झारखंड। विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) 19 सीटों के साथ भले ही दूसरे नंबर पर रही, लेकिन राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि इस हार से इस पार्टी के अस्तित्व पर कोई खतरा नहीं है। झामुमो के कार्यकर्ता मानते हैं कि शिबू सोरेन के बुजुर्ग होने के बावजूद यह पार्टी मजबूत हाथों में है। कुछ कार्यकर्ताओं का यहां तक कहना है कि इस चुनाव में झामुमो भले ही हार गई लेकिन हेमंत सोरेन जैसा मजबूत उत्तराधिकारी का मिलना किसी जीत से कम नहीं है।
वरिष्ठं पत्रकार विद्यानाथ मिश्रा कहते हैं कि यह विधानसभा चुनाव हेमंत सोरेन के लिए परीक्षा थी, जिसमें उन्होंने काफी हद तक खुद को साबित कर दिया है। हालांकि विद्यानाथ यह भी मानते हैं कि दूसरे चरण के चुनाव प्रचार में हेमंत ने चुनावी सभा के मंच से उद्योग धंधों के खिलाफ, क्षेत्रवाद जैसे मुद्दे को उठाकर गलत बयानबाजी की, जिससे उनकी पार्टी को काफी नुकसान हुआ।
झामुमो के अध्यीक्ष शिबू सोरेन सभी विवादों के बावजूद जन नेता हैं। उम्र के चलते इस चुनाव में उन्होंने रणनीति स्तर पर कोई काम नहीं किया था। वर्तमान में शिबू की शारीरिक हालत देखकर नहीं लगता की वह अगले चुनाव तक सक्रिय राजनीति में रहेंगे। ऐसे में स्वमभाविक है कि हेमंत सोरेन ही झामुमो के चेहरा होंगे।
वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि शिबू जन नेता हैं, उनके नाम पर वोट पड़ते रहे हैं। बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य में हेमंत सोरेन ने झामुमो को नया चेहरा देने की कोशिश की, हालांकि उन्होंएने भाषण में शिबू की तरह ही शब्दों का प्रयोग किया। वे भूल गए कि शिबू जन नेता है, इसलिए उनकी ये बातें जनता पसंद करती है। हेमंत नए चेहरे हैं, उनसे जनता का इमोशन अभी नहीं जुड़ा है। उनके सामने चुनौती है कि वे पिता की तरह जन नेता बनें।
थ्री एम पर ही चलेगी झामुमो की राजनीति
झामुमो की राजनीति थ्री एम (महतो, मांझी, मुस्लिहम) के फॉर्मूले पर चलती रही है। इस चुनाव में हेमंत ने कुछ सीटों पर थ्री एम के फॉमू्ले से अलग कुछ प्रयोग किए, जिसमें उन्हें मुंह की खानी पड़ी। ऐसे में पुरी संभावना है कि आगे पार्टी थ्रीएम पर ही ध्या न केंद्रित करेगी।
इन मुद्दों पर सत्ता पक्ष को घेर सकती है झामुमो
1: सीएनटी और एसपीटी: विधानसभा चुनाव में रणनीति स्तीर पर खुद को स्थापित करने के बाद हेमंत के सामने अपने पिता की तरह आदिवासियों का मसीहा बनने की चुनौती होगी। इसके लिए वह संथालपरगना टेनेंसी एक्ट (एसपीटी) और छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट (सीएनटी) एक्ट के मुद्दे को नए सिरे से हवा दे सकती है।
2: एमएमडीआरए: यह 2011 से संसद में लंबित है। विपक्ष के रूप में झामुमो इसे जल्द से जल्द लागू करने का दबाव बना सकती है। इसके लागू होते ही राज्ये के माइंस और मिनरल्सक से होने वाली कमाई का 26 फीसदी हिस्सा राज्य में ही खर्च किया जाएगा।
3: विशेष राज्य का दर्जा: विपक्ष की भूमिका में झामुमो झारखंड को विशेष राज्या का दर्जा देने की मांग जोरदार तरीके से उठा सकती है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि तेलंगाना को जब विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सकता है तो झारखंड को क्यों नहीं। तेलंगाना में विजयवाड़ा जैसा खनिज संपदा वाला क्षेत्र होने के बावजूद विशेष राज्य का दर्जा मिल गया तो झारखंड की स्थिेति तो काफी बदत्तसर है।
4: डोमिसाइल का मुद्दा: सत्ता में रहते हुए झामुमो डोमिसाइल जैसे बड़े मु्द्दे को तो नहीं सुलझा सकी, लेकिन विपक्ष में इस मुद्दे पर सरकार को घेर सकती है। दरअसल डोमिसाइल का मुद्दा सुलझते ही झारखंड के मूल निवासियों की पहचान हो सकेगी और उन्हेंल चुनाव लड़ने से लेकर नौकरियों में अवसर बढ़ जाएंगे।
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags: Hemant soren, Shibu soren, झारखंड
FIRST PUBLISHED : December 25, 2014, 01:58 IST