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Gangaur 2023 : यह है सबसे कीमती गणगौर, हथियारबंद पुलिसकर्मी करते हैं इसकी सुरक्षा

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बीकानेर

बीकानेर ढ़ढो के चौक स्थित चांदमल ढढ़ो की गवर

यह गणगौर सिर से लेकर पांव तक सोने- चांदी और हीरे मोती पहनी होती है. इस गणगौर की सुरक्षा के लिए दो दिन तक हथियारबंद पु ...अधिक पढ़ें

रिपोर्ट- निखिल स्वामी

बीकानेर. यूं तो राजस्थान में कई गणगौर हैं और उनको लेकर मान्यता भी अलग-अलग होती है. इनमें से एक ऐसी गणगौर है जो दुनिया में सबसे महंगी गणगौर है. यह गणगौर साल में सिर्फ दो दिन बाहर निकलती है और इस गणगौर के दर्शन करने के लिए देश- विदेशों और ढढ़ा परिवार के वंशज से भी आते है. हम बात कर रहे है बीकानेर ढढ़ों के चौक स्थित चांदमल ढढ़ों की गवर की.

इस गणगौर की खासियत है कि यह गणगौर सिर से लेकर पांव तक सोने- चांदी और हीरे मोती पहनी होती है. इस गणगौर की सुरक्षा के लिए दो दिन तक हथियारबंद पुलिसकर्मी पूरे 24 घंटे तक तैनात रहते है. इस गणगौर के पास एक सुरक्षा घेरा होता है जो हर समय इसकी सुरक्षा करते है. इस गणगौर को किसी को भी छूने तक नही दिया जाता है. महिलाओं में इस गणगौर को लेकर खासा आकर्षण का केंद्र बनी रहती है. दो दिन लगने वाले इस मेले में महिलाएं इस गवार के साथ सेल्फी भी लेती है.

ढढ़ा परिवार के वंशज राजेंद्र ढ़ढा ने बताया कि यह गवर 150 साल पुरानी है. वे बताते है इस गवर के पांव और अंगुलिया किसी भी दूसरी गवर में नहीं है. राजेंद्र ने बताया कि इस गणगौर के दर्शन करने के बाद पुत्र की मनोकमाना पूरी होती है. उन्होंने बताया कि यहां महिलाएंपुत्र कामना की मनोकामना को पूरा करने वाली चांदमल ढ़ढ़ा की गणगौर के आगे समूह में नृत्य करती नजर आती हैं. माता गवरजा के साथ पुत्र रूपी भाई अभी बैठे नजर आते हैं जो देखने में किसी सेठ साहूकार जैसे नजर आते हैं. माता गणगौर को देखने के लिए आने वाले लोग भी इनके आभूषणों को देखकर दंग रह जाते हैं. नाक में नथ, हाथ में सोने के कंगन, पायल, सिर पर टीका, कानों में झूमके, नौलखा हार, हीरों से जड़ित अंगूठियां सहित कई आभूषण पहनी होती है.

मेले के बाद बैंक में जमा होते है गहने

राजेंद्र ने बताया कि यहां दोदिन के मेले के बाद फिर से माता गणगौर को कड़ी सुरक्षा के बीच वापस घर में ले जाया जाता है और इनके गहनों को बैंक में लॉकर में जमा कर दिया जाता है.

यह है पुरानी मान्यता

बीकानेर के देशनाेक के सेठ साहूकार उदयमल कोई पुत्र संतान नहीं थी और उस समय उदयमल ने अपनी पत्नी के साथ पुत्र प्राप्ति की कामना को लेकर राजपरिवार की गणगौर का पूजन किया. एक साल बाद जब उदयमल की पत्नी को पुत्र प्राप्ति हुई तो उसने उसका नाम चांदमल रखा. बाद में उदयमल और उनकी पत्नी ने आम लोगों को भी गणगौर पूजा का अवसर देने के साथ ही सार्वजनिक रूप से गणगौर का पूजन शुरू करवाया. क्योंकि आम आदमी उस समय तक गणगौर पूजा अपने घर पर उस राजसी ठाठ के साथ नहीं कर सकता था. यही गणगौर पूजन तब से चांदमल के नाम से प्रसिद्ध हो गया और वह गणगौर चांदमल ढड्ढा की गणगौर कहलाई. तब से शुरू हुई 150 साल पहले की परंपरा आज भी कायम है. उस वक्त गणगौर को पहनाए गए सोने जवाहरात आज भी पहनाए जाते हैं, जो कि आज करोड़ों रुपये के है.

Tags: Bikaner news, Rajasthan news

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