अमित शाह 4 से 6 मई तक पश्चिम बंगाल में रहेंगे. (फ़ाइल फोटो)
नई दिल्ली. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Union Home Minister Amit Shah) पश्चिम बंगाल के दौरे पर जा रहे हैं. वे 4 से 6 मई तक वहां रहेंगे. संगठन के विभिन्न स्तरों पर स्थानीय नेताओं से बात करेंगे. पार्टी में नई जान फूंकने की कोशिश करेंगे, जो पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal Assembly Elections) और उसके बाद के चुनावों में मिली पराजयों के बाद से बेदम हुई पड़ी है. स्थानीय नेता आपस में टकरा रहे हैं और राजनीतिक हिंसा के शिकार जमीनी कार्यकर्ता हतोत्साहित हैं. इसीलिए स्थानीय नेता भी यह सवाल पूछ रहे हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार बंगाल आ रहे अमित शाह पार्टी की बंगाल इकाई में नई जान कैसे फूंकेंगे? जवाब इसका फिलहाल तो किसी के पास नहीं है, लेकिन फिर भी शाह के दौरे के मद्देनजर बंगाल भाजपा के हाल पर एक नजर तो डाली ही जा सकती है. तो वही करते हैं, बस, 5-प्वाइंट (5-Points Analysis) में.
विधानसभा चुनाव के बाद सभी चुनावों में मिली हार
भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान अप्रत्याशित सफलता हासिल की थी. उसने राज्य की 42 में से 18 लोकसभा सीटें जीतीं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव के 17% मुकाबले 2019 में उसका वोट प्रतिशत 39 तक जा पहुंचा. इससे उत्साहित भाजपा ने 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal Assembly Elections-2021) में पूरी ताकत झोंकी. दूसरे दलों से आयातित नेताओं के बलबूते बंगाल की सत्ता तक पहुंचने का मंसूबा बांधा. लेकिन पूरा नहीं हुआ. पार्टी विधानसभा की 77 सीटें ही जीत सकी. और फिर इसके बाद तो जैसे उसकी हार का सिलसिला चल पड़ा. अभी इसी साल मार्च में जब राज्य के निकाय चुनाव हुए तो भाजपा को 108 में से 1 निकाय में भी जीत नहीं मिली. फिर इसी अप्रैल में बालीगंज विधानसभा और आसनसोल लोकसभा सीट पर उपचुनावों में भी पार्टी को पराजय हासिल हुई. जबकि आसनसोल सीट 2019 में भाजपा ने ही जीती थी.
नेताओं के आपसी झगड़ों से जूझ रहा है संगठन
भाजपा के इस हाल के बाद स्थानीय स्तर पर नेताओं के झगड़े भी सतह पर आ गए. पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो (Babul Supriyo) के अलावा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय (Mukul Roy) सहित 5 विधायकों ने विधानसभा चुनाव परिणाम के तुरंत बाद ही पार्टी छोड़ दी. सब टीएमसी में शामिल हो गए. इसी बीच, पार्टी ने विचारधारा के पक्के दिलीप घोष को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर केंद्र में शामिल कर लिया. उनकी जगह सुकांता मजूमदार को पार्टी की कमान सौंपी, जो पेशे से प्रोफेसर हैं. लेकिन उनके नेतृत्त्व में जब उनकी टीम में कुछ वरिष्ठ नेताओं को जगह नहीं दी गई तो उन्होंने खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की. इनमें केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर सहित करीब 10 नेता शामिल रहे. पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्त्व को इनमें से 2 नेताओं- रीतेश तिवारी और जय प्रकाश मजूमदार पर तो निष्कासन की कार्रवाई करनी पड़ी. क्योंकि वे प्रदेश नेतृत्त्व की खुली आलोचना कर रहे थे. जयप्रकाश बाद में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (TMC) में शामिल भी हो गए. यह भी संकट है.
विधानसभा चुनाव के बाद बंगाल में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी. टीएमसी कार्यकर्ताओं ने भाजपा समर्थकों को चुन-चुनकर लक्ष्य बनाया. करीब 60 भाजपा कार्यकर्ता मारे गए. कई महिलाओं से बलात्कार हुआ. हालत यहां तक बने कि हजारों भाजपा कार्यकर्ताओं को असम जाकर शरण लेनी पड़ी. मामला कलकत्ता हाईकोर्ट तक पहुंचा और उसके दखल के बाद जांच शुरू हुई. लेकिन केंद्र सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की. इस कारण जैसा कि ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर बताती है, स्थानीय स्तर पर कई नेता खुले तौर पर कहने लगे हैं कि राज्य की ममता बनर्जी सरकार (Mamata Banerjee Govt) के साथ केंद्र नरमी बरत रहा है. यहां तक कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्त्व ने भी इस मामले में उस आक्रामकता से स्थानीय कार्यकर्ताओं का साथ नहीं दिया, जैसी कि अपेक्षा थी. इससे जमीनी कार्यकर्ताओं में हताशा व्याप्त होना लाजिमी था और वह है भी.
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