RJS Exam 2018 Results: राजस्थान में इन मुस्लिम बेटियाें की कामयाबी के चर्चे
News18 Rajasthan Updated: November 21, 2019, 9:14 AM IST

चूरू से सना पुत्री हकीम खान ने 130वीं रैंक हासिल की है.
राज्य न्यायिक सेवा (RJS 2018 Results) में 5 मुस्लिम बेटियों का चयन हुआ है. मुस्लिम समुदाय (Muslim Community) के सोशल मीडिया समूहों (Social Media Groups) में इनकी कामयाबी के चर्चे हैं.
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- Last Updated: November 21, 2019, 9:14 AM IST
श्रीपाल शक्तावत
जयपुर. शिक्षा के लिहाज से पिछड़े माने जाने वाले मुस्लिम समुदाय में बेटियां (Muslim Girls) उम्मीद की किरण बनकर उभर रही हैं. इसकी ताजा मिसाल बनी हैं, राज्य न्यायिक सेवा (RJS 2018 Results) में चयनित 5 मुस्लिम युवतियां. नतीजा यह है कि मुस्लिम समुदाय (Muslim Community) के सोशल मीडिया समूहों (Social Media Groups) में इनकी कामयाबी के चर्चे हैं और तुलना कर यह भी बताया गया है कि एक के मुकाबले पांच का यह आंकड़ा समाज को अशिक्षा के अंधियारे से बाहर निकालने में बड़ा रोल अदा करेगा. एक यानी एक मुस्लिम युवक का चयन और पांच यानी पांच मुस्लिम बेटियों का राजस्थान की इस प्रतिष्ठित परीक्षा के लिया चयन हुआ. अक्सर इस तरह की कामयाबी और समाज की कमियों को अपने लोगों के बीच ले जाने वाले शेखावाटी के सामाजिक कार्यकर्ता अशफाक कायमखानी इसे नई शुरुआत बताते हैं. वो कहते हैं, 'ये कामयाबी इसलिए अहम है क्योंकि पांच बेटियों ने अपनी मेहनत और शिक्षा के बूते कामयाबी का आसमान छूने में सफलता हासिल की है.'
पुराने आंकड़ों पर गौर करते हुए अशफाक थोड़ा हताश नजर आते हैