नई दिल्ली। अगले साल होने जा रहे उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव यकीनन कांग्रेस के लिए जीवन और मरण के सवाल की तरह है। दशकों से सत्ता बाहर चल रही कांग्रेस के लिए साल 2007 में राहुल गांधी ने खूब उम्मीदें जगाई थी, पर कांग्रेस 22 से आगे नहीं बढ़ पाई। ये संख्या साल 2002 के मुकाबले 25 से भी तीन कम थी।
कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में फिर से राहुल गांधी ने पूरा जोर लगाया साल 2012 में और कांग्रेस किसी तरह 28 सीटों तक पहुंची। ये उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की लगातार बुरी गत की एक और तस्वीर थी। पर अबतक कांग्रेस चाहे सत्ता में थी या नहीं, पर मजबूत जरूर थी। मगर इस समय देखें तो कांग्रेस साल 2014 के चुनाव में केंद्र की सत्ता गंवाने के बाद से राज्य दर राज्य अपने किलों की रक्षा में नाकाम रही है। ऐसे मे सवाल अब कांग्रेस की प्रतिष्ठा से कहीं ऊपर उठकर उसके अस्तित्व पर उठने लगा है।
शायद यही वजह थी कि कांग्रेस ने अपने साथ एक ऐसे रणनीतिकार को जोड़ा जो दो बार करिश्मा कर चुका है। इस शख्स का नाम है प्रशांत किशोर। कांग्रेस के मिशन 2017 की बात करें तो इस बार कांग्रेसियों के लिए प्रशांत किशोर नई उम्मीद बनकर आए हैं। वो प्रशांत किशोर, जिन्होंने नरेंद्र मोदी के लोकसभा चुनाव की कमान संभाली और दो दशकों से भी अधिक समय बाद केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। इन्हीं प्रशांत किशोर की उंगली पकड़ लालू यादव का साथ करने के बाद भी नीतीश कुमार की बिहार में सत्ता में वापसी हुई। नीतीश ने बिहार में उसी बीजेपी को धूल चटाई, जिसने लोकसभा चुनाव में विपक्ष को धूल चटा दी थी।
ऐसे में उत्तर प्रदेश कांग्रेस के लिए पीके किसी मसीहा सरीखे जैसे लग रहे हैं। कांग्रेसियों को उम्मीद है कि प्रशांत किशोर इस बार कुछ ऐसी तिकड़म भिड़ाएंगे कि दशकों से यूपी की सत्ता से बाहर रह रही कांग्रेस को सत्ता नहीं तो कम से कम सत्ता में भागीदारी ही मिल जाए। साल 2017 के विधानसभा चुनाव सिर्फ कांग्रेस के लिए ही नहीं, प्रशांत किशोर के लिए भी सबकुछ दांव पर लगाने जैसा है। प्रशांत के लिए इस चुनाव में कांग्रेस की जिम्मेदारी लेना, बिना ट्रेनिंग के किलिमंजारो चढ़ने सरीखा है। भले ही वो पर्वतारोही कितनी भी चोटियां फतह कर चुका हो। ऐसे में ये प्रशांत किशोर के लिए सबसे मुश्किल परीक्षा की तरह है।
प्रशांत किशोर इस चुनाव के लिए कमर कस चुके हैं और कांग्रेस के लिए पूरे राज्य का दौरा लगातार कर रहे हैं। योजनाएं बना रहे हैं। संगठन को मजबूत बनाने के लिए दिन रात एक कर रहे हैं पर अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही। दरअसल, इसके पीछे वजह ये है कि कांग्रेस के पास विधानसभा चुनावों के लिए कोई भरोसेमंद चेहरा तक नहीं है। न ही कोई जातीय समीकरण उसके पक्ष में हैं। दलितों को पहले ही बीएसपी अपने पाले में कर 4 बार सत्ता का स्वाद चख चुकी है, तो पिछड़ों और मुस्लिमों के समीकरण के साथ सपा ने सत्ता की सवारी की है।
बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से सवर्णों पर ऐसी पकड़ बनाई है कि वो ढीली पड़ती नहीं दिख रही। जबकि कांग्रेस के पास उसके तारणहार के तौर पर ऐसा कोई समीकरण और जातीय नेता नहीं है, जो करिश्माई पकड़ रखता हो। सुनने में आया है कि प्रशांत किशोर हर जिले के हिसाब से जातीय समीकरण को समझने में लगे हैं। इन्ही समीकरणों के आधार पर वो प्रत्याशी तय करेंगे। साथ ही प्रत्याशियों के पास कार्यकर्ताओं की फौज पर भी वो ध्यान देंगे। कार्यकर्ताओं की फौज प्रत्याशियों के पास इसलिए भी देखी जाएगी, क्योंकि समर्पित कांग्रेसियों की संख्या प्रदेश में नगण्य सी हो चली है।
प्रशांत किशोर के सामने ये मुश्किल भी है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता उनसे नाराज हैं। नेता इस बात पर नाराज हैं कि नए नवेले प्रशांत किशोर उन जैसे पके-पकाए नेताओं को निर्देश दे रहे हैं। पर प्रशांत ऐसे नेताओं की नाराजगी को नजरअंदाज करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। वो चाहते हैं कि चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले अपने क्षेत्र के हर बूथ से कार्यकर्ताओं का नाम दें, ताकि वो उसकी ताकत का अंदाजा लगा सके। यही नहीं, उन्होंने सभी नेताओं से आपसी लड़ाई और गुटबाजी से दूर रहने का भी फरमान जारी कर दिया है। बहरहाल, उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावों की अहमियत सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, पूरे देश पर असर डालने वाले साबित होंगे। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रशांत किशोर कांग्रेस को उबार पाएंगे, या इस हार के बार कांग्रेस हमेशा के लिए हाशिए पर चली जाएगी।
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Tags: Congress, Priyanka gandhi, Rahul gandhi
FIRST PUBLISHED : May 27, 2016, 12:21 IST