(ममता त्रिपाठी)
लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव-2022 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को बड़ी कामयाबी मिली और 274 सीटों के साथ योगी आदित्यनाथ दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. चुनाव परिणाम के बाद स्थिति साफ हो गई कि मुख्य मुकाबला भाजपा और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच ही थी. कुछ सीटों को छोड़कर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) मैदान में नजर ही नहीं आई. बसपा सुप्रीमो मायावती भाजपा के बजाय सपा पर ज्यादा आक्रमक नजर आ रही हैं. उनके निशाने पर भाजपा का कोई नेता नहीं बल्कि हर वक्त अखिलेश यादव ही दिखाई पड़ रहे हैं. गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव से पहले बसपा छोड़ने वाले ज्यादातर नेताओं ने सपा का दामन थामा था क्योंकि लोगों को लगने लगा था कि भाजपा का विकल्प सिर्फ सपा ही है.
सपा भी इसी जुगत में है कि एक बार ये धारणा आम हो जाए कि बसपा रेस में नहीं है तो अनुसूचित जाति में बिखराव के बाद कुछ हिस्सा उसके साथ भी शिफ्ट हो सकता है. हालांकि 2022 में कुछ सीटों पर जाटव और गैर जाटव दोनों ने ही सपा को वोट किया है. 2007 में मायावती जब सत्ता में आई थीं तब मुस्लिमों ने भी अच्छी खासी संख्या में बहनजी को वोट किया था. मगर 2022 के चुनावों में सपा ये धारणा बनाने में कामयाब रही थी कि भाजपा का तोड़ सपा ही हो सकती है, जिस वजह से 95 प्रतिशत तक मुस्लिमों ने सपा को वोट किया था. उस धारणा को तोड़ने के लिए ही मायावती इस तरह के बयान दे रही हैं कि अखिलेश यादव कभी मुख्यमंत्री नहीं बन सकते.
बसपा के सामने चुनौती
आपको जानकर हैरानी होगी कि मायावती प्रदेश की पहली ऐसी मुख्यमंत्री थी जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया था. आजादी के बाद से कोई भी मुख्यमंत्री पांच साल लागतार अपनी कुर्सी पर नहीं बैठ सका था. चार बार देश के सबसे बड़े सूबे की मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती की पार्टी का महज एक विधायक है जिसके बाद मायावती फिर से अपनी पार्टी को खड़ा करने में लगी हैं. मायावती को लगता है कि प्रदेश में एंटी बीजेपी वोटबैंक का बड़ा हिस्सा सपा के साथ चला गया है जिसको अपने पाले में करने के लिए वो लगातार इस तरह के बयान दे रही हैं. बसपा के नेताओं का मानना है कि भाजपा के वोटबैंक के चक्रव्यूह को भेदना फिलहाल काफी मुश्किल है.
मायावती अपने राष्ट्रपति बनने की बात को कोरी अफवाह एवं सपा प्रायोजित बता रही हैं. साथ ही अपने परम्परागत वोटों में बिखराव को रोकने के लिए वो खुद को मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री का दावेदार बता रही है. दलित चिन्तक डाक्टर रविकांत का मानना है कि 2022 के विधानसभा नतीजों के बाद से ही सियासी गलियारों में ये चर्चा आम हो गई है कि बसपा खत्म हो चुकी है. मायावती इस चर्चा को गलत साबित करने के लिए अपने वोटरों के बीच ये स्थापित करना चाहती हैं कि वो अभी भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की रेस में हैं. हालांकि भाजपा की अपनी अंदरूनी रिपोर्ट के जरिए ये बात साबित हो चुकी है कि भाजपा के पास मायावती का एक बड़ा वोटबैंक शिफ्ट हुआ है.
भतीजे को दी बड़ी जिम्मेदारी
मायवती ने इसीलिए चुनाव के तुरंत बाद अपनी पार्टी की पूरी कार्यकारिणी को भंग करके नए सिरे से गठन किया और अपने भतीजे आकाश को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दे दी ताकि वो संगठन को युवाशक्ति के जोश और अपने तजुर्बे से नई दिशा दे सकें.
क्या मायावती बनेंगी राष्ट्रपति?
आपको बता दें कि अटल बिहारी बाजपेयी ने कांशीराम को देश का राष्ट्रपति बनाने का ऑफर दिया था मगर तबके हालात अलग थे. भाजपा बसपा की बैसाखी के सहारे उत्तर प्रदेश में चल रही थी. आज का दौर मोदी-योगी का है, जिसमें भाजपा अपने दम पर 274-325 सीटें जीतने का माद्दा रखती है. भाजपा किसी दूसरे दल के नेता को क्यूं राष्ट्रपति बनाएगी, वो भी मायावती को, जो राष्ट्रपति बनते ही भाजपा के लिए परेशानियां पैदा करने लगे. जातीय समीकरणों के चलते किसी दलित को ही राष्ट्रपति बनाना भी पड़े तो भाजपा के अंदर ही कई ऐसे चेहरे हैं. 2017 में भाजपा ने ऐसे ही रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाया था.
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