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बिजनेस और कारोबार के क्षेत्र में दलितों को आगे लाने में मिलिंद कांबले की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही है. वे एक ऐसे शख्स रहे हैं, जिन्होंने दलितों को कारोबार की दुनिया में प्रवेश दिलाने का बीड़ा उठाया है. उन्होंने साल 2005 में पुणे में दलित चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की स्थापना की और कई दलित उद्यमियों और कारोबारियों को स्थापित किया. महाराष्ट्र के एक साधारण दलित परिवार में जन्में मिलिंद खुद भी एक बड़े बिजनेसमैन हैं, लेकिन उनक कारोबार का लक्ष्य कभी मुनाफा नहीं रहा, बल्कि उद्योग और कारोबारी जगत में दलित समाज की हिस्सेदारी को बढ़ाना था.
दलितों की पीड़ा को समझा, आम्बेडकर रहे प्रेरणा
मिलिंद कभी भी भेदभाव और छूआछूत के शिकार नहीं रहे. मिलिंद कहते हैं- मेरे पिता एक शिक्षक थे, उनकी समाज में प्रतिष्ठा थी और इससे मुझे भी सम्मान से देखा गया, लेकिन दलित समाज की पीड़ा को मैं समझता था. मिलिंद कहते हैं- महाराष्ट्र में अंबेडकर का प्रभाव था और उसका असर समाज पर भी था, इसलिए मुझे व्यक्तिगत् स्तर पर जातिगत् भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा.
बाबा साहेब के आर्थिक विचारों का प्रभाव
दलित चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की स्थापना के पीछे मिलिंद बाबा साहेब की प्रेरणा को मानते हैं. वे कहते हैं- डिक्की, बाबा साहेब के आर्थिक विचारों की संकल्पना का हिस्सा है. मिलिद के मुताबिक बाबा साहेब के बाद देश में उनके विचारों को लेकर शिक्षा, राजनीति और समाज में बहुत काम हुआ, लेकिन आर्थिक गैर बराबरी को खत्म करने की दिशा में कोई काम नहीं हुआ, डिक्की की स्थापना उसी उद्देश्य से की गई.
बदल रहा है दलित युवा
मिलिंद कहते हैं- डिक्की को अभी 12 साल ही हुए हैं और यह देश के 23 राज्यों में फैला है. वे कहते हैं- आजादी के बाद से दलित समाज में बहुत बदलाव आया है. दलित समाज शैक्षेणिक, सामाजिक, राजनीति, सांस्कृतिक रूप से काफी आगे बढ़ गया है, और आने वाले समय में बहुत बदलाव होगा.
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