रिपोर्ट-जुगल कलाल
डूंगरपुर. आदिवासी घरों में मुर्गी पालन उनकी संस्कृति का हिस्सा है. आदिवासी महिलाएं भी मुर्ग़ी पालना और अंडा उत्पादन की बारीकियों से भली-भांति परिचित हैं, जिसका फायदा इस समय उन्हें मिल रहा है. डूंगरपुर में प्रदेश की एकमात्र पोल्ट्री हेचरी है. जिसे यहां की आदिवासी महिलाएं चलाती हैं. 12 आदिवासी मिलकर इस हेचरी को संभालती हैं. ये महिलाएं हेचरी में उत्पादन से लेकर हेचरी का लेखा-जोखा खुद ही संभालती हैं.
15 हज़ार चूजे निकालने की क्षमता
डूंगरपुर के आसपुर ब्लॉक में राजिविका की तरफ़ से हेचरी स्थापित की गई. ये हेचरी राजस्थान की पहली ऐसी हेचरी है, जिसे महिलाएं संचालित करती हैं. 15 हज़ार चूजे हर महीने निकालने की हेचरी में क्षमता है. वहीं, आसपास के क्षेत्र में कोई भी सरकारी हेचरी नहीं है, जिससे यहां से निकलने वाले चूजों को आसपास के बांसवाडा, उदयपुर, चित्तोडगढ, प्रतापगढ़ एंव राजसमन्द जिलों तक पहुंचाया जाता है.
हेचरी से जुड़ी कमला देवी ने बताया कि हेचरी में 12 महिला उनके साथ काम कर रहीं हैं. सभी महिला मिलकर हेचरी संभालती हैं और हेचरी में उत्पादन, बाहर से अंडे मंगवाना, चूजे बेचने से लेकर लेखा जोखा सब कुछ महिला संभालती हैं. हेचरी में कड़क नाथ, गिरिराजा, प्रतापधन और देशी नस्ल के चूज़े निकाले जाते हैं.
राजीविका के आसपुर ब्लॉक के बीपीएम गरीश लबाना ने बताया कि अंडों से चूजों को निकलने में लगभग 18 दिन लगते हैं. अंडे के अंदर शुरुआत में पीले रंग की जर्दी लिक्विड में मौजूद होती है, जो कुछ दिनों में धीरे-धीरे लाल रंग में बदलते जाती है. यही जर्दी आगे जाकर चूजे का रूप लेती है और फिर 18 वें दिन अंडे के अंदर से चूजे बाहर निकलते हैं. पहले दिन से 18वें दिन तक इस पूरी प्रक्रिया को पूरा कर चूजा बाहर निकलता है, जो आगे जाकर मुर्गा या मुर्गी बन जाता है.
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