रिपोर्ट : मनमोहन सेजू
बाड़मेर. रेगिस्तान का जिक्र आते ही जेहन में सूखे और रेत के टीलों की तस्वीर उभरती है, लेकिन राजस्थान के सीमांत ज़िले में ऐसा कुछ हो रहा है, जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल है. बाड़मेर के मांसती दाक्षायणी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष ने 350 किस्मों के करीब 4000 पौधे लगाए हैं, जिनमें सबसे ज्यादा हैरान करता है कश्मीर का केसर. जी हां, कश्मीर की बर्फीली वादियों में बरसों से शान से खिलने वाला केसर अब रेगिस्तानी बाड़मेर में महकता नज़र आ रहा है.
बाड़मेर ज़िला मुख्यालय के रातानाडा इलाके में बने भगवान शिव की पहली पत्नी माता दाक्षायणी के मंदिर में साल 2014 में सार्वजनिक निर्माण विभाग से सेवानिवृत्त हुए वासुदेव जोशी पौधे लगाने के काम मे जुट गए. उन्होंने सपना बना लिया था कि मंदिर की वाटिका में कुछ ऐसा कर दिखाएं, जिसे देखकर सभी हैरान रह जाएं. इन्होंने यहां स्थानीय पौधों की जगह अलग-अलग जगहों के पौधों को लगाने का काम शुरू किया. आज हज़ारों पौधे यहां लहलहाते दिख रहे हैं.
मंदिर की वाटिका में कपूर, इलायची, लौंग, चंदन, अगरवुड, केसर, शीशम, अशोक, कृष्णवट और रुद्राक्ष सहित 350 से अधिक किस्म के पौधे यहां हैं. लेकिन सबसे ज्यादा हैरान करने वाले पौधे के बारे में मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष वासुदेव जोशी ने बताया पिछले 5 बरसों से वह जी जान से जुटे हुए हैं. लगातार मौसम परिवर्तन की वजह से केसर यहां नहीं लग पा रहा था, पर इस साल उन्होंने कश्मीर से 1 किलो बल्ब करीब 1400 रुपये में खरीद कर बुआई की तो सफलता मिल गई. केसर के अनुकूल मौसम को रखने के लिए उन्होंने घने पेड़-पौधों के नीचे केसर लगा दिया, जिससे मौसम ठंडा रहा. 5 साल की मेहनत के बाद थार के रेगिस्तान में पहली बार केसर खिल उठा है.
रेगिस्तान में केसर का खिलना किसी अचरज से कम नहीं है. कृषि वैज्ञानिक श्याम दास का कहना है ‘जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश जैसे ठंडे प्रदेशों में उगने वाले केसर को बाड़मेर में उगाना किसी आश्चर्य से कम नहीं है. यकीनन इसके लिए बहुत मेहनत और जतन किए गए हैं. बाड़मेर में कृषि में नवाचार हो रहे हैं.’
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