध में सिर्फ पति ही शिकायत कर सकता है. पति की अनुपस्थिति में महिला की देखभाल करने वाला व्यक्ति कोर्ट की इजाजत से पति की ओर से शिकायत कर सकता है.
किसने दी थी चुनौती
जोसेफ शाइनी की जनहित याचिका में आइपीसी की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198(2) को चुनौती दी. दलील थी कि आज औरतें पहले से मज़बूत हैं. औरत को किसी भी कार्रवाई से छूट दे देना समानता के अधिकार के खिलाफ है.
याचिका के आधार पर शीर्ष अदालत की कार्रवाई
आपराधिक कानून लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता लेकिन यह धारा एक अपवाद है. इस पर विचार की ज़रूरत है. पति की मंजूरी से किसी और से संबंध बनाने पर इस धारा का लागू न होना दिखाता है कि औरत को एक संपत्ति की तरह लिया गया है.
इससे पहले 1954, 2004 और 2008 में आए फैसलों में सुप्रीम कोर्ट आईपीसी की धारा 497 में बदलाव की मांग को ठुकरा चुका है. यह फैसले 3 और 4 जजों की बेंच के थे इसलिए नई याचिका को 5 जजों की संविधान पीठ को सौंपा गया है.
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FIRST PUBLISHED : January 17, 2018, 16:02 IST