रिपोर्ट: पीयूष पाठक
अलवर. अलवर शहर के रोडवेज बस स्टैंड परिसर में माता चिंतपूर्णी का भव्य मंदिर बना है. यहां माता के दर्शनों से ही भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. इस मंदिर की स्थापना सन 1974 में रोडवेज के कर्मचारियों द्वारा की गई. उसके बाद जन सहयोग से इस मंदिर का विस्तार किया गया. यह रोडवेज की निजी संपत्ति है. रोडवेज परिसर में बने इस मंदिर में चिंतपूर्णी मां शेर पर सवार होकर विराजमान हैं. साल में दो बार नवरात्रों पर यहां मेला लगता है. नवरात्र के 9 दिनों में भक्तों की भारी भीड़ यहां पर रहती है. जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आकर माता के सामने अपनी मनोकामना पूरी होने की कामना करते हैं.
मंदिर के महंत दिनेश शर्मा ने बताया मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां माता को 6 मीटर की साड़ी पोशाक के रूप में पहनाई जाती है. जो महिला की पोशाक होती है, वही माताजी को पहनाई जाती है. इसे कहीं से बनवाने की जरूरत नहीं है. भक्तों की जहां से मर्जी हो वहां से वह खरीद कर माता के चरणों में अर्पित करता है.दिनेश शर्मा ने बताया कि नवरात्रि की पोशाक चढ़ाने में यहां भक्तों का नंबर आने में 6 साल भी लग जाते हैं.
सन 1974 में रामनवमी के दिन मंदिर की स्थापना हुई. उस दिन मंदिर का पाटोत्सव भी मनाया जाता है. यह मंदिर का सबसे बड़ा कार्यक्रम होता है. इसके अलावा मंदिर में शिवरात्रि, जन्माष्टमी, पूर्णिमा सहित जैसे जैसे पर्व आते हैं, वैसे वैसे सभी पर्व यहां मनाए जाते हैं. चिंतपूर्णी माता के दर्शनों से भक्तों की सारी चिंताएं दूर हो जाती है. इसलिए माता को चिंतपूर्णी के नाम से जाना जाता है. अलवर शहर में चिंतपूर्णी माता का य़ह एकमात्र मंदिर है.
चिंतपूर्णी माता की प्रतिमा के बारे में दिनेश शर्मा ने बताया कि यह माता जी की प्रतिमा जयपुर से बनकर अलवर आई. चिंतपूर्णी माता की प्रतिमा करीब सवा तीन फीट की है. मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालु माता के आगे नतमस्तक होते हैं. नवरात्र में सबसे अधिक संख्या में भक्त माता के दर्शन करने के लिए आते हैं.
.
Tags: Alwar News, Rajasthan news