पुणे. घोंघे का म्यूकस काफी फायदेमंद होता है और इसका इस्तेमाल कैंसर (Cancer) रोधी दवाओं और सूक्ष्मरोधी दवाओं के साथ ही पानी में जहरीले (poison) तत्वों का पता लगाने में किया जा सकता है. यह जानकारी शोधकर्ताओं ने दी है. घोंघे का म्यूकस सामान्य तौर पर कृषि के लिए फायदेमंद माना जाता है. यह अध्ययन हाल में ‘नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में छपा है. शोधकर्ताओं ने बृहद् अफ्रीकी घोंघा के म्यूकस पर शोध किया. इसे एचाटिना फुलिका के नाम से भी जाना जाता है.
पुणे के जूनार में श्री शिव छत्रपति कॉलेज के जीव विज्ञान एवं शोध केंद्र के प्रमुख और शोधकर्ता प्रोफेसर डॉ. आर. डी. चौधरी ने कहा कि एचाटिना फुलिका दिखने में सुंदर घोंघा होता है जिसे भारत में ‘गंभीर कृषि पेस्ट’ का दर्जा हासिल है. यह शोध सावित्री बाई फुले पुणे विश्वविद्यालय, सेंटर फॉर मैटेरियल्स फॉर इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्नोलॉजी (सी-मेट) पुणे, दक्षिण कोरिया के सूवोन में नैनोपार्टिकल्स टेक्नोलॉजी लैबोरेट्री, स्कूल ऑफ मैकेनिकल इंजीनियरिंग, सुंगक्यूनक्वान विश्वविद्यालय और सऊदी अरब के किंग सऊद विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स एंड एस्ट्रोनॉमी कॉलेज ऑफ साइंस के साथ मिलकर किया गया.
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चौधरी ने बताया, ‘एचाटिना फुलिका अपने पैर से एक चिपचिपा द्रव पदार्थ छोड़ता है. म्यूकस घोंघे के पूरे जीवन चक्र में कई तरह के कार्य संपादित करता है.’ ऐसे तो घोंघा एक सामान्य जलीय जीव है, जो नदी, तालाब, या समुद्र के किनारे आसानी से मिल जाता है. सामान्य तौर पर इसका साइज दो से पांच इंच का होता है. यह मुलायम स्थान पर रहता है और घास पत्तियां इसका आहार हैं.
प्राणी विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. डीके श्रीवास्तव ने बताया कि यह गेस्ट्रोपोडिया श्रेणी का जंतु है, बिना रीढ़ की हड्डी का यह सबसे विकसित प्राणी है. मनुष्य के समान ही इसके तंत्रिका तंत्र अतिविकसित होते हैं, जिससे यह अतिसंवेदनशील प्राणी है. छत्तीसगढ़ में करीब पांच इंच के घोंघे की ऐसी प्रजाति का पता चला है जो एक बार में 150 से 200 अंडे देता है. इसके अंडे आकर्षक, चिकने और हल्के पीले रंग के मोती के दाने के समान होते हैं. यह लोगों के लिए उत्सुकता का विषय बना हुआ है और लोग बड़ी संख्या में इसे देखने भी पहुंचते हैं.
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