रिपोर्ट: मनमोहन सेजू
बाड़मेर. भारत- पाकिस्तान की सीमा पर बसे रेतीले बाड़मेर में काजोल मुस्कुराई है और काजोल की यह मुस्कुराहट न केवल एक जगह, एक इंसान के लिए बल्कि आने वाले वर्षों में हजारों लोगों के लिए उन्नति के नए दरवाज़े खोलने का काम करेगी. यह काजोल है तरबूज की एक किस्म, जिसे धोरा धरती पर न केवल लगाकर बल्कि उसकी सैकड़ो किलो उपज लेकर एक किसान ने इतिहास रच दिया है.
बाड़मेर जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित मिठड़ी गांव के युवा किसान उम्मेदाराम प्रजापत ने खेती में नवाचार का नया कीर्तिमान बना दिया है. अपने खेत मे उन्होंने तरबूज के 1 लाख पौधों को बौने की ना केवल जोखिम ली, बल्कि अपनी मेहनत से उन पौधों से सफल पैदावार लेकर कीर्तिमान रच दिया है. जिस रेतीली जमीन पर बाजरा, ग्वार औऱ तिलहन की फसल बरसाती सीजन में ही हो सकती है वहां उम्मेदाराम ने तरबूज की बंपर फसल पैदा करके कीर्तिमान रच दिया है.
25 हजार रुपये प्रति किलो के हिसाब से 5 किलो बीज जयपुर और उदयपुर से उम्मेदाराम ने बीज खरीदे और तरबूज की काजोल और कलस केडी किस्म के 1 लाख पौधों को खेत मे लगाया. किसान उम्मेदाराम का कहना है कि जयपुर व उदयपुर से 5 किलो बीज मंगवाए थे. इससे करीब 14-15 लाख रुपये की आय होने की उम्मीद है. इसमे यूनिसेम की काजोल और कलस की केड़ी किस्म की बुआई की गई है.
उम्मेदाराम ने बून्द बून्द सिंचाई पद्द्ति और मल्चिंग से खेती की. जिसका नतीजा यह रहा कि आज बाड़मेर के सबसे अच्छे किसानों में शुमार हो चुके उम्मेदाराम प्रजापत ने रेगिस्तानी बाड़मेर में वह कर दिखाया जिसके कल्पना तो क्या, कभी सोचा भी नहीं गया था. उम्मेदाराम बताते है कि करीब 20 बीघा में तरबूज की खेती की है. इस जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए देशी खाद व ड्रिप सिस्टम से सिंचाई की है. जनवरी माह में इसकी बुआई की गई थी. इतना ही नही यूनिसेम की काजोल व कलस की केड़ी किस्म काफी उपजाऊ है, इसमें एक तरबूज कम से कम 4 किलो का लगेगा.
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