Lockdown: दिव्यांग बेटे को भरतपुर से बरेली ले जाने को पिता ने चुराई साइकिल, छोड़ी चिट्ठी- मैं कसूरवार, माफ कर देना

मोहम्मद इकबाल की लिखी चिट्ठी
बरेली के श्रमिक मोहम्मद इकबाल ने अपने दिव्यांग बेटे को भरतपुर (Bharatpur) से बरेली (Bareily) ले जाने के लिए साइकिल चुरा ली. इकबाल ने यहां एक चिट्ठी लिखकर छोड़ दी. इस चिट्ठी में उन्होंने साइकिल मालिक से माफी मांगी.
- News18 Rajasthan
- Last Updated: May 16, 2020, 11:22 AM IST
भरतपुर. जब संतान पर दुःख आता है तब एक पिता किसी भी मुश्किल को पार कर जाता है पहाड़ का सीना भी चीर सकता है. एक संतान के दुःख से दुखी ऐसे ही एक बेबस और मजलूम पिता ने अपने संतान के लिए साइकिल चुराई (Theft Cycle) और वहां चिट्ठी लिखकर रख दी. चिट्ठी में लिखा- मैं आपका कसूरवार हूं, माफ कर देना. बरेली के मोहम्मद इकबाल (Mohammad Iqbal) ने बहुत अजीब हालतों में साहब सिंह (Sahab Singh) को एक चिठ्ठी लिखी. मोहम्मद की यह चिट्ठी मानवता की एक मिसाल के रूप में इतिहास के पन्नों में दर्ज की जाएगी.
चिट्ठी लिखकर माफी मांगी
मोहम्मद इकबाल ने अपने दिव्यांग बेटे के लिए भरतपुर के रारह से साइकिल उठा ली और इस साइकिल को उठाते हुए उसका ईमान गवाही नहीं दे रहा था. यही वजह है कि इकबाल ने साइकिल उठाते हुए उसके मालिक के नाम एक चिट्ठी लिखी और माफी मांगी. उसने चिट्ठी की शुरूआत में लिखा है कि मैं आपका कसूरवार हूं. मैं एक मजदूर हूं और मजबूर भी. मैं आपकी साइकिल लेकर जा रहा हूं. मुझे माफ कर देना. मेरे पास कोई साधन नहीं है और मुझे अपने विकलांग बच्चे को लेकर बरेली तक जाना है.
भरतपुर के रारह से उठाई साइकिलरारह, राजस्थान और उत्तरप्रदेश की सीमा के पास का इलाका है. यहां प्रतिदिन सैकड़ों की तादाद में श्रमिक यूपी की ओर पलायन कर रहे हैं. भरतपुर के रारह के निकट गांव सहनावली निवासी साहबसिंह की साइकिल बुधवार रात बरामदे से गायब हो गई. साहब सिंह ने साइकिल बहुत खोजी लेकिन नहीं मिली. अगली सुबह बरामदे में झाड़ू लगाते हुए समय कागज का एक छोटा सा टुकड़ा मिला.
चिट्ठी पढ़ते ही साइकिल मालिक की आंखों में आंसू आ गए
यह कागज का टुकड़ा मोहम्मद इकबाल की चिट्ठी थी उसने अपना दर्द बयां किया था. इस चिट्ठी को पढ़कर साहबसिंह की आँखें भर आईं. उसने कहा कि उसे साइकिल चोरी हो जाने पर बहुत आक्रोश और चिंता थी लेकिन इस चिट्ठी को पढ़कर मेरा गुस्सा अब संतोष में बदल गया है. मेरे मन में साइकिल ले जाने वाले मोहम्मद इकबाल के प्रति कोई द्वेष नहीं है बल्कि यह साइकिल सही मायने में किसी के दर्द के दरिया को पार करने में काम आ रही है. इस भावना से उसका मन प्रफुल्लित हो गया है. साहबसिंह ने कहा कि मजबूर और मजलूम मोहम्मद इकबाल ने बेबसी में आकर ऐसा काम किया. अन्यथा बरामदे में और भी कई कीमती चीजें पड़ी थी पर उसने उन्हें हाथ नहीं लगाया.
बरेली का है मोहम्मद इकबाल
मोहम्मद इकबाल कहां से आया था, क्या करता था और उसके साथ और कौन था इस विषय में कहीं कोई सूचना नहीं मिल सकी है. उसे बरेली में कहां जाना था इस बारे में भी कुछ पता नहीं चल सका है. इस बात की पूरी संभावना है कि वह राजस्थान और गुजरात के उन हजारों प्रवासी मजदूरों में से ही एक था जो इन दिनों अपने गांव, शहर और घर पहुंचने की जद्दोजहद में चलते जा रहे हैं. इन प्रवासी मजदूरों में अधिकांश ऐसे हैं जिनके पास कोई साधन नहीं हैं. बस यही प्रार्थना है कि मोहम्मद इकबाल अपने बच्चे के साथ अपनी मंजिल तक पहुंच सके.
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चिट्ठी लिखकर माफी मांगी
मोहम्मद इकबाल ने अपने दिव्यांग बेटे के लिए भरतपुर के रारह से साइकिल उठा ली और इस साइकिल को उठाते हुए उसका ईमान गवाही नहीं दे रहा था. यही वजह है कि इकबाल ने साइकिल उठाते हुए उसके मालिक के नाम एक चिट्ठी लिखी और माफी मांगी. उसने चिट्ठी की शुरूआत में लिखा है कि मैं आपका कसूरवार हूं. मैं एक मजदूर हूं और मजबूर भी. मैं आपकी साइकिल लेकर जा रहा हूं. मुझे माफ कर देना. मेरे पास कोई साधन नहीं है और मुझे अपने विकलांग बच्चे को लेकर बरेली तक जाना है.
भरतपुर के रारह से उठाई साइकिलरारह, राजस्थान और उत्तरप्रदेश की सीमा के पास का इलाका है. यहां प्रतिदिन सैकड़ों की तादाद में श्रमिक यूपी की ओर पलायन कर रहे हैं. भरतपुर के रारह के निकट गांव सहनावली निवासी साहबसिंह की साइकिल बुधवार रात बरामदे से गायब हो गई. साहब सिंह ने साइकिल बहुत खोजी लेकिन नहीं मिली. अगली सुबह बरामदे में झाड़ू लगाते हुए समय कागज का एक छोटा सा टुकड़ा मिला.
चिट्ठी पढ़ते ही साइकिल मालिक की आंखों में आंसू आ गए
यह कागज का टुकड़ा मोहम्मद इकबाल की चिट्ठी थी उसने अपना दर्द बयां किया था. इस चिट्ठी को पढ़कर साहबसिंह की आँखें भर आईं. उसने कहा कि उसे साइकिल चोरी हो जाने पर बहुत आक्रोश और चिंता थी लेकिन इस चिट्ठी को पढ़कर मेरा गुस्सा अब संतोष में बदल गया है. मेरे मन में साइकिल ले जाने वाले मोहम्मद इकबाल के प्रति कोई द्वेष नहीं है बल्कि यह साइकिल सही मायने में किसी के दर्द के दरिया को पार करने में काम आ रही है. इस भावना से उसका मन प्रफुल्लित हो गया है. साहबसिंह ने कहा कि मजबूर और मजलूम मोहम्मद इकबाल ने बेबसी में आकर ऐसा काम किया. अन्यथा बरामदे में और भी कई कीमती चीजें पड़ी थी पर उसने उन्हें हाथ नहीं लगाया.
बरेली का है मोहम्मद इकबाल
मोहम्मद इकबाल कहां से आया था, क्या करता था और उसके साथ और कौन था इस विषय में कहीं कोई सूचना नहीं मिल सकी है. उसे बरेली में कहां जाना था इस बारे में भी कुछ पता नहीं चल सका है. इस बात की पूरी संभावना है कि वह राजस्थान और गुजरात के उन हजारों प्रवासी मजदूरों में से ही एक था जो इन दिनों अपने गांव, शहर और घर पहुंचने की जद्दोजहद में चलते जा रहे हैं. इन प्रवासी मजदूरों में अधिकांश ऐसे हैं जिनके पास कोई साधन नहीं हैं. बस यही प्रार्थना है कि मोहम्मद इकबाल अपने बच्चे के साथ अपनी मंजिल तक पहुंच सके.
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