सुंडाराम वर्मा ने ड्राई फार्मिंग तकनीक से लगाए पेड़
सीकर. इंसान अपने ज्ञान के साथ अगर अपनी सहज बुद्धि का इस्तेमाल करे तो ऐसे असंभव लगने वाले काम कर सकता है, जिसे कोई सोच भी नहीं सकता है. राजस्थान के सीकर जिले के दाता गांव के प्रगतिशील किसान सुंडाराम वर्मा भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं. सुंडाराम वर्मा ने 1 लीटर पानी में पेड़ लगाने की तकनीक ईजाद की है. जिसका लोहा वैज्ञानिकों ने भी माना है. सुंडाराम वर्मा ने यह तकनीक अपने अनुभव से ईजाद की है. सुंडा राम वर्मा का जन्म एक संपन्न किसान परिवार में हुआ. उन्होंने 1972 में सीकर से बीएससी करने के बाद खेती करने का फैसला किया. सरकारी अध्यापक के तौर पर उनकी नौकरी लगी थी, लेकिन उन्होंने नौकरी करना मुनासिब नहीं समझा.
उस समय हरित क्रांति का दौर चल रहा था. देश में खाद्यान्न की समस्या थी. सुंडाराम ने तय किया कि वे खेती करके देश की खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने में अपना योगदान देंगे. उनकी रुचि शुरू से ही खेती में थी. खेती के काम में लगे सुंडाराम वर्मा का संपर्क कृषि विभाग, कृषि महाविद्यालय और कृषि अनुसंधान केंद्र में काम करने वाले अधिकारियों और वैज्ञानिकों से हुआ. उन्होंने वहां खेती के नए-नए तरीके सीखे. उन्हें अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने भी समर्थन दिया. कई प्रयोग तो उनके खेत पर ही किए गए. दो वैज्ञानिकों ने तो उनके खेत पर रिसर्च करके ही अपनी पीएचडी पूरी की. इस दौरान उनका सारा काम सुंडाराम वर्मा ही देखते रहे.
पूसा कृषि संस्थान में लिया ड्राई फार्मिंग तकनीक का प्रशिक्षण
सुंडाराम वर्मा को एक बार नई दिल्ली में पूसा कृषि संस्थान में ड्राई फार्मिंग की तकनीक सीखने का मौका मिला. जहां पर जमीन में बरसात के पानी की नमी को रोककर खेती करने का तरीका सिखाया जाता था. इस तकनीक का मूल सिद्धांत ये है कि जमीन के नीचे से बरसात का पानी दो तरीकों से बाहर आता है. पहला खर-पतवारों की जड़ों से होकर और दूसरा जमीन में छोटी-छोटी नलिकाए या कैपिलरी के सहारे. इन छोटी नलिकाओं से ही बहुत ज्यादा मात्रा में पानी बाहर निकल कर भाप में बदल जाता है. खेत में नमी बनाए रखने के लिए इन नलिकाओं को तोड़ना सबसे अच्छा उपाय है. खेत में गहरी जुताई कर दी जाए तो ये नलिकाएं टूट जाएंगी और खेत का पानी खेत में संरक्षित रहेगा.
ड्राई फार्मिंग तकनीक से लगाए पेड़
सुंडाराम वर्मा ने इसी तकनीक का उपयोग करके पौधे लगाने के बारे में सोचा. उन्होंने इसका प्रयोग सबसे पहले यूकेलिप्टस के पौधे पर किया. जिसकी जड़ें बहुत नीचे तक जाती हैं. उन्होंने खुद की जमीन, दूसरे किसानों की जमीन, वन विभाग की जमीन, गोशालाओं की जमीन पर इसका प्रयोग किया. सभी जगहों पर उनका 1 लीटर पानी से पेड़ लगाने का फॉर्मूला सफल साबित हुआ. इस तकनीक का मूलभूत सिद्धांत यह है कि पहली बरसात के बाद खेत में एक गहरी जुताई करवा दी जाए. इसके बाद अंतिम बरसात जो सितंबर में होती है, उसके बाद भी एक गहरी जुताई करनी होती है. अब इसमें पेड़ लगा दिए जाते हैं और उसे एक लीटर पानी दिया जाता है. इसके बाद हर 3 महीने पर खेत की गहरी जुताई की जाती है और पौधों के आसपास गहरी निराई-गुड़ाई कर दी जाती है. जिससे सभी नलिकाएं टूट जाती हैं और खरपतवार नष्ट हो जाते हैं. इससे पानी के जमीन से बाहर आने का सारा रास्ता बंद हो जाता है. पौधा आराम से अपनी जरूरत का पानी लेता रहता है. इसके लिए 4-5 इंच लंबा-चौड़ा और डेढ़ फीट गहरा गड्ढा खोदकर उसमें पौधा लगाते हैं.
