नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाथ से मैला साफ करने के दौरान सीवर में होने वाली मौतों पर चिंता जताने के साथ ही सख्त टिप्पणी की है. शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी भी देश में लोगों को मरने के लिए गैस चैंबर्स में नहीं भेजा जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने हाथ से मैला साफ करने वाले लोगों को सुरक्षा के पर्याप्त उपकरण (Security Equipments) मुहैया नहीं कराने को लेकर केंद्र सरकार (Central Government) की फटकार (Reprimanded) भी लगाई. कोर्ट ने कहा कि हाथ से मैला साफ करने के कारण हर महीने चार-पांच लोग अपनी जान गंवा रहे हैं. देश को आजाद हुए 70 साल से अधिक समय हो चुका है, लेकिन देश में जाति के आधार पर भेदभाव जारी है. मनुष्य के साथ इस तरह का व्यवहार सबसे अधिक अमानवीय आचरण है. इस हालात में बदलाव होना चाहिए.
कोर्ट ने कहा, संविधान में सभी मनुष्य बराबर, पर सुविधाएं समान नहीं
जस्टिस अरुण मिश्रा, एमआर शाह और बीआर गवई की पीठ (Bench) ने केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल (KK Venugopal) से सवाल किया कि आखिर हाथ से मैला साफ करने और सीवर के नाले या मैनहोल की सफाई करने वालों को मास्क व ऑक्सीजन सिलेंडर जैसे सुरक्षा उपकरण (Security Equipments) क्यों नहीं मुहैया कराई जाते हैं? दुनिया के किसी भी देश में लोगों को गैस चैंबर में मरने के लिये नहीं भेजा जाता है. इस वजह से हर महीने चार से पांच लोगों की मौत हो जाती है. पीठ ने कहा, 'संविधान में प्रावधान है कि सभी मनुष्य समान हैं, लेकिन प्राधिकारी उन्हें समान सुविधाएं मुहैया नहीं कराते.'

सुप्रीम कोर्ट ने हाथ से मैला साफ करने वाले लोगों को सुरक्षा के पर्याप्त उपकरण मुहैया नहीं कराने को लेकर केंद्र की फटकार लगाई.
अधिकारी या प्राधिकारी को घटना के लिए ठहराया जाए जिम्मेदार
पीठ ने इस स्थिति को अमानवीय करार देते हुए कहा कि बिना सुरक्षा उपकरणों के सफाई करने वाले लोग सीवर और मैनहोल में अपनी जान गंवा रहे हैं. वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि देश में नागरिकों को होने वाली क्षति और उनके लिए जिम्मेदार लोगों से निपटने के लिये अपकृत्य कानून (लॉ ऑफ टॉर्ट) बना नहीं है. ऐसी घटनाओं का स्वत: संज्ञान लेने का मजिस्ट्रेट को अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि सड़क पर झाडू लगा रहे या मैनहोल की सफाई कर रहे व्यक्ति के खिलाफ कोई मामला दायर नहीं किया जा सकता, लेकिन ये काम करने का निर्देश देने वाले अधिकारी या प्राधिकारी को इसका जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.
1933 से अब तक 620 लोगों की हो चुकी है मौत
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) के आंकड़ों के मुताबिक, 1993 से अब तक इस प्रथा के कारण कुल 620 लोगों की मौत हो चुकी है. अब तक 445 मामलों में मुआवज़ा दिया चुका है, 58 मामलों में आंशिक समझौता किया गया है और 117 मामले लंबित हैं. इस मामले में 15 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने मंत्रालय के साथ जानकारी साझा की है, जिसके अनुसार अकेले तमिलनाडु में ही ऐसे 144 मामले दर्ज़ किए गए हैं. बता दें कि भारत में मैनुअल स्केवेंजिंग (Manual scavenging) या हाथ से मैला ढोने की प्रथा को प्रतिबंधित किया जा चुका है, लेकिन अभी भी देश में यह गंभीर समस्या बनी हुई है.
अयोध्या विवाद: सुप्रीम कोर्ट में 18 अक्टूबर तक पूरी हो सकती है बहस, CJI ने दी मध्यस्थता की भी इजाजतब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags: Sewer Worker, Supreme court of india
FIRST PUBLISHED : September 18, 2019, 13:55 IST