गिर के जंगलों से 7 और शेरों को निगरानी के लिए अलग रखा गया, मरने वाले शेरों की संख्या 14 हुई

फाइल फोटो
एक वरिष्ठ वन अधिकारी के मुताबिक दूसरे शेरों को संक्रमण के अंदेशे से बचाने के लिए अलग रखा जा रहा है
- News18Hindi
- Last Updated: September 27, 2018, 11:30 PM IST
गिर के डलखानिया वन क्षेत्र में सात शेरों को बचाया गया है. यहां शेरों के मरने से वन्य जीव संरक्षक और सरकारी महकमें पहले से ही तनाव में हैं. गिर अभयारण्य को दुनिया भर में एशियाई शेरों का अकेला ठिकाना माना जाता है.
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12 से 26 सितंबर के बीच यहा 14 एशियाई शेर रहस्यमय परिस्थितियों में मरे पाए जा चुके हैं. इनमें से 12 शेर डलखानिया और 2 जसधार वन क्षेत्र में मिले थे. प्रधान मुख्य वन संरक्षक अक्षय कुमार सक्सेना के मुताबिक –“डलखानिया वन क्षेत्र से सात शेरों को जसधार के पुनर्वास केंद्र में रखा गया है. इनकी सेहत ठीक है लेकिन इनकी निगरानी की जा रही है.”
याद रखने लायक है कि इससे पहले जिन 14 शेरों के अवशेष पाए गए हैं उनके बारे में ये भी पता करना मुश्किल हो रहा है कि वे नर थे या मादा. उनके अवशेषों के नमूनों को जांच के लिए भेज दिया गया था. जांच के बाद पता चला है कि शावकों की मौत किटकिटाने वाले जानवरों में होने वाले रोग डिस्टेंपर की वजह से नहीं हुई है.एक अधिकारी के मुताबिक छह शेरों की मौत आपसी लड़ाई की वजह से हुई है. इसके अलावा बाकी शेर फेफड़ों और लिवर के फेल होने से मारे गए बताए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि इसकी वजह से शेरों को अलग रखना जरूरी था.
वन सुरक्षा के मुखिया जीके सिंहा ने 21 सितंबर को मीडिया से कहा था कि शेर चूंकि परंपरागत तौर पर अपना इलाका बनाने वाला जानवर होता है लिहाजा उनके बीच लड़ाई होना स्वाभाविक है. और उस वक्त तक मारे गए 11 शेरों की मौत को उन्होंने किसी भी तरह से अस्वाभाविक मौत नहीं माना था.
उन्होंने ये भी कहा था कि शेरों की संख्या ठीक ठाक तरीके से बढ़ी है और 2010 में 411 शेर थे जबकि 2015 में ये संख्या बढ़ कर 523 हो गई थी. गुजरात के वन विभाग ने ये भी कहा है कि शेर आम तौर पर साल भर में 210 शावक पैदा करते हैं और उनमें से 140 कुदरती कारणों से मर जाते हैं और बचे हुए एक तिहाई ही वयस्क हो पाते हैं.
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12 से 26 सितंबर के बीच यहा 14 एशियाई शेर रहस्यमय परिस्थितियों में मरे पाए जा चुके हैं. इनमें से 12 शेर डलखानिया और 2 जसधार वन क्षेत्र में मिले थे. प्रधान मुख्य वन संरक्षक अक्षय कुमार सक्सेना के मुताबिक –“डलखानिया वन क्षेत्र से सात शेरों को जसधार के पुनर्वास केंद्र में रखा गया है. इनकी सेहत ठीक है लेकिन इनकी निगरानी की जा रही है.”
याद रखने लायक है कि इससे पहले जिन 14 शेरों के अवशेष पाए गए हैं उनके बारे में ये भी पता करना मुश्किल हो रहा है कि वे नर थे या मादा. उनके अवशेषों के नमूनों को जांच के लिए भेज दिया गया था. जांच के बाद पता चला है कि शावकों की मौत किटकिटाने वाले जानवरों में होने वाले रोग डिस्टेंपर की वजह से नहीं हुई है.एक अधिकारी के मुताबिक छह शेरों की मौत आपसी लड़ाई की वजह से हुई है. इसके अलावा बाकी शेर फेफड़ों और लिवर के फेल होने से मारे गए बताए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि इसकी वजह से शेरों को अलग रखना जरूरी था.
वन सुरक्षा के मुखिया जीके सिंहा ने 21 सितंबर को मीडिया से कहा था कि शेर चूंकि परंपरागत तौर पर अपना इलाका बनाने वाला जानवर होता है लिहाजा उनके बीच लड़ाई होना स्वाभाविक है. और उस वक्त तक मारे गए 11 शेरों की मौत को उन्होंने किसी भी तरह से अस्वाभाविक मौत नहीं माना था.
उन्होंने ये भी कहा था कि शेरों की संख्या ठीक ठाक तरीके से बढ़ी है और 2010 में 411 शेर थे जबकि 2015 में ये संख्या बढ़ कर 523 हो गई थी. गुजरात के वन विभाग ने ये भी कहा है कि शेर आम तौर पर साल भर में 210 शावक पैदा करते हैं और उनमें से 140 कुदरती कारणों से मर जाते हैं और बचे हुए एक तिहाई ही वयस्क हो पाते हैं.