पेड़ों के लिए पर्याप्त है बरसात का पानी
सुंडाराम वर्मा का कहना है कि राजस्थान में औसत बरसात 50 सेंटीमीटर होती है. जिसका मतलब है कि 1 वर्ग मीटर क्षेत्र में 500 लीटर पानी बरसता है, जो जमीन में जाता है. अगर इतना पानी संरक्षित कर लिया जाए तो पौधे को दूसरे पानी की जरूरत ही नहीं है. 2020 से पहले सुंडाराम वर्मा ने करीब 50 हजार पौधे इस 1 लीटर पानी की तकनीक से लगा दिए हैं. उसमें से 80% पौधे सफल रहे हैं. इस साल मानसून में उनकी योजना 15 से 20 हजार पौधे लगाने की है. सुंडाराम वर्मा को इन कामों के लिए कई पुरस्कार भी मिले हैं. कनाडा के इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर से उनको अवार्ड मिला है. 1997 में सुंडाराम वर्मा को राष्ट्रीय किसान पुरस्कार मिला. सुंडाराम वर्मा पौधे लगाने के लिए वन विभाग की नर्सरी का उपयोग करते हैं.
जल संरक्षण पर भी सुंडाराम ने किया सफल प्रयोग
सुंडाराम वर्मा अपनी इस तकनीक पर राष्ट्रपति भवन में भी एक प्रेजेंटेशन दिखा चुके हैं. कई संगठनों ने उनके साथ मिलकर 1 लीटर पानी से पेड़ लगाने की तकनीक पर काम किया है. ओएनजीसी और एरिड फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (Arid Forest research Institute) जैसे संस्थानों ने भी उनके साथ मिलकर काम किया है. सुंडाराम वर्मा ने न केवल पौधे लगाने में रिसर्च की, बल्कि उन्होंने जल संरक्षण के भी नए तरीके खोजे हैं. उन्होंने अपने 1 हेक्टेयर के अनार के बगीचे में मल्चिंग कर दी है. जिससे वह हर बरसात में 20 लाख लीटर पानी इकट्ठा कर लेते हैं. 10 लाख लीटर पानी वे अपने अनार के पौधों को देते हैं और बाकी 10 लाख लीटर पानी से दूसरी फसलों की सिंचाई करते हैं.
राजस्थान से जुटाए 15 फसलों की 700 देशी प्रजातियों के बीज
सुंडाराम वर्मा ने इसके अलावा देशी बीजों के शोध पर भी बहुत काम किया है. नेचुरल रिफॉर्मिंग के सफल होने की पहली शर्त है कि उसमें देशी बीज का उपयोग हो. जबकि कृषि वैज्ञानिकों का दावा रहता है कि देशी बीजों की उपज की क्षमता कम होती है. जबकि देशी बीजों के समर्थकों का कहना है कि भले ही देशी बीजों की उपज कम हो, लेकिन उनको ज्यादा खाद-पानी की जरूरत नहीं होती है. सुंडाराम वर्मा ने पूरे राजस्थान में घूम-घूम कर 15 प्रमुख फसलों के 700 से अधिक प्रजातियों के देशी बीजों को इकट्ठा किया.
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देशी बीजों की उत्पादकता बढ़ाकर नई किस्में बनाईं
सुंडाराम वर्मा ने इन देशी बीजों पर शोध किया और कुछ बीजों को बहुत अच्छी पैदावार वाला पाया. इनकी उपज वैज्ञानिक पद्धति से तैयार बीजों से भी ज्यादा थी और उनकी गुणवत्ता तो बेहतर थी ही. उन्होंने काबुली चने की एक किस्म एसआर-1 विकसित की है. जिसे सरकार ने फॉर्मर्स वैरायटी के तहत मान्यता दी है. ग्वार और सरसों पर भी सुंडाराम वर्मा का शोध जारी है. जल्दी ही इनके बीजों को भी मान्यता मिलेगी. वे नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन का राजस्थान का कामकाज देखते हैं. सुंडाराम वर्मा ऐसे किसानों को खोजते हैं, जिन्होंने अच्छा और बेहतर काम किया है. ऐसे 14 किसानों को राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. सुंडाराम वर्मा चाहते कि पूरे राजस्थान में उनकी तकनीक से पौधे लगें और जल संरक्षण का काम हो.
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