बाढ़ से राज्य में अब तक 379 लोगों की मौत हो गई और 19 जिलों की एक करोड़ 61 लाख 67 हजार आबादी प्रभावित हुई है.
इन दिनों बाढ़ से यूपी, बिहार और असम के कई क्षेत्र बेहाल हैं. लोगों को नदियों का रौद्र रूप देखने को मिल रहा है. हजारों लोग बेघर हो गए हैं. हर किसी के मन में यह सवाल है कि आखिर बाढ़ रोकने का कोई उपाय क्यों नहीं खोजा जा रहा है.
साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स रीवर्स एंड पीपल' के कोर्डिनेटर हिमांशु ठक्कर का कहना है कि बाढ़ कंट्रोल नहीं हो सकती. बिहार और असम जैसे कुछ इलाके फ्लड प्रूफ नहीं हो सकते. यहां बाढ़ तो हमेशा आएगी.
उनका कहना है कि बाढ़ का मतलब डिजास्टर नहीं है, विभीषिका नहीं है. बाढ़ बहुत जरूरी और फायदेमंद है. गंगा पहले अपने मैदान में हर साल पानी फैलाकर उसे उपजाऊ बनाती थी. लेकिन अब हम मानते हैं कि ये तो विभीषिका है इसे रोको. इसके लिए हमने बहुत कुछ किया है. हमने तटबंध बनाए हैं.
बांधों का टूटना तय है
जाने-माने पर्यावरणविद् ठक्कर बताते हैं कि तटबंध क्या है. यह फ्लड प्लेन को नदी से काटता है. दूसरा पानी को फैलने से रोकता है. फ्लड को ट्रांसफर करता है. हर तटबंध टूटना तय है. ज्यादातर तटबंध की क्षमता 25 साल में आने वाली सबसे खराब बाढ़ को रोकने की होती है. लेकिन यदि उसके बाद बाढ़ आई तो तटबंध टूटेगा ही.
बिहार: बाढ़ में जीवन बचाने के लिए जारी है संघर्ष: ईटीवी फोटो
ठक्कर कहते हैं कि जब तटबंध बनने से पहले बाढ़ आती थी लोगों को दिखता था कि बाढ़ आ रही है. पता था कि कहां, कब, कितनी बाढ़ आएगी. लेकिन अब तटबंध बनने से लोग निश्चिंत होकर बैठे हैं कि बाढ़ नहीं आएगी. पर वह आती है. और जब आती है तो उसकी तबाह करने की क्षमता बहुत होती है. ज्यादा तेजी से पानी आता है. क्योंकि जहां से बांध टूटता है वहां से पूरी नदी का पानी निकलने लगता है. इससे नुकसान ज्यादा होता है.
वह कहते हैं कि जब आप तटबंध बनाते हैं तो उसके और नदी के बीच में बालू जमा होने लगता है. इससे नदी का लेवल ऊपर उठने लगता है. ऐसा होता है तो पानी रखने की उसकी क्षमता कम हो जाती है. इसका मतलब यह है कि तटबंध टूटने की संभावना बढ़ जाती है. जिससे हमें नुकसान होता है. डैम और अनियमित बारिश भी बाढ़ बढ़ा रहे हैं.
बिहार में बाढ़ के हालात: टूटा एक बांध
नदियां अपने साथ पानी और गाद लाती थीं, जिसे वो पूरे इलाके में फैला देती थीं जिससे जमीन की उर्वरता बढ़ती थी. आज हमने तटबंध बना दिए हैं, उससे सिल्ट (गाद) तो बह जाती है, लेकिन रेत और भारी तत्व रह जाते हैं. अगर हम नदी के प्रवाह और सिल्ट का प्रबंधन सही तरीके से करेंगे तभी बाढ़ से निपट पाएंगे.
ये नदियां बिहार, यूपी में मचाती हैं तबाही
त्रासदी के लिए हम कसूरवार हैं नदियां नहीं
अनियोजित शहरीकरण से भी हम आफत मोल ले रहे हैं. हम खुद नदी के रास्ते में, उसके क्षेत्र में बसने जा रहे हैं. नदी के कैचमेट एरिया (जलग्रहण क्षेत्र) में जंगल खत्म हो रहे हैं. अतिक्रमण हो रहा है. वाटर बॉडीज खत्म हो रही हैं. पानी की रिचार्ज क्षमता खत्म हो रही है, इसलिए भी बाढ़ और उससे नुकसान बढ़ रहा है.
यूपी: बहराइच बाढ़ में फंसे लोग
जब दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम होना था उसी साल कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज का इलाका डूब गया था. डीटीसी डिपो और अक्षरधाम मंदिर भी यमुना के फ्लड प्लेन में हैं. कई अवैध कॉलोनियां बन गई हैं. अब यदि यमुना का पानी कभी इन क्षेत्रों तक आ जाए तो हमारी गलती है, नदी की नहीं. इसलिए विकास कार्य करते समय हमें ध्यान रखना होगा कि क्या हम पानी बहने के रास्ते में रूकावट डाल रहे हैं. कहीं हम नदी के रास्ते में बाधा तो नहीं बन रहे.
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