कपड़ों के ऊपर से नाबालिग के सीने पर हाथ लगाना यौन उत्पीड़न नहीं, बॉम्बे HC के इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट का स्टे

सुप्रीम कोर्ट ने बंबई हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक (FILE PHOTO)
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने अपने फैसले में कहा कि यौन हमले की घटना मानने के लिए यौन इच्छा के साथ त्वचा से त्वचा का संपर्क होना चाहिए.
- News18Hindi
- Last Updated: January 27, 2021, 2:17 PM IST
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा पॉक्सो के एक अभियुक्त को बरी करने के विवादास्पद आदेश पर रोक लगा दी है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने 19 जनवरी को एक फैसले में कहा था कि 'त्वचा से त्वचा का संपर्क' हुए बिना नाबालिग पीड़िता का स्तन स्पर्श करना, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (पोक्सो) के तहत यौन हमला नहीं कहा जा सकता. हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जज पुष्पा गनेडीवाला ने अपने फैसले में कहा था कि यौन हमले की घटना मानने के लिए यौन इच्छा के साथ त्वचा से त्वचा का संपर्क होना चाहिए.
Bar&bench के अनुसार बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने POCSO के तहत बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश का जिक्र किया. वेणुगोपाल ने कहा, 'यह बहुत ही परेशान करने वाला निष्कर्ष है. आपको इस पर ध्यान देना चाहिए. मैं इस पर याचिका दायर करूंगा या फिर आप इसका स्वतः संज्ञान लें.'
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगा दिया जिसमें POCSO एक्ट के आरोपियों को बरी करते हुए स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट को जरूरी बताया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा 'अटॉर्नी जनरल फैसला हमारे ध्यान में लाए हैं ... जिसमें हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से POCSO की धारा 8 के तहत आरोपी को इस आधार पर बरी कर दिया है कि अभियुक्त का अपराध करने का कोई यौन इरादा नहीं था क्योंकि कोई प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क नहीं था. अटॉर्नी जनरल ने यह कहा कि यह आदेश भविष्य में गंभीर मिसाल बन सकता है.' शीर्ष अदालत ने 39 वर्षीय एक व्यक्ति को आरोपों के तहत बरी करने के आदेश पर भी स्टे लगा दिया है.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसले में क्या कहा था?
अभियोजन पक्ष और नाबालिग पीड़िता की अदालत में गवाही के मुताबिक, दिसंबर 2016 में आरोपी सतीश नागपुर में लड़की को खाने का कोई सामान देने के बहाने अपने घर ले गया. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह दर्ज किया कि अपने घर ले जाने पर सतीश ने उसके वक्ष को पकड़ा और उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश की.
हाईकोर्ट ने कहा, चूंकि आरोपी ने लड़की को निर्वस्त्र किए बिना उसके सीने को छूने की कोशिश की, इसलिए इस अपराध को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है और यह IPC की धारा 354 के तहत महिला के शील को भंग करने का अपराध है. धारा 354 के तहत जहां न्यूनतम सजा एक वर्ष की कैद है, वहीं पोक्सो कानून के तहत यौन हमले की न्यूनतम सजा तीन वर्ष कारावास है.
सत्र अदालत ने पोक्सो कानून और IPC की धारा 354 के तहत उसे तीन वर्ष कैद की सजा सुनाई थी. दोनों सजाएं साथ-साथ चलनी थीं. बहरहाल, हाईकोर्ट ने उसे पॉक्सो कानून के तहत अपराध से बरी कर दिया और भादंसं की धारा 354 के तहत उसकी सजा बरकरार रखी. हाईकोर्ट ने कहा, ‘अपराध के लिए (पोक्सो कानून के तहत) सजा की कठोर प्रकृति को ध्यान में रखते हुए अदालत का मानना है कि मजबूत साक्ष्य और गंभीर आरोप होना जरूरी हैं.’
इसने कहा, ‘किसी विशिष्ट ब्योरे के अभाव में 12 वर्षीय बच्ची के वक्ष को छूना और क्या उसका टॉप हटाया गया या आरोपी ने हाथ टॉप के अंदर डाला और उसके वक्ष को छुआ गया, यह सब यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है.’ जस्टिस गनेडीवाला ने अपने फैसले में कहा, ‘वक्ष छूने का कृत्य शील भंग करने की मंशा से किसी महिला/लड़की के प्रति आपराधिक बल प्रयोग है.’
पोक्सो कानून के तहत यौन हमले की परिभाषा क्या है?
पोक्सो कानून के तहत यौन हमले की परिभाषा है कि जब कोई ‘यौन मंशा के साथ बच्ची/बच्चे के निजी अंगों, वक्ष को छूता है या बच्ची/बच्चे से अपना या किसी व्यक्ति के निजी अंग को छुआता है या यौन मंशा के साथ कोई अन्य कृत्य करता है जिसमें संभोग किए बगैर यौन मंशा से शारीरिक संपर्क शामिल हो, उसे यौन हमला कहा जाता है.’ अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यौन हमले की परिभाषा में ‘शारीरिक संपर्क’ ‘प्रत्यक्ष होना चाहिए’ या सीधा शारीरिक संपर्क होना चाहिए.

