भुसावर क्षेत्र में किसानों के द्वारा पैदा की गई पपीते के फसल
रिपोर्ट : ललितेश कुशवाहा
भरतपुर. देश का किसान लगातार प्राकृतिक आपदाओं से जूझते हुए खेती करता है. अक्सर देखा जाता है कि पारंपरिक खेती में दिन रात मेहनत करने के बाबजूद भी आर्थिक स्थिति सुधरने की बजाय गिरती जाती है. लेकिन ठीक इसके विपरित कुछ किसान ऐसे भी है जो पारंपरिक खेती को छोड़ नई तकनीक से लाखों रुपये कमा रहे हैं. राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित भुसावर कस्बे के किसान कम जमीन और कम लागत से नई तकनीकी के जरिए पपीता (Papaya) की खेती कर ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं. वहीं भुसावर कस्बा बागवानी के लिए राजस्थान में प्रसिद्ध है. यहां के किसान इस फसल के उत्पादन में चार से पांच प्रकार का खाद प्रयोग में ले रहे है.
किसान रघुवीर सैन ने कहा, ‘पहले हम गेंहू,सरसों, चना आदि फसल की पारंपरिक खेती करते थे. लेकिन इस खेती में दिन रात मेहनत करने के बाद भी आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा था. एक दिन आपसी मित्रों की बातचीत में पारंपरिक खेती को छोड़ नई तकनीक से करने का विचार आया. बाहर से पपीता के छोटे पौधे लाकर खेत में रोपते है और दो से तीन महीने में तैयार हो जाते है.इस खेती में रसायनिक उर्बकों का उपयोग नही करके छाछ नीम ,तम्बाकू की पत्तियां, गोबर की खाद, मुर्गी, चमगादड की बीट व वर्मी कम्पोस्ट खाद के सल्फर वाले तत्त्वों का प्रयोग कर कम लागत में अधिक पैदावार होने के साथ ही दुगना मुनाफा कमा रहे है’.
अबकी बार पपीते का मंडी भाव 40 से 50 रुपये किलो
किसान प्रकाश सैनी ने बताया कि अबकी बार पपीते की पैदावार अधिक होने और मंडी भाव अच्छा होने से मुनाफा भी दुगना हो रहा है. पिछले साल पपीता कम आने के साथ मंडी में भाव भी कम था. लेकिन इस बार भुसावर के पपीते की मांग जयपुर,दिल्ली , हरियाणा,उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में है और इस बार भाव भी 40 से 50 रुपये प्रति किलो है.यहां के किसान इस फसल से प्रतिमाह लाखों कमा रहे हैं.
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