नई दिल्ली। यूपी चुनाव का बिगुल बज चुका है। तमाम दलों ने अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। इन सबमें आगे दिख रही है भारतीय जनता पार्टी। इलाहाबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कर बीजेपी ने जता दिया है कि वह यूपी को लेकर कितनी गंभीर है। लेकिन उसके सामने मुश्किलें भी अपार हैं।
असम का किला जितने के बाद चर्चा ये भी है कि इस बार बीजेपी सीएम पद का उम्मीदवार भी तय कर सकती है। उसकी निगाह इस बार सत्ता पर कब्जा जमाने की है। लेकिन यूपी के पेचीदा जातीय समीकरण उसके मंसूबे के आड़े आ रहा है। बेशक पार्टी ने पिछड़ी जाति के केशव मौर्य को यूपी की कमान दे दी हो, लेकिन जातीय समीकरण अभी भी पूरी तरह संतुलित नहीं हो पाया है।
उत्तर प्रदेश की सामाजिक स्थिति खासकर वोटरों की स्थिति क्या है और कौन से समीकरण किस पार्टी के लिए सटीक बैठ रहे हैं? भारतीय जनता पार्टी का आधार वोट बैंक उत्तर प्रदेश में क्या है? कौन हो सकता है बीजेपी का चेहरा, करते हैं इसी का विश्लेषण।
सबसे पहले अगर समीकरणों को देखें तो यादव+मुस्लिम वोटों का और समाजवादी पार्टी का पुराना साथ रहा है। वहीं, दलित वोटों पर बहुजन समाज पार्टी का हमेशा से जोर रहा है। कांग्रेस मुस्लिम वोटरों के साथ ही दलितों और ओबीसी वोटरों को साथ रखे हुए है। सपा-बसपा के समीकरण साफ हैं, उन्हें दूसरों के वोटबैंक में सेंध लगाने के साथ ही भारी सफलता मिल सकती है। साल 2007 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने अन्य पार्टियों का सूपड़ा साफ कर दिया था, तो साल 2012 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने।
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें और अबतक के वोटिंग पैटर्न को देखें तो भारतीय जनता पार्टी का आधार वोटवैंक सवर्ण खासकर राजपूतों और क्षत्रियों के साथ व्यापारिक वर्ग रहा है। यही उत्तर प्रदेश में बीजेपी का आधार वोट बनते रहे हैं। अगर मंदिर आंदोलन को छोड़ दें (उस समय सभी हिंदू वोटबैंक का साथ लगभग बीजेपी को ही मिला था, धार्मिक ध्रुवीकरण की वजह से) तो ये वोटबैंक हमेशा बीजेपी के साथ रहा है।
अगर साल 2014 के आम चुनावों की बात करें तो बीजेपी को ओबीसी और दलितों का वोट भी मिला। ये नरेंद्र मोदी का जादू था कि पार्टी को सभी वर्गों का वोट मिला और 7 सीटों को छोड़कर बीजेपी नीत गठबंधन ने क्लीनस्वीप कर दिया। ये देखते हुए बीजेपी साल 2017 के चुनाव में भी सोशल नेटवर्किग का गेम ही खेलना चाहेगी। इसके लिए अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी ने अपनी चालें पहले से ही तय कर दी हैं।
सूत्रों की मानें तो ये वही प्लान है जिसके तहत राजनाथ सिंह को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया जाना है। ध्यान से देखेें तो बीजेपी का ध्यान इस समय 3 तरह के वोटरों की तरफ है। पहला- ब्राह्मण, दूसरा-राजपूत और तीसरा-दलित। क्या बीजेपी इन तीनों ही वोटरों को इस चुनाव में साध लेगी। ऐसा वो तभी कर पाएगी, जब वो दलित, राजपूत और ब्राह्मण नेता का त्रिकोण सटीक तरह से तय करे। ये त्रिकोण ही राजनाथ सिंह को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाता है।
राजपूत नेता के तौर पर राजनाथ राजपूत वोटरों की अगुवाई करेंगे, तो दलित-पिछड़े वोटरों के लिए पार्टी ने पहले ही केशव प्रसाद मौर्य की पार्टी अध्यक्ष पद पर तैनाती कर दी है। अब बचे ब्राह्मण, तो इलाहाबाद में हुई रैली में मोदी ने जिस तरह पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी को तरजीह दी,उससे साबित हो गया कि यहां का समीकरण भी दुरुस्त किया जाएगा।
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Tags: Amit shah, BJP, Narendra modi, Rajnath Singh
FIRST PUBLISHED : June 14, 2016, 12:27 IST