अदालत ने कहा, ‘स्पष्ट रूप से अभियोजन की बात सही नहीं है कि आवेदक ने उसका टॉप हटाया और उसका वक्ष स्थल छुआ. इस प्रकार बिना संभोग के यौन मंशा से सीधा शारीरिक संपर्क नहीं हुआ.’ (भाषा इनपुट के साथ)
Bar&bench के अनुसार बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने POCSO के तहत बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश का जिक्र किया. वेणुगोपाल ने कहा, 'यह बहुत ही परेशान करने वाला निष्कर्ष है. आपको इस पर ध्यान देना चाहिए. मैं इस पर याचिका दायर करूंगा या फिर आप इसका स्वतः संज्ञान लें.'
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगा दिया जिसमें POCSO एक्ट के आरोपियों को बरी करते हुए स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट को जरूरी बताया गया था.
Breaking: Supreme Court stays Bombay High Court order acquitting accused in POCSO Act which had said skin to skin contact necessary for sexual assault under POCSO Act.#POCSO #SupremeCourt #BombayHighCourt
— Bar & Bench (@barandbench) January 27, 2021
सुप्रीम कोर्ट ने कहा 'अटॉर्नी जनरल फैसला हमारे ध्यान में लाए हैं ... जिसमें हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से POCSO की धारा 8 के तहत आरोपी को इस आधार पर बरी कर दिया है कि अभियुक्त का अपराध करने का कोई यौन इरादा नहीं था क्योंकि कोई प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क नहीं था. अटॉर्नी जनरल ने यह कहा कि यह आदेश भविष्य में गंभीर मिसाल बन सकता है.' शीर्ष अदालत ने 39 वर्षीय एक व्यक्ति को आरोपों के तहत बरी करने के आदेश पर भी स्टे लगा दिया है.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसले में क्या कहा था?
अभियोजन पक्ष और नाबालिग पीड़िता की अदालत में गवाही के मुताबिक, दिसंबर 2016 में आरोपी सतीश नागपुर में लड़की को खाने का कोई सामान देने के बहाने अपने घर ले गया. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह दर्ज किया कि अपने घर ले जाने पर सतीश ने उसके वक्ष को पकड़ा और उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश की.
हाईकोर्ट ने कहा, चूंकि आरोपी ने लड़की को निर्वस्त्र किए बिना उसके सीने को छूने की कोशिश की, इसलिए इस अपराध को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है और यह IPC की धारा 354 के तहत महिला के शील को भंग करने का अपराध है. धारा 354 के तहत जहां न्यूनतम सजा एक वर्ष की कैद है, वहीं पोक्सो कानून के तहत यौन हमले की न्यूनतम सजा तीन वर्ष कारावास है.
सत्र अदालत ने पोक्सो कानून और IPC की धारा 354 के तहत उसे तीन वर्ष कैद की सजा सुनाई थी. दोनों सजाएं साथ-साथ चलनी थीं. बहरहाल, हाईकोर्ट ने उसे पॉक्सो कानून के तहत अपराध से बरी कर दिया और भादंसं की धारा 354 के तहत उसकी सजा बरकरार रखी. हाईकोर्ट ने कहा, ‘अपराध के लिए (पोक्सो कानून के तहत) सजा की कठोर प्रकृति को ध्यान में रखते हुए अदालत का मानना है कि मजबूत साक्ष्य और गंभीर आरोप होना जरूरी हैं.’
इसने कहा, ‘किसी विशिष्ट ब्योरे के अभाव में 12 वर्षीय बच्ची के वक्ष को छूना और क्या उसका टॉप हटाया गया या आरोपी ने हाथ टॉप के अंदर डाला और उसके वक्ष को छुआ गया, यह सब यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है.’ जस्टिस गनेडीवाला ने अपने फैसले में कहा, ‘वक्ष छूने का कृत्य शील भंग करने की मंशा से किसी महिला/लड़की के प्रति आपराधिक बल प्रयोग है.’
पोक्सो कानून के तहत यौन हमले की परिभाषा क्या है?
पोक्सो कानून के तहत यौन हमले की परिभाषा है कि जब कोई ‘यौन मंशा के साथ बच्ची/बच्चे के निजी अंगों, वक्ष को छूता है या बच्ची/बच्चे से अपना या किसी व्यक्ति के निजी अंग को छुआता है या यौन मंशा के साथ कोई अन्य कृत्य करता है जिसमें संभोग किए बगैर यौन मंशा से शारीरिक संपर्क शामिल हो, उसे यौन हमला कहा जाता है.’ अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यौन हमले की परिभाषा में ‘शारीरिक संपर्क’ ‘प्रत्यक्ष होना चाहिए’ या सीधा शारीरिक संपर्क होना चाहिए.
अदालत ने कहा, ‘स्पष्ट रूप से अभियोजन की बात सही नहीं है कि आवेदक ने उसका टॉप हटाया और उसका वक्ष स्थल छुआ. इस प्रकार बिना संभोग के यौन मंशा से सीधा शारीरिक संपर्क नहीं हुआ.’ (भाषा इनपुट के साथ)