रिपोर्ट-पीयूष पाठक
अलवर. यदि जज्बा हो तो मंजिल भी दूर नहीं रहती. दिव्यांगों का यही जज्बा विकट परिस्थिति के बाद भी उनकी सफलता की कहानी को गढ़ता है. विकट परीस्थितियों का सामना कर अनेक भारतीय दिव्यांगों ने विभिन्न खेलों में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोहा मनवाया है. ऐसी एक दिव्यांग खिलाड़ी हैं ज्योति शर्मा. ज्योति डिस्क थ्रो में नेशनल प्रतियोगिताओं में 4 गोल्ड व 3 सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं. पिछले दिनों वे एक प्रतियोगिता में भाग लेने अलवर आई. इस दौरान उन्होंने डिस्क थ्रो के इवेंट में हिस्सा लिया.
इस तरह हुई शुरुआत
ज्योति ने बताया कि वे मूलतः झुंझुनूं जिले की रहने वाली हैं. उनके खेल की शुरुआत उनकी सीनियर खिलाड़ी सुमन ढाका ने की. सुमन ने ज्योति को बताया कि विकलांगता को अपना हुनर बनाना है. इसके लिए आपको मेहनत करनी है. सुमन ने बताया कि अगर आप इससे अच्छा करें, तो आप आगे बढ़ सकते हैं. खेल शुरू करने के बाद ज्योति ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
कोच जयवीर सिंह शेखावत की देखरेख में ज्योति ने अभ्यास शुरू किया. ज्योति के पिताजी ने उसका पूरा सपोर्ट किया. ज्योति ने बताया कि कोच देवी सिंह शेखावत की देखरेख में ट्रेनिंग की. उन्होंने पैरा प्रतियोगिता में 4 नेशनल मेडल जीते व 3 सिल्वर मेडल जीते. ज्योति भारत का प्रतिनिधित्व मोरक्को में कर चुकी हैं. ज्योति ने बताया कि जब उन्होंने शुरुआत की तब उन्हें लोगों की मानसिकता के बारे में पता लगा, कि लोग विकलांगता को क्यों अपना हथियार नहीं मानते. लोग उन्हें सपोर्ट नहीं करते हैं और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं. लेकिन ज्योति ने इस बात को गलत साबित करके अपना मुकाम हासिल किया. पहले जो लोग उनके साथ खड़े नहीं होते थे अब वे उनके पास आकर उनसे बात करते हैं.
परिवार का मिला साथ, तो खेल ने भी दिलाई नौकरी
ज्योति ने बताया कि इस पूरे सफर में उनके परिवार वालों का पूरा साथ रहा. उनकी छोटी बहन उनके साथ टूर्नामेंट में उनका सपोर्ट करती थी. उनके पिताजी ने भी उनका पूरा साथ दिया. ज्योति ने बताया कि उनके होने वाले पति ने भी इसमें उनका पूरा साथ दिया और खेलने के लिए प्रेरणा दी. खेल में अपनी पहचान बनाने के बाद ज्योति अब जयपुर सचिवालय में बाबू के पद पर कार्यरत है. ज्योति का लोगों से कहना है कि वे अपनी इच्छाओं को नहीं दबाएं और आगे बढ़ें.
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