रिपोर्ट: ललितेश कुशवाहा
भरतपुर. कहा जाता है कि अब बेटियां भी किसी से कम नहीं है. अगर देखा जाए तो सभी क्षेत्रों में बेटियां बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहीं हैं. लेकिन जो लोग आज भी बेटों से कम बेटियों को अहमियत देते हैं तो उनके लिए मिसाल हैं आगरा निवासी तेजपाल सिंह. उनके सपनों को बेटे की जगह बेटी पूरा कर रही है. हम बात करने वाले हैं भरतपुर में कुछ दिन पहले आयोजित किए गए महिला कुश्ती दंगल में भारत केसरी विजेता गामिनी चाहर (Bharat Kesari winner Gamini Chahar) की. इनकी कहानी हैरान करने के साथ-साथ प्रेरणादायक भी है.
आगरा जिले की निवासी गामिनी चाहर के पिता तेजपाल सिंह को बचपन से ही कुश्ती का बड़ा शौक था. वो खुद तो अपने सपने को साकार नहीं कर सके लेकिन अपने बच्चों के माध्यम से पूरा करने में लगे. वही भरतपुर में आयोजित महिला कुश्ती दंगल में उनकी बेटी गामनी ने भारत केसरी विजेता बनकर अपने पिता के सपनों को पूरा कर रही है. इस जीत को लेकर उनके पिता खुश होने के साथ-साथ अपनी बेटी पर गर्व कर रहे हैं..
पहले बेटे में देखा था सपना …
उत्तर प्रदेश स्थित जिला आगरा के गांव गामरी निवासी तेजपाल ने बताया कि कुश्ती उनका बचपन का शौक है. इसी शौक को पूरा करने के लिए पहले कुश्ती में अपने बेटे को अखाड़े में उतारा. लेकिन जैसे-जैसे जैसे बड़ा होने लगा वैसे-वैसे गलत रास्ते पर जाने लगा. उसे अपनी मंजिल से भटकता देख उसकी शादी कराकर पहलवानी से छुट्टी करा दी. इसके बाद अब अंदर ही अंदर घुटने के साथ ही मन ही मन सोचता रहता कि एक बेटा था वह भी सपना पूरा नहीं कर सका, पता नहीं अब सपना पूरा किस जन्म में होगा. उन्होंने बताया कि उनकी तीन बेटी और एक बेटा है. जिनमें गामिनी सबसे छोटी बेटी है.
भाई बहिन के झगड़े ने दिखाया रास्ता…
तेजपाल ने बताया कि एक दिन वह घर के बाहर बैठे थे. उसकी छोटी बेटी गामिनी चाहर उसके छोटे भाई के बेटे से झगड़ रही थी. इस झगड़े में बेटी ने अपने से बड़े चचेरे भाई को पीट दिया. इस दृश्य को देख तेजपाल मन ही मन खुश हुए और उसी समय ठान लिया अब बेटी से पहलवानी कराएंगे. फिर तो बिना देर किए अपनी बेटी को अखाड़े में उतार कर कुश्ती सिखानी शुरू कर दी. जिस दिन से बेटी ने कुश्ती शुरू की है उस दिन से निराश नहीं किया. वही गामिनी की उम्र 15 साल तीन माह है जिसने अब तक राज्य स्तर पर तीन गोल्ड और राष्ट्रिय स्तर पर एक ब्रॉन्ज मेडल जीता. वो रोहतक में रहकर कुश्ती सीख रही है.
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