पार्ट-1
करीब 4 साल पहले की बात है। दिल्ली में दनादन धमाके हो रहे थे। इस दरमियान आईएम का एक मेल editor@ibnkhabar.com पर भी आया। मेल बहुत से आते हैं लेकिन ये मेल सिहरन पैदा कर गया। ये मेल उस दौरान मीडिया हाउसेस को आतंकियों द्वारा अपने काले कारनामे बताने के लिए किए गए मेलों में से एक था। शाम को जब दिल्ली में धमाका हुआ तो न्यूजरूम में चारों तरफ अफरातफरी मची हुई थी। उसी बीच ये मेल आया। मेल में हजार धमकियों के बीच लिखा हुआ था कि हम गुजरात दंगों का बदला ले रहे हैं। मैं हतप्रभ था कि निरीह लोगों को मारने वाले ये दरिंदे खून के बदले खून की बात कर रहे हैं। वक्त गुजरा, जिंदगी आगे बढ़ गई।
पार्ट-2
फिर कुछ ही वक्त पहले मैंने देखा कि एक मीडिया हाउस के कॉन्क्लेव में मुशर्रफ भारतीय मुसलमानों की समस्या उठाने लगे, उन्हें फौरन ही एहसास हो गया कि वो गलत रास्ते पर हैं जब महमूद मदनी ने उनसे पूछा कि वो किस हैसियत से भारतीय मुसलमानों की बात करते हैं। बात आई गई हो गई। स्वयंभू रहनुमा बनने की मुशर्रफ की कोशिश वहीं नेस्तनाबूद हो गई।
पार्ट-3
फिर 29 अगस्त की दोपहर अचानक नरोडा पाटिया दंगा केस में फैसला आया। मैं ये कहूंगा कि फैसला अनायास नहीं था। उम्मीद थी कि न्याय होगा और हुआ भी। खास बात ये कि इस फैसले ने एक ऐसी नजीर पैदा कर दी जो कई लोगों के मुंह पर ताले लगा देगी। 29 अगस्त को ही एक टीवी न्यूज चैनल पर एक सीनियर पत्रकार ने एक ऐसा तर्क दिया जो बड़ी समस्या का सूत्र भर था, उन्होंने बहुतों की मानिंद शुतुरमुर्ग बन रेत में मुंह दबाने के बजाए सीधे मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा कि नरोडा मामले में जो न्याय हुआ है वो बहुतों के मुंह बंद करेगा इनमें वो मुस्लिम कट्टरपंथी, आतंकी और अल्पसंख्यकों को बरगलाने वाले लोग भी हैं जो यदा कदा ऐसे मामलों को उठाकर मुस्लिम जनमानस की भावनाओं को भड़काते रहे हैं। गौर कीजिए ये वही मुद्दा है जो एक आतंकी खुद को सही साबित करने के लिए उठाता है। ये वही मुद्दा है जिससे कुछ कट्टरपंथी युवाओं में नफरत का जहर भरते हैं, ये वही मुद्दा है जो बहुतों को समाज में दो फाड़कर सियासत चमकाने का मौका देता है।
असल में इन सबके पास युवाओं को बरगलाने का एक ही हथियार था कि इस देश में मुसलमानों के साथ न्याय नहीं होता। यहां गुजरात होता है, बाबरी ध्वंस होता है और अमूमन दंगे होते हैं और मुस्लिम मारे जाते हैं लेकिन जब देश में गुजरात के अंदर गुजरात की अदालत ने दंगाइयों पर न्याय का हथौड़ा चलाया तो एक ही झटके में ये सारे मिथक चूर-चूर हो गए। सबको समझ में आ गया कि देर सबेर ही सही लोकतंत्र के गुनहगारों को जवाब देना ही पड़ता है चाहे फिर वो दंगों की दोषी माया कोडनानी हो या कुख्यात आतंकी कसाब। सबको न्याय के कठघरे में खड़ा होना ही पड़ेगा।
हमने दरअसल गौर नहीं किया लेकिन हमारे देश में बीते दो दशकों से दो तरह के 'आतंकवादी' पनप रहे हैं एक वो जो धर्म की आड़ लेकर बम फोड़ते हैं और लोगों को मारते हैं और दूसरे वो जो दंगाई बन मासूमों का गला रेत देते हैं, रेप करते हैं। इन दोनों की जघन्यता कम नहीं हैं। दोनों ही हिकारत के लायक हैं। दोनों ही देशद्रोही हैं। ये भारतीय समाज को बांटना चाहते हैं। बीते कई सालों से भारत ने बम फोड़ने वाले आतंकियों का मुकाबला किया लेकिन वो हमारे आसपास फैले इन 'घर के आतंकवादियों' को देखने में नाकाम रहा। देर से ही सही लेकिन देश के न्यायतंत्र ने साबित किया है कि न्याय की आंखें हर उस इंसान को देख रही हैं जो देश में द्वेष फैला रहा है और भाई-भाई को लड़ा रहा है। ये फैसला कई मायनों में उन लोगों के लिए भी नजीर है जो दंगों के बल पर वोटों का ध्रुवीकरण करते हैं और सालों तक सत्ता में बने रहते हैं। उनके लिए भी ये संदेश है कि देर से ही सही लेकिन न्याय होगा और होकर रहेगा। हमें फख्र होना चाहिए, हमारे यहां 24 घंटे सांसें लेता एक जिंदा मीडिया है, देश के विरोधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाता एक न्यायतंत्र है और सबसे ज्यादा बढ़कर वो जनमानस है जो सबको ठेंगा दिखाकर कहता है कि वो पहले भारतीय ही है और रहेगा फिर चाहे कोई वोटों वाला भेड़िया उसे हिंदू कहे या फिर मुसलमान...जय हिंद।
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FIRST PUBLISHED : August 31, 2012, 13:11 IST