बाड़मेर: कबड्डी में देशभर में नाम कमाने वाली राजस्थान की बेहतरीन खिलाड़ी आज खेतों में चरा रही है मवेशी

मांगी वर्ष 2010 में बाड़मेर जिले की प्रथम छात्रा थी जिसने राजस्थान कबड्डी टीम का नेतृत्व करने का गौरव हासिल किया था.
कबड्डी (Kabaddi) की बेहतरीन खिलाड़ी बाड़मेर की मांगी चौधरी (Mangi Chaudhary) सरकारी प्रोत्साहन के अभाव में आज खेतों में पशुओं (Cattle) को चराने और झौड़ा पौंछा करने को मजबूर है. मांगी 20 बार जिला स्तर और 2 बार राज्य स्तर पर कबड्डी टीम का नेतृत्व कर चुकी है.
- News18 Rajasthan
- Last Updated: December 14, 2020, 11:04 AM IST
बाड़मेर. 20 बार से ज्यादा जिले का और दो बार राजस्थान (Rajasthan) का नेतृत्व कर देशभर में अपनी खेल प्रतिभा का परिचय देने वाली कबड्डी (Kabaddi) की प्रतिभाशाली खिलाड़ी आज घर के चूल्हे चौके और पशुओं (Cattle) की देखरेख तक ही सीमित होकर रह गई है. खेल के मैदान में जिस होनहार ग्रामीण बाला ने सफलता के झंडे गाड़े वह अब घर में झाडू पौंछे को अपना मुकद्दर बना चुकी है. देशभर में कबड्डी में नाम कमाने के बाद बाड़मेर की मांगी चौधरी (Mangi Chaudhary) आज खेतों में पशुओं चराने जैसे काम कर गुमनामी की जिंदगी जी रही है.
पश्चिमी राजस्थान में भारत-पाकिस्तान की सरहद के अंतिम छोर पर बसे रेतीले बाड़मेर जिले के सोड़ियार गांव की मांगी चौधरी ने शुरू से ही कबड्डी के खेल में अपनी प्रतिभा का डंका बजाया. प्राथमिक शिक्षा से लेकर सीनियर तक की पढ़ाई के दौरान मांगी चौधरी ने कबड्डी खेल में अपनी अलग ही पहचान बनाई. दो बार राजस्थान टीम का नेतृत्व करने का गौरव हासिल किया. लेकिन सरकार की तरफ से कोई प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण वह आज केवल चूल्हे चौके तक ही सीमित होकर रह गई. इन दिनों मांगी अपने खेतों में पशुओं को चराने और खेतीबाड़ी के साथ गृहिणी बनकर घर का काम संम्भाल रही है.

बाड़मेर जिले की प्रथम छात्रा है जिसने राजस्थान कबड्डी टीम का नेतृत्व कियाबाड़मेर की मांगी चौधरी ने 20 बार स्टेट लेवल पर अपना दबदबा दिखाया. मांगी वर्ष 2010 में बाड़मेर जिले की प्रथम छात्रा थी जिसने राजस्थान कबड्डी टीम का नेतृत्व करने का गौरव हासिल किया है. इसी तरह 2012 में फिर राजस्थान टीम का नेतृत्व कर सबको चौका दिया. मांगी के खेल को देश के कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने सराहा है. खेल संसाधनों के अभाव के बावजूद भी मांगी ने अपनी प्रतिभा का झंडा बुलंद किया. मांगी बताती है कि कबड्डी हमेशा से उनका पसंदीदा खेल रहा है.
अभावों ने भले ही चारों तरफ से घेर रखा है लेकिन हिम्मत नहीं हारी
मांगी बताती है कि उन्हें कई जिलों व राज्यों में कबड्डी खेलना का सौभाग्य मिला. उनके मन में बाड़मेर जिले में कबड्डी का कोच बनने की तमन्ना थी, लेकिन सरकार से प्रोत्साहन नहीं मिला इस वजह से उसकी प्रतिभा केवल चूल्हे चौके और पशुओं की देखरेख तक ही सीमित होकर रह गई है. कभी कबड्डी के मैदान में अपने खेल का जलवा दिखाने वाली मांगी चौधरी आज अपने खेत, पशुओं और अपने झौंपड़े के आसपास ही नजर आती है. सरकारी प्रोत्साहन के अभाव में मांगी के सपने धीरे-धीरे खोते जा रहे हैं. मांगी कहती है कि अभावों ने भले ही चारों तरफ से घेर रखा है लेकिन हिम्मत नहीं हारी है. किसी के आगे हाथ नहीं फैलाए, लेकिन आंखों में मदद की उम्मीदें अब भी तैरती नजर आती है.
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सरकारी दावे बातों तक ही सीमित हैं
एक तरफ राज्य और केंद्र सरकार जहां बेटियों को आगे बढ़ाने की बात करती है वहीं मांगी चौधरी जैसी प्रतिभाओं के हालात देख कर लगता है कि सरकारी बातें महज बातों तलक ही सीमित है. मांगी चौधरी जैसी प्रतिभाओं को अगर सरकारी प्रोत्साहन मिले तो सही मायने में बेटियों को आगे बढ़ाने के नारे सार्थक नजर होते नजर आएंगे.
पश्चिमी राजस्थान में भारत-पाकिस्तान की सरहद के अंतिम छोर पर बसे रेतीले बाड़मेर जिले के सोड़ियार गांव की मांगी चौधरी ने शुरू से ही कबड्डी के खेल में अपनी प्रतिभा का डंका बजाया. प्राथमिक शिक्षा से लेकर सीनियर तक की पढ़ाई के दौरान मांगी चौधरी ने कबड्डी खेल में अपनी अलग ही पहचान बनाई. दो बार राजस्थान टीम का नेतृत्व करने का गौरव हासिल किया. लेकिन सरकार की तरफ से कोई प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण वह आज केवल चूल्हे चौके तक ही सीमित होकर रह गई. इन दिनों मांगी अपने खेतों में पशुओं को चराने और खेतीबाड़ी के साथ गृहिणी बनकर घर का काम संम्भाल रही है.

मांगी चौधरी
बाड़मेर जिले की प्रथम छात्रा है जिसने राजस्थान कबड्डी टीम का नेतृत्व कियाबाड़मेर की मांगी चौधरी ने 20 बार स्टेट लेवल पर अपना दबदबा दिखाया. मांगी वर्ष 2010 में बाड़मेर जिले की प्रथम छात्रा थी जिसने राजस्थान कबड्डी टीम का नेतृत्व करने का गौरव हासिल किया है. इसी तरह 2012 में फिर राजस्थान टीम का नेतृत्व कर सबको चौका दिया. मांगी के खेल को देश के कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने सराहा है. खेल संसाधनों के अभाव के बावजूद भी मांगी ने अपनी प्रतिभा का झंडा बुलंद किया. मांगी बताती है कि कबड्डी हमेशा से उनका पसंदीदा खेल रहा है.
अभावों ने भले ही चारों तरफ से घेर रखा है लेकिन हिम्मत नहीं हारी
मांगी बताती है कि उन्हें कई जिलों व राज्यों में कबड्डी खेलना का सौभाग्य मिला. उनके मन में बाड़मेर जिले में कबड्डी का कोच बनने की तमन्ना थी, लेकिन सरकार से प्रोत्साहन नहीं मिला इस वजह से उसकी प्रतिभा केवल चूल्हे चौके और पशुओं की देखरेख तक ही सीमित होकर रह गई है. कभी कबड्डी के मैदान में अपने खेल का जलवा दिखाने वाली मांगी चौधरी आज अपने खेत, पशुओं और अपने झौंपड़े के आसपास ही नजर आती है. सरकारी प्रोत्साहन के अभाव में मांगी के सपने धीरे-धीरे खोते जा रहे हैं. मांगी कहती है कि अभावों ने भले ही चारों तरफ से घेर रखा है लेकिन हिम्मत नहीं हारी है. किसी के आगे हाथ नहीं फैलाए, लेकिन आंखों में मदद की उम्मीदें अब भी तैरती नजर आती है.
निकाय चुनाव परिणाम: कांग्रेस की जीत के बावजूद 4 मंत्रियों और 18 विधायकों के क्षेत्रों में पार्टी को नहीं मिला बहुमत
सरकारी दावे बातों तक ही सीमित हैं
एक तरफ राज्य और केंद्र सरकार जहां बेटियों को आगे बढ़ाने की बात करती है वहीं मांगी चौधरी जैसी प्रतिभाओं के हालात देख कर लगता है कि सरकारी बातें महज बातों तलक ही सीमित है. मांगी चौधरी जैसी प्रतिभाओं को अगर सरकारी प्रोत्साहन मिले तो सही मायने में बेटियों को आगे बढ़ाने के नारे सार्थक नजर होते नजर आएंगे.