रिपोर्ट-मनमोहन सेजू
बाड़मेर. कहते हैं कि इंसान अगर ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं है. कुछ ऐसा ही करके दिखाया है निंबाणियों की ढ़ाणी ग्राम पंचायत के मेघवालो की ढाणी निवासी खेताराम और उनकी पत्नी कमला देवी ने. इन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद हार नहीं मानी और मौजूदा समय में इनके खेत में करीब 225 सागवान के पौधे लहलहा रहे हैं.
रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृति के बाद खेताराम ने कुछ अलग करने की सोची. जो भविष्य में उनके लिए फिक्स डिपाजिट की तर्ज पर काम आ सके. इस दौरान एक स्वयंसेवी संस्था कवास इलाके में सागवान के पौधे रियायती दर पर बेचने के लिए आई. खेताराम के दिमाग में सागवान के पौधे लगाने का आइडिया आया और उन्होंने 32 हजार की लागत से 225 पौधे खरीद लिए. बाड़मेर जैसे रेगिस्तानी जिले में सागवान के पौधों को लगाने के साथ पनपाना किसी चुनौती से कम नहीं था.
खेताराम के साथ कुछ अन्य लोगों ने भी सागवान के पौधे खरीदे, लेकिन विकसित नहीं हो पाए. खेताराम और उनकी पत्नी कमला देवी ने ठान लिया था कि कैसे भी हो इन पौधों को पेड़ के रूप में तब्दील करना है. लगातार सार संभाल, बंद-बूंद सिंचाई का इस्तेमाल, कृषि विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में पेड़ां की क्रापिंग की बदौलत आज उनके खेत में सागवान के 225 पौधे लहलहा रहे हैं.
खेताराम बताते हैं कि यह उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं था. उनकी पत्नी हर समय उनको प्रेरित करती रहती थी. आसपास के कई किसानो ने सागवान के पौधे लिए थे, मगर वे पौधे पनप नहीं पाए. ऐसे में उन्होंने यह ठान लिया था कि कैसे भी हो, इन पौधों को पनपाना है. इसका नतीजा यह हुआ कि आगामी 15 साल में यह पौधे बड़े वृक्ष के रूप मेंं तब्दील हो जाएंगे. फिलहाल 5 साल की मेहनत के बदौलत 27 फीट लंबे पौधे हो चुके हैं.
खेताराम बताते हैं कि अगर पूर्ण निष्ठा और समर्पण भाव से प्रयास किया जाए, तो जंगल में मंगल किया जा सकता है. बहरहाल खेताराम आगामी दिनों में सागवान एवं अन्य पौधों से होने वाले आय को लेकर खासे उत्साहित हैं.
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