रिपोर्ट: दयाशंकर शर्मा
धौलपुर. दिव्यांगों को मिलने वाली सरकारी योजनाओं सुविधाओं का सच दिखाती ये कहानी धौलपुर की है. शहर का एक 22 वर्षीय दिव्यांग युवक अब तक दिव्यांगों को मिलने वाली सभी प्रकार की सुविधाओं से महरूम है. 99 फीसदी दिव्यांग ये युवक अब केवल अपने परिवालों के भरोसे ही है.
धौलपुर शहर के सिटी कोतवाली स्कूल के पीछे स्थित मदीना कॉलोनी के अंकित बिना सहारे के न तो चल सकते हैं और न ही उठ-बैठ सकते हैं. इसी परेशानी की वजह से उन्हें न चाहते हुए भी स्कूल छोड़ना पड़ा. हांलाकि, अंकित अब भी पढ़ना चाहते हैं. लेकिन, उन्हें आगे की पढ़ाई करने के लिए सरकारी सहयोग की जरूरत है.
मुंह में पैन लगाकर लिखते हैं अंकित
अंकित की मां शकुंतला ने बताया कि उनका बेटा जन्म से ही विकलांग है. छोटा था तो उसे स्कूल लाने ले जाने का काम मैं कर लेती थी. लेकिन, अब मेरी भी उम्र हो चुकी है. ऐसे में उसे स्कूल लाना ले जाना संभव नहीं है. करीब 1 साल पहले दसवीं की परीक्षा का परीक्षा केंद्र दूर था. वहां तक अंकित को ले जाना संभव नहीं था. ऐसे में अंकित को बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़नी पड़ी.
अंकित मुंह में पेन लगाकर लिखता है. मुंह से ही मोबाइल चलाता है. अंकित टीवी के रिमोट को भी ऑपरेट कर लेता है. अंकित के पिता मुरारीलाल जाटव पटवारी थे, जिनका निधन करीब दस वर्ष पूर्व हो गया था. अब परिवार उनकी पेंशन के सहारे ही गुजर-बसर कर रहा है.
बहन कोमल करती है अंकित की देखभाल
अपने तीन भाइयों में अंकित सबसे छोटा है. बड़ी बहन कोमल अंकित की देखरेख करती है. उसे
खाना खिलाने, नहलाने व कपड़े पहनाने व बाहर ले जाने का काम भी कोमल ही करती है. कोमल ने बताया कि अंकित को न तो सरकार की ओर से पेंशन मिलती है, न ही ट्राय साइकिल या व्हीलचेयर. अंकित के परिजनों से प्रशान व सरकार से मदद की गुहार लगाई है.
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