जोधपुर. देश का हर पेरेंट्स अपने बच्चे को आईआईटी भेजने के सपने देखता है. आईआईटी के बाद अगर अमेरिका में नौकरी करने चला जाए तो सोने पर सुहागा. कई लोगों ने लिए भले ही यह सपना हो सकता है. लेकिन मध्यप्रदेश का एक ऐसा कपल है जो आईआईटी टॉपर के साथ अमेरिका में करोड़ों के पैकेज की जॉब कर चुका है. अब यह कपल अपने देश वापस लौट आया है. पति-पत्नि दोनों मिलकर पर्मा कल्चर फार्मिंग कर रहे हैं. कल्चर फार्मिंग तकनीकि के जरिए अब यह कपल फल, सब्जियां, दालें और अनाज उगा रहा है.
बता दें कि उज्जैन के बड़नगर में रहने वाले वाले अर्पित माहेश्वरी अपनी पत्नी साक्षी माहेश्वरी के साथ अमेरिका से मिले डेढ़ करोड़ के पैकेज की जॉब छोड़ उज्जैन में डेढ़ एकड़ जमीन खरीदकर कर पर्मा कल्चर फार्मिंग कर रहे हैं. राजस्थान के जोधपुर में रहने वाले अर्पित माहेश्वरी बताते हैं कि IIT मुंबई से कम्प्यूटर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया. प्रारम्भिक परीक्षा में ऑल इंडिया में सेकंड रैंक थी.
ओलंपियाड में पत्नी से हुई थी मुलाकात
मुंबई में फिजिक्स ओलंपियाड 2007 में साक्षी से मुलाकात हुई थी. इस ओलंपियाड में दोनों को गोल्ड मेडल मिला था. साक्षी ने IIT दिल्ली से ग्रेजुएशन किया है. साल 2013 में हमारी शादी हुई. दोनों ने बेंगलुरु में जॉब की और फिर अमेरिका चले गए. अर्पित ने बताया कि हम 2016 में दक्षिण अमेरिका की यात्रा पर गए थे. इस दौरान हमने दुनिया के सबसे खूबसूरत जंगलों, द्वीपों और पहाड़ों पर देखा कि विकास और आधुनिकीकरण के नाम पर प्रकृति को समाप्त किया जा रहा है. इस सोच ने हमें अंदर से झकझोर कर रख दिया. उसी समय तय कर लिया कि हमें अपना बाकी जीवन प्रकृति के साथ तालमेल बैठाने के बेहतर तरीके की तलाश में बिताना है.
हम समझ नहीं पा रहे थे क्या करेंगे और कैसे होगा. लेकिन इतना तय हो गया था कि कुछ अलग करने की जरूरत है. करोड़ों के पैकेज को छोड़कर जहां पैसे और स्टेटस से ज्यादा जरूरी रहेगा हमारा स्वास्थ्य और खुशी. इसके बाद हमने नौकरी छोड़कर प्रकृति से जुड़ने के लिए स्थाई खेती करने का फैसला कर लिया. वहां से लौटे तो उज्जैन जिले के बड़नगर कस्बे में डेढ़ एकड़ जमीन खरीदकर खेती शुरू कर दी.
खास मॉडल कर रहे तैयार
अर्पित और साक्षी ने बताया कि अभी हम स्थाई खेती (पर्मा कल्चर) का मॉडल तैयार करने में जुटे हैं. पर्मा कल्चर कॉन्सेप्ट में हम बायो डायवर्सिटी सिस्टम के मुताबिक खेती कर रहे हैं. हमने डेढ़ एकड़ जमीन पर 75 प्रकार के पौधे लगाए हैं. इनमें आधे फलदार हैं, केला, पपीता, अमरूद, सीताफल, अनार, संतरा, करोंदा, पालसा, गूंदा, शहतूत जैसे. एक फलदार पौधे के साथ चार जंगली पौधे सपोर्ट ट्री के तौर पर लगाए हैं, जो जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं. हम दोनों पति-पत्नी ने 5 साल पहले तक कभी खेत में पांव नहीं रखा था. हम तीन घंटे की ऑनलाइन जॉब करते हैं, उससे आर्थिक जरूरतें पूरी होती हैं, बाकी समय खेती को दे रहे हैं.
करंज का पेड़ करेगा कमाल
बड़नगर में काली मिट्टी होने से करंज के पेड़ का लगाए हैं. करंज हवा से नाइट्रोजन खींचकर जमीन में ट्रांसफर करता है. करंज के पत्तों से बने काढ़े से पत्तों में कीड़े लगने पर छिड़काव किया जाता है. बायोमास के तौर पर करंज की टहनियों को काट-काट कर फलदार पौधों के पास बिछा देते हैं. यह पत्तियां जमीन में खाद का काम करती हैं. ऐसे जैव विविधता के आधार पर खेती के स्थाई सिस्टम का मॉडल बनाकर दुनिया के सामने पेश करना चाहते हैं. पर्माकल्चर नाम से एक सोच और तकनीक है, जो ऑस्ट्रेलिया से विश्व भर में फैली है. इसमें जमीन को एक ऐसे तरीके से विकसित किया जाता है कि निरंतर जमीन उपजाऊ बनी रहे और बंजर न बने. हमारे एग्रो टूरिज्म को देखने दिल्ली, मुंबई, गोवा, मणिपुर से लेकर विदेशों के लोग भी आ रहे हैं.
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