रिपोर्ट: शक्ति सिंह
कोटा. कोटा की वक्त से साथ-साथ पहचान बदलती रही है. कोटा स्टोन, कोटा डोरिया, कोटा कोचिंग ने देश-विदेश में धाक जमाई है. धीरे धीरे इस कड़ी में ‘कोटा कचौरी’ का भी नाम शुमार हो गया है. कोटा कचौरी अब ब्रांड बन गया है. हिंदुस्तान ही नहीं, विदेश में रहने वाले लोग भी कोटा कचौरी के टेस्ट के दीवाने हैं. उड़द की दाल में हींग व कचौरी दलिया मिर्च डालकर तैयार होने वाली इस कचौरी के जायके का कोई तोड़ नहीं है.यहीं कारण है कि कैथोडी की चटनी (हरी) के साथ लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं.
यूं तो कचौरी के जायके का सफर रियासत काल से शुरू हुआ था. उस समय एक्का दुक्का दुकानें थी. अच्छी क्वालिटी के मसाले व हींग का स्वाद लोगों के मुंह ऐसा लगा कि, देखते ही देखते कोटा कचौरी एक ब्रांड बन गया. कोटा शास्त्री मार्केट से कोटा कचौरी का सफर शुरू हुआ था. कचौरी के व्यापार से जुड़े मनोज जैन बताते हैं कि उनकी चौथी पीढ़ी इस कारोबार को कर रही है. 1960 में उनके दादा ने कचौरी का कारोबार शुरू किया था. उस समय कोटा में केवल 2 जगह कचौरी मिलती थी. आज कोटा शहर में 250 से 300 से ज्यादा छोटी बड़ी दुकानें व इतने ही ठेले हैं जहां कचौरी बनाई व बेची जाती है. शहर में रोजाना एक लाख कचौरी की खपत होती है.
ये है कोटा कचौरी के स्वाद का राज
उड़द दाल, मैदा, बेसन से बनने वाली कचौरी में सबसे खास बात है इसके मसाले में डाले जाने वाला हींग. जो कचौरी के टेस्ट को जायकेदार बनाता है. मार्केट में 2 हजार से 30 हजार रुपये किलो की हींग मिलती है. लेकिन, कोटा कचौरी में 25 हजार रुपये किलो वाली हींग का इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही मसाले में डालने वाली मिर्च भी अच्छी क्वालिटी की इस्तेमाल की जाती है. इसे कचौरी दलिया कहते है. वहीं चंबल का पानी तेज मसालों को आसानी से डाइजेस्ट करता है.
इन दुकानों पर मिलती है सबसे टेस्टी कचौरी
शहर में वैसे तो काफी जगह कोटा कचौरी मिलती है. लेकिन, कुछ ठिकाने ऐसे हैं, जहां की कचौरी ब्रांड बन गई हैं. इनमें सुवालाल कचौरी, रतन कचौरी, पोरवाल कचौरी, पंडित कचौरी, फूलचंद कचौरी, रतलामी कचौरी, श्रीराम कचौरी, जैन कचौरी, जोधपुर कचौरी, जय अम्बे कचौरी, भीलवाड़ा कचौरी, पदम कचौरी वालों के यहां सबसे अच्छी क्वालिटी की कचौरी मिलती है.
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