BJP से 'चोट' खाए नीतीश कुमार को क्यों कांग्रेस-राजद से भी मलहम की उम्मीद नहीं

नीतीश कुमार (फ़ाइल फोटो)
ये किसी से छुपा नहीं है कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) 2014 से प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं. जेडी (यू) की योजना अन्य राज्यों में विस्तार करने और राष्ट्रीय स्तर पर ये दिखाने की है कि नीतीश सबसे स्वीकार्य चेहरा हैं.
- News18Hindi
- Last Updated: January 5, 2021, 9:58 PM IST
(अशोक मिश्रा)
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के लिए साल 2020 बेहद खराब रहा. बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) में जेडीयू के खराब प्रदर्शन के बाद वो मुश्किलों में घिर गए हैं. इसके बाद उनकी पार्टी को अरुणाचल प्रदेश में झटका लगा, जहां JDU के 7 में से 6 विधायकों ने पाला बदल कर बीजेपी का हाथ थाम लिया. बिहार में भी RJD नीतीश की पार्टी की तोड़ने की कोशिश में लगी है. बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटों में से 75 RJD के पास हैं. फिलहाल RJD और महागठबंधन के पास कुल 110 सीटें हैं, जिसमें कांग्रेस के 19, CPI-ML के 11, CPI-M के 3 और CPI के 2 विधायक हैं. महागठबंधन को सरकार बनाने के लिए 12 और विधायकों की जरूरत है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजद नेता और पूर्व मंत्री श्याम रजक के दावे को 'आधारहीन' बता दिया है, जबकि JDU ने इसे विपक्ष द्वारा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को अस्थिर करने का एक निरर्थक प्रयास करार दिया है. हालांकि पार्टी 2021 में उज्ज्वल भविष्य की उम्मीद कर रही है और इसके लिए पार्टी ने अपनी रणनीति भी बदल ली है. नीतीश कुमार ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ दिया है और राष्ट्रीय राजनीति में किसी भी तरह एंट्री की कोशिश में हैं. चाहे एनडीए के साथ या फिर बिना एनडीए के. बिहार के मुख्यमंत्री ने अपने बेहद खास आरसीपी सिंह को पार्टी प्रमुख की ज़िम्मेदारी देकर हर किसी को हैरान कर दिया है.
जद (यू) का पहला विद्रोही रुख तब सामने आया जब उसने इस साल पश्चिम बंगाल चुनाव में 75 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया. ये वो चुनाव है जो जहां बीजेपी ने ममता बनर्जी को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. पिछले साल लोकसभा चुनाव में अपने शानदार प्रदर्शन के बाद, भाजपा आगामी विधानसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल में खुद को स्थापित करने की कोशिश कर रही है.
जद (यू) ने 294 सदस्यीय पश्चिम बंगाल विधानसभा के अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में अपनी ताकत का आकलन किया है और 75 सीटों की पहचान की है जहां वह अपने दम पर चुनाव लड़ सकते हैं. बता दें कि जेडी (यू) केवल बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा है. इससे पहले वो दूसरे राज्यों में चुनाव लड़ती रही है.
इतना ही नहीं JDU असम में भी चुनाव लड़ने का मन बना रही है. पार्टी ने 2016 का विधानसभा चुनाव ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. 28 राज्यों में JDU की इकाइयां कर्नाटक और गुजरात जैसे राज्यों में भाजपा के साथ गठबंधन किए बिना विधानसभा चुनाव लड़ी हैं. पार्टी ने पिछले साल अलग से झारखंड विधानसभा चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. हालांकि, भाजपा के साथ गठबंधन में जदयू ने पिछले साल दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा था.
2005 के बाद ये पहली बार है जब बिहार में एनडीए सरकार में जेडी (यू) भाजपा के लिए दूसरे नंबर पर रहते हुए सहयोगी की भूमिका निभा रही है. ये अब तक 2005, 2010 और 2017 में सबसे वरिष्ठ साथी के तौर पर पार्टी में रही है. भाजपा ने अपनी पसंद के दो उपमुख्यमंत्रियों का मसौदा तैयार किया और शासन के मामलों में बड़े भाई के रवैये को बनाए रखा.
लेकिन नीतीश कांग्रेस और RJD की तरफ से आने वाले बाधाओं से अच्छी तरह वाकिफ हैं. उनका पिछला अनुभव काफी कड़वा रहा है. कांग्रेस अभी भी राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने पर अड़ी हुई है. कांग्रेस के लिए बड़ी चिंता ये नहीं है कि नरेंद्र मोदी 2024 में सत्ता में लौटें, बल्कि ये कि राहुल गांधी ही पीएम उम्मीदवार हैं और वो ही उन्हें चुनौती दे सकते हैं.
ये भी पढ़ें:- गाजियाबाद हादसा: सीएम योगी की बड़ी कार्रवाई, इंजीनियर और ठेकेदार पर लगेगा NSA
दरअसल, कांग्रेस चाहती है कि नीतीश कुमार बीजेपी और पीएम मोदी के साथ रहें, क्योंकि राहुल गांधी अन्य राष्ट्रीय या क्षेत्रीय नेताओं को उनकी शख्सियत को नजरअंदाज करने की कीमत पर विपक्षी एकता नहीं चाहते हैं. अगर नीतीश आज बेअसर हैं, तो ये केवल कांग्रेस के लंबे समय के लाभ के लिए है.
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के लिए साल 2020 बेहद खराब रहा. बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) में जेडीयू के खराब प्रदर्शन के बाद वो मुश्किलों में घिर गए हैं. इसके बाद उनकी पार्टी को अरुणाचल प्रदेश में झटका लगा, जहां JDU के 7 में से 6 विधायकों ने पाला बदल कर बीजेपी का हाथ थाम लिया. बिहार में भी RJD नीतीश की पार्टी की तोड़ने की कोशिश में लगी है. बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटों में से 75 RJD के पास हैं. फिलहाल RJD और महागठबंधन के पास कुल 110 सीटें हैं, जिसमें कांग्रेस के 19, CPI-ML के 11, CPI-M के 3 और CPI के 2 विधायक हैं. महागठबंधन को सरकार बनाने के लिए 12 और विधायकों की जरूरत है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजद नेता और पूर्व मंत्री श्याम रजक के दावे को 'आधारहीन' बता दिया है, जबकि JDU ने इसे विपक्ष द्वारा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को अस्थिर करने का एक निरर्थक प्रयास करार दिया है. हालांकि पार्टी 2021 में उज्ज्वल भविष्य की उम्मीद कर रही है और इसके लिए पार्टी ने अपनी रणनीति भी बदल ली है. नीतीश कुमार ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ दिया है और राष्ट्रीय राजनीति में किसी भी तरह एंट्री की कोशिश में हैं. चाहे एनडीए के साथ या फिर बिना एनडीए के. बिहार के मुख्यमंत्री ने अपने बेहद खास आरसीपी सिंह को पार्टी प्रमुख की ज़िम्मेदारी देकर हर किसी को हैरान कर दिया है.
बिहार चुनावों में हार और अरुणाचल प्रदेश में झटके के बाद JDU ने अपनी रणनीति बदल ली है. ये कदम निश्चित रूप से बीजेपी के बदलते रुख के बाद लिया गया है. दरअसल JDU चाहती है कि वो बिना बीजेपी के सहयोग से दूसरे राज्यों में अपनी अलग पहचान बनाए. ये उन राज्यों में भी अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि के साथ पार्टी को मजबूत करेगा, जहां अन्य क्षेत्रीय दल कमजोर हो गए हैं.
जद (यू) का पहला विद्रोही रुख तब सामने आया जब उसने इस साल पश्चिम बंगाल चुनाव में 75 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया. ये वो चुनाव है जो जहां बीजेपी ने ममता बनर्जी को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. पिछले साल लोकसभा चुनाव में अपने शानदार प्रदर्शन के बाद, भाजपा आगामी विधानसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल में खुद को स्थापित करने की कोशिश कर रही है.
जद (यू) ने 294 सदस्यीय पश्चिम बंगाल विधानसभा के अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में अपनी ताकत का आकलन किया है और 75 सीटों की पहचान की है जहां वह अपने दम पर चुनाव लड़ सकते हैं. बता दें कि जेडी (यू) केवल बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा है. इससे पहले वो दूसरे राज्यों में चुनाव लड़ती रही है.
इतना ही नहीं JDU असम में भी चुनाव लड़ने का मन बना रही है. पार्टी ने 2016 का विधानसभा चुनाव ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. 28 राज्यों में JDU की इकाइयां कर्नाटक और गुजरात जैसे राज्यों में भाजपा के साथ गठबंधन किए बिना विधानसभा चुनाव लड़ी हैं. पार्टी ने पिछले साल अलग से झारखंड विधानसभा चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. हालांकि, भाजपा के साथ गठबंधन में जदयू ने पिछले साल दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा था.
2005 के बाद ये पहली बार है जब बिहार में एनडीए सरकार में जेडी (यू) भाजपा के लिए दूसरे नंबर पर रहते हुए सहयोगी की भूमिका निभा रही है. ये अब तक 2005, 2010 और 2017 में सबसे वरिष्ठ साथी के तौर पर पार्टी में रही है. भाजपा ने अपनी पसंद के दो उपमुख्यमंत्रियों का मसौदा तैयार किया और शासन के मामलों में बड़े भाई के रवैये को बनाए रखा.
ये किसी से छुपा नहीं है कि नीतीश कुमार 2014 से प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं. जेडी (यू) की योजना अन्य राज्यों में विस्तार करने और राष्ट्रीय स्तर पर ये दिखाने की है कि नीतीश सबसे स्वीकार्य चेहरा हैं. सााथ ही ये दिखाने की भी कोशिश है कि वो देश में एकमात्र ऐसे राजनीतिक व्यक्तित्व हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दे सकते हैं.
लेकिन नीतीश कांग्रेस और RJD की तरफ से आने वाले बाधाओं से अच्छी तरह वाकिफ हैं. उनका पिछला अनुभव काफी कड़वा रहा है. कांग्रेस अभी भी राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने पर अड़ी हुई है. कांग्रेस के लिए बड़ी चिंता ये नहीं है कि नरेंद्र मोदी 2024 में सत्ता में लौटें, बल्कि ये कि राहुल गांधी ही पीएम उम्मीदवार हैं और वो ही उन्हें चुनौती दे सकते हैं.
उल्लेखनीय है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद भी नहीं चाहते हैं कि नीतीश कुमार सोनिया गांधी से हाथ मिलाएं क्योंकि जदयू नेता सोनिया के खेमे में उनकी जगह ले सकते हैं. कांग्रेस को भी जद (यू) से ज्यादा राजद की जरूरत है, क्योंकि लालू प्रसाद की प्रधानमंत्री पद की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है और राहुल गांधी के लिए कोई खतरा नहीं है.
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दरअसल, कांग्रेस चाहती है कि नीतीश कुमार बीजेपी और पीएम मोदी के साथ रहें, क्योंकि राहुल गांधी अन्य राष्ट्रीय या क्षेत्रीय नेताओं को उनकी शख्सियत को नजरअंदाज करने की कीमत पर विपक्षी एकता नहीं चाहते हैं. अगर नीतीश आज बेअसर हैं, तो ये केवल कांग्रेस के लंबे समय के लाभ के लिए है.