फोटो क्रेडिट अमर ज्योति स्कूल.
11 साल पहले घर की छत पर गेंद से खेलते हुए शुभम हाईटेंशन लाइन की चपेट में आ गए थे. एक साल की जद्दोजहद के बाद जान तो बच गई लेकिन इस हादसे में शुभम के दोनों हाथ और एक पैर नहीं रहा. जो पैर बचा उसमें भी इंफेक्शन ने अपना असर दिखाया. उन्हें तीन महीने आईसीयू में रहने के साथ ही पूरे एक साल तक सफदरजंग अस्पताल में रहना पड़ा.
मां-बाप पर जहां दुखों का पहाड़ टूटा था तो खुशी इस बात की थी कि शुभम की जान बच गई. प्राइवेट नौकरीपेशा पिता ने पहले शुभम को एक पैर से खाना खाना और दूसरे काम करना सिखाया. उसके बाद उसी पैर से लिखने-पढ़ने की ट्रिक समझाई.
जब शुभम घर पर थोड़ा-बहुत लिखने-पढ़ने लगे तो उन्होंने स्कूल जाने की ख्वाहिश जाहिर की. हालांकि स्कूल जाने पर बहुत सारी चीजों दिक्कतों का सामना करना था. लेकिन मां-बाप के दिए हौसले से शुभम इनका सामना करने के लिए तैयार हो चुके थे.
10वीं में 79 प्रतिशत नंबर
पिता आनंद सिंह बताते हैं कि कक्षा 5 तक तो शुभम हर क्लास में सेकेंड आते थे. लेकिन कक्षा 6 में आते ही उन्होंने फर्स्ट डिविजन लानी शुरू कर दी. जब 10वीं के एग्जाम देने की बारी आई तो उन्होंने और ज्यादा समय देते हुए पढ़ाई शुरु कर दी. मंगलवार को जब रिजल्ट आया है तो उनके 79 प्रतिशत नंबर देखकर हम सब हैरान हैं. शुभम ने कड़कड़डूमा स्थित अमर ज्योति स्कूल से पढ़ाई की है. खास बात ये है कि शुभम ने दिव्यांग वर्ग से परीक्षा देने के बजाए समान्य वर्ग से परीक्षा दी है.
इंडोनेशिया में जीती आईटी प्रतियोगिता
शुभम के पिता बताते हैं 2015 में इंडोनेशिया में दिव्यांगों की आईटी प्रतियोगिता हुई थी. शुभम भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने इंडोनेशिया गए थे. जहां उन्होंने ये प्रतियोगिता जीती भी थी. शुभम एक पैर से ही लैपटॉप चलाते हैं और आईटी सेक्टर में नाम कमाना चाहते हैं. इसके अलावा भी शुभम बहुत सारी क्विज प्रतियोगिता में इनाम जीत चुके हैं.
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