रिपोर्ट: नरेश पारीक
चूरू. जीवन में कठिन संघर्ष से ही सफलता का शंखनाद किया जा सकता है. कुछ ऐसी ही कहानी है चूरू के एक छोटे से गांव के निवासी व वर्तमान में जनसंपर्क सहायक निदेशक कुमार अजय की. कुमार अजय के संघर्ष की कहानी आपको फिल्मी लग सकती है. लेकिन, उनका संघर्ष आज उनकी सफलता की कहानी खुद बया करता है. एक चाय की टपरी से चपरासी और आज सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत कुमार अजय आज उन युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं जो अपनी असफलताओं से हताश और निराश होकर प्रयास करना ही छोड़ देते है.
कुमार अजय कहते हैं, जीवन में संघर्ष को देखकर अपने हाथ पीछे कर लें तो हम लक्ष्य तक कभी नहीं पहुंच सकते. कठिन परिस्थितियों में विवेकपूर्ण निर्णयों के साथ ही सफलता संभव है. संघर्ष का दौर जब समाप्त होता है, उसके बाद से ही सफलता का युग आरंभ होता है. हमारे भीतर सफलता प्राप्त करने के लिए उत्कट भाव पैदा करता है. यह हमें कठिन परिश्रम के लिए प्रेरित करता है. संघर्ष को स्वीकार कर ही सफलता के मार्ग पर अग्रसर हुआ जा सकता है. जीवन में अनेक बाधाएं आती हैं, परंतु यदि हमारे मन में दृढ़ इच्छाशक्ति हो, अपने कार्य के प्रति लगन हो तो हम बाधाओं के बीच से भी सफलता का मार्ग ढूंढ ही लेते हैं. हमारे संघर्ष की गाथा के निर्णायक हम स्वयं हैं.
पिता के साथ बचपन में बेची चाय
कुमार अजय बताते हैं कि उनके पिता की गांव के बस स्टैंड पर चाय की टपरी थी, जहां स्कूल से आने के बाद वह अपने पिता का हाथ बटाते थे. गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले कुमार अजय शुरू से ही होनहार थे, लेकिन घर की आर्थिक परिस्थितियां ऐसी नहीं थी कि वह आगे पढ़ सकें. कुमार अजय 11वीं की पढ़ाई के बाद काम की तलाश में जयपुर चले गए, जहां उन्हें 700 रुपए महीना पगार में मेडिकल स्टोर पर जॉब मिली लेकिन कुछ महीनों बाद ये लगने लगा ये नाकाफी है तो उन्होंने और जॉब के प्रयास किए. काफी तलाश के बाद उन्हें एक फैक्ट्री में चपरासी की जॉब मिली. लेकिन उन्होंने इस जॉब के साथ साथ में अपनी प्राइवेट पढ़ाई जारी रखी और ग्रेजुएशन कम्प्लीट कर लिया.
यूनिवर्सिटी में जीता गोल्ड मेडल
इन्हीं दिनों बीमारी के चलते उन्हें गांव आना पड़ा और जॉब छूटी तो गांव के ही एक निजी स्कूल में ही उन्होंने टीचर के रूप में काम किया. मन में जिज्ञासा और कुछ कर गुजरने की तमन्ना ने उन्हें यही तक सीमित नहीं रहने दिया. एमए हिंदी,एमए राजस्थानी, यूनिवर्सिटी गोल्ड मेडलिस्ट कुमार अजय ने एमजेएमसी किया और एक समाचार पत्र के लिए काम शुरू किया.बीएड करने के बाद उन्हें पहली सफलता मिली और सरकारी अध्यापक के पद पर उनका चयन हुआ. कुछ महीने सरकारी अध्यापक की नौकरी के बाद उनका APRO के पद पर चयन हुआ, जिसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. APRO से PRO बने और आज सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत हैं.
प्रेम और प्रतिरोध के कवि
एक अधिकारी होने के साथ-साथ कुमार अजय एक बहुुत अच्छे साहित्यकार भी हैं. बचपन से ही लिखने-पढ़ने में उनकी रूचि रही और उन्होंने इस रूचि को बेहतर ढंग से विकसित किया. प्रेम और प्रतिरोध के कवि माने जाने वाले कुमार अजय की राजस्थानी कविता पुस्तक ‘संजीवणी’ साहित्य अकादेमी नई दिल्ली से प्रकाशित हुई और उसे अकादेमी का वर्ष 2013 का युवा पुरस्कार प्राप्त हुआ. उसके बाद राजस्थानी कहानी संग्रह ‘किणी रै कीं नीं हुयौ’, राजस्थानी कविता संग्रह ‘ऊभौ हूं अजै’, राजस्थानी कहानी संग्रह ‘किणी रै कीं नीं हुयौ’, हिंदी कविता संग्रह ‘कहना ही है तो कहो’, हिंदी डायरी ‘मैं चाहूं तो मुस्करा सकता हूं’ पुस्तकें लिखीं. हाल ही में प्रकाशित राजस्थानी कविता संग्रह ‘रिंकी टेलर’ राजस्थानी साहित्य जगत में बहुत चर्चाओं में हैं.
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