बंगाल चुनाव से पड़ेगा यूपी की मुस्लिम राजनीति पर असर, क्यों सभी की निगाहें ओवैसी पर हैं?

ओवैसी ने बंगाल की सात सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की है. (फाइल फोटो)
Assembly Elections 2021: कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) यूपी में आगामी विधानसभा चुनावों को हल्के में नहीं ले रहे हैं. वो जानते हैं कि यह राज्य में प्रवेश करने का मौका है, जहां मुस्लिम मतदाता करीब 18 प्रतिशत हैं.
- News18Hindi
- Last Updated: April 6, 2021, 8:37 PM IST
लखनऊ. पश्चिम बंगाल (West Bengal) में सियासी मौसम अपने चरम पर है. मंगलवार को राज्य में तीसरे चरण का मतदान जारी है. तृणमूल कांग्रेस (TMC) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अलावा असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM भी राज्य में चर्चा का विषय बनी हुई है. 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी मजबूत दावेदारी पेश करने वाली AIMIM को लेकर उत्तर प्रदेश चुनाव की कयासबाजी जारी है. सवाल उठ रहा है कि बंगाल में ओवैसी का प्रदर्शन यूपी की राजनीति पर कितना असर डालेगा? क्या बंगाल का चुनाव यूपी में मुस्लिम राजनीति की दिशा तय करेगा. ओवैसी ने बंगाल की सात सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की है.
इंडियन नेशनल लीग के अध्यक्ष प्रोफेसर सुलेमान कहते हैं कि इस बात में कोई शक नहीं है कि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में AIMIM बड़ा फैक्टर साबित होगी. वो कहते हैं, 'जैसी भीड़ ओवैसी की सभाओं में जुटती है, वैसी किसी भी नेता या मजलिस में फिलहाल नहीं देखी गई. सोशल मीडिया पर उनके भाषण जमकर सुने जाते हैं. यह पक्की बात है कि मुसलमानों और खासतौर से युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है.'
यह भी पढ़ें: West Bengal Election 2021: अखिलेश यादव का बड़ा बयान, बोले- एक अकेली लड़ जाएगी, जीतेगी और बढ़ जाएगी
क्या मुस्लिम वोट बैंक को चोट देगी AIMIM?
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर शकील समदानी कहते हैं कि यह संभावना है कि ओवैसी की पार्टी मुस्लिम वोट बैंक को चोट पहुंचा सकती है. उन्होंने कहा मुस्लिम हितों की बात करने वाली पार्टियां इस समुदाय को हिस्सेदारी देने में पीछे रह गईं. समाजवादी पार्टी मुस्लिम हितों की बात करती है, लेकिन इस वोट बैंक के साथ केवल सपा के महल बने हैं. जब सपा ने आजम खान को बीच में छोड़ दिया, तो कोई और क्या करेगा? यूपी में ओवैसी कई सीटें जीत सकते हैं और कई सीटों पर सियासी समीकरण बिगाड़ सकते हैं.'
हालांकि, सभी ऐसा नहीं मानते हैं. पिछड़े मुसलमानों के लिए काम करने वाले मारूफ अंसारी दावा करते हैं कि ओवैसी, जिन्ना का रूप हैं. वो कहते हैं, 'ऐसे नेता केवल उच्च वर्ग के लोगों के बारे में सोचते हैं और उन्हें ऊंचा उठाने में लगे रहते हैं. उनके दिलों में पिछड़े मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है.'

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ओवैसी यूपी में आगामी विधानसभा चुनावों को हल्के में नहीं ले रहे हैं. वो जानते हैं कि यह राज्य में प्रवेश करने का मौका है, जहां मुस्लिम मतदाता करीब 18 प्रतिशत हैं. भले ही इस चोट से राजनीतिक समीकरण बिगड़ जाएं, लेकिन बड़ी जीत नहीं हासिल की जा सकती. यही कारण है कि ओवैसी जीतने के लिए छोटी पार्टियों को अपने साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं.
इंडियन नेशनल लीग के अध्यक्ष प्रोफेसर सुलेमान कहते हैं कि इस बात में कोई शक नहीं है कि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में AIMIM बड़ा फैक्टर साबित होगी. वो कहते हैं, 'जैसी भीड़ ओवैसी की सभाओं में जुटती है, वैसी किसी भी नेता या मजलिस में फिलहाल नहीं देखी गई. सोशल मीडिया पर उनके भाषण जमकर सुने जाते हैं. यह पक्की बात है कि मुसलमानों और खासतौर से युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है.'
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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर शकील समदानी कहते हैं कि यह संभावना है कि ओवैसी की पार्टी मुस्लिम वोट बैंक को चोट पहुंचा सकती है. उन्होंने कहा मुस्लिम हितों की बात करने वाली पार्टियां इस समुदाय को हिस्सेदारी देने में पीछे रह गईं. समाजवादी पार्टी मुस्लिम हितों की बात करती है, लेकिन इस वोट बैंक के साथ केवल सपा के महल बने हैं. जब सपा ने आजम खान को बीच में छोड़ दिया, तो कोई और क्या करेगा? यूपी में ओवैसी कई सीटें जीत सकते हैं और कई सीटों पर सियासी समीकरण बिगाड़ सकते हैं.'
हालांकि, सभी ऐसा नहीं मानते हैं. पिछड़े मुसलमानों के लिए काम करने वाले मारूफ अंसारी दावा करते हैं कि ओवैसी, जिन्ना का रूप हैं. वो कहते हैं, 'ऐसे नेता केवल उच्च वर्ग के लोगों के बारे में सोचते हैं और उन्हें ऊंचा उठाने में लगे रहते हैं. उनके दिलों में पिछड़े मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है.'
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ओवैसी यूपी में आगामी विधानसभा चुनावों को हल्के में नहीं ले रहे हैं. वो जानते हैं कि यह राज्य में प्रवेश करने का मौका है, जहां मुस्लिम मतदाता करीब 18 प्रतिशत हैं. भले ही इस चोट से राजनीतिक समीकरण बिगड़ जाएं, लेकिन बड़ी जीत नहीं हासिल की जा सकती. यही कारण है कि ओवैसी जीतने के लिए छोटी पार्टियों को अपने साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं.