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Unique Temple: ऐसा मंदिर जहां मुराद पूरी होने पर चढ़ाए जाते हैं बकरे-मुर्गे, बलि के बाद भी रहते हैं जिंदा

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आधे शरीर वाली शीतला माता की मूर्ति .

मंदिर को लेकर कहा जाता है कि गुजरात के पावागढ़ से शीतला माता की मूर्ति प्रकट हुई थी. वहीं, शीतला माता मूर्ति में उनका स ...अधिक पढ़ें

रिपोर्ट – जुगल कलाल

डूंगरपुर. आमतौर आपने देखा होगा कि मन्नत पूरी होने पर बकरे या मुर्गे की बली दी जाती है. लेकिन, डूंगरपुर का शीतला माता मंदिर ऐसा मंदिर जहां मन्नत पूरी होने पर बकरे या मुर्गी की बली नहीं, बल्कि उन्हें मंदिर लाकर छोड़ दिया जाता है और उसे नया जीवनदान दिया जाता है. मंदिर में उनके रहने के लिए बाड़ा भी बना हुआ है. जहां मंदिर में आ रहें श्रद्धालु बकरी और मुर्गे के दाने पानी की व्यवस्था भी करते हैं. वहीं, शीतला माता मंदिर की एक ओर विशेषता है कि मंदिर में रखी शीतला माता की मूर्ति का शरीर आधा है. इस मंदिर में गुजरात और राजस्थान के श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं.

कान पर कट लगाकर छोड़ा जाता है मंदिर परिसर में

डूंगरपुर मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर गलियागोट में बसा शीतला माता का मंदिर लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ हैं. इस मंदिर को लेकर लोगों का मानना है कि यहां शीतला माता से मांगी हर मुराद पूरी होती है. मुराद पूरी होने पर यहां बकरा या मुर्गी चढ़ाते हैं. मगर यहां पर ना बकरे और ना ही मुर्गी की बली दी जाती है. बल्कि इनको नया जीवन दान दिया जाता है. मान्यता के अनुसार, सिर्फ़ बकरे और मुर्गी के कान को चाकू से हल्का काटा जाता है. बाद में उन बकरों और मुर्गियों को मंदिर परिसर छोड़ दिया जाता है. बकरे और मुर्गियों रखने के लिए मंदिर परिसर में एक बाड़ा बनाया गया है. वहीं, मंदिर में आने वाले श्रदालु इनको दान पानी डालते रहते हैं.

आधे शरीर वाली शीतला माता की मूर्ति

मंदिर को लेकर कहा जाता है कि, गुजरात के पावागढ़ से शीतला माता की मूर्ति प्रकट हुई थी. वहीं, शीतला माता मूर्ति में उनका सिर्फ आधा शरीर है. यानी उनके गर्दन से पेट तक उनकी मूर्ति है. बाकी बचा शरीर नहीं है. मंदिर के अंदर 5 माताओं की मूर्ती विराजमान है. मंदिर में शीतला माता, मोती जरा, ओरी माता, अचा बड़ा और खासी माता की मूर्ती है. मंगलवार, शुक्रवार और शनिवार को भक्तों की भीड़ अधिक रहती है. शीतला माता मंदिर में गुजरात से काफी श्रदालु आते हैं, लेकिन वागड़ा के लोग इस मंदिर को शीतला माता मंदिर के नाम से जानते हैं. वहीं, गुजराती लोगों बलिया देव के रूप में जानते हैं.

नोट – ये तथ्य विश्वास, मान्यता पर आधारित हैं, न्यूज़18 इनकी पुष्टि या समर्थन नहीं करता है.

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