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गरीब है तो क्या हुआ? दिल तो बड़ा है जी... युवा सुनील अपने खर्चे पर चला रहे हैं दिव्यांगों के लिए स्पेशल स्कूल

सुनील ने बताया कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. इसके बावजूद भी ऐसे बच्चों के प्रति लगाव होने के कारण यह कदम उठाया. उन ...अधिक पढ़ें

रिपोर्ट: ललितेश कुशवाहा
भरतपुर.
देश में एक तरफ युवा राजनीति में जाकर समाज सेवा करना पसंद करते हैं. तो कुछ युवा ऐसे भी हैं जो राजनीति से दूर रह कर अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर समाजसेवा करने का शौक रखते है. एक ऐसा ही युवा है भरतपुर निवासी सुनील गुर्जर, जो पिछले चार वर्षो से निशुल्क दिव्यांग बच्चों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास कर रहा है. उन्होंने ऐसे बच्चों के लिए कल्याण जन सेवा शिक्षा एवं ग्रामीण विकास समिति के तहत लोहगढ़ स्पेशल स्कूल फोर दिव्यांग नाम से विद्यालय संचालित कर रखा है.

विद्यालय की पूरी व्यवस्थाओं का खर्चा वो खुद उठाते हैं. उन्होंने बताया कि अभी तक उनको सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली है. उन्होंने बताया कि इस विद्यालय में जो बच्चे मानसिक विकलांग ,बोलने, सुनने और समझने के साथ दैनिक कार्यों को करने में असमर्थ है उन पर विशेष फोकस किया जाता है. सुनील का कहना है कि उनकी मेहनत रंग ला रही है क्योंकि उनके द्वारा किया जा रहा कार्य लोगों को पसंद आ रहा है. उनकी विद्यालय में करीब 5 दर्जन से अधिक बच्चे शिक्षित हो रहे हैं.

ऐसे आया विचार..
सुनील ने बताया कि जयपुर से 2016 -18 में उन्होंने विशेष बीएड की थी. इसी समय इंटरशिप के दौरान उन्हें मानसिक दिव्यांग बच्चों से मिलने का मौका मिला. इन बच्चों की स्थिति को देख उनके मन में विचार आया कि ऐसे बच्चे हमारे शहर में भी होंगे. लिहाजा यहां आकर सर्वे किया तो काफी बच्चे ऐसे मिले जिनकी उन्हें तलाश थी. मानसिक दिव्यांग बच्चों के परिजनों से बातचीत कर गांधी नगर कॉलोनी में कल्याण जन सेवा शिक्षा एवं ग्रामीण विकास समिति के तहत लोहगढ़ स्पेशल स्कूल फोर दिव्यांग नाम से विद्यालय की शुरुआत कर दी. अब उनके विद्यालय में करीब 60 बच्चे हैं जो नियमित शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं उन्हें लाने और ले जाने की जिम्मेदारी उन्होंने खुद उठा रखी है.

निजी खर्चे पर चला रहे हैं स्पेशल विद्यालय...
सुनील ने बताया कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. इसके बावजूद भी ऐसे बच्चों के प्रति लगाव होने के कारण यह कदम उठाया. उनका कहना है कि विद्यालय बिल्डिंग किराया से लेकर रखरखाव और शिक्षकों का वेतन खुद दे रहे हैं. बच्चों को लाने और ले जाने के लिए स्वयं के खर्चे पर दो ऑटो रिक्शा लगा रखे हैं. इन सभी व्यवस्थाओं का खर्चा प्रतिमाह 80 हजार के आस-पास है. उन्होंने सरकार और जिला प्रशासन से कई बार मदद की मांग की है लेकिन अभी तक उन्हें किसी भी प्रकार की कोई मदद नहीं मिल पाई है. उनका कहना है कि मदद मिले या नहीं लेकिन यह कारवां आगे बढ़ चुका है अब किसी भी स्थिति में रुकने वाला नहीं है. वही आपको बता दें कि उनको इस कार्य को लेकर जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की संस्थाओं के द्वारा सम्मानित किया जा चुका है.

Tags: Bharatpur News, Divyang leader, School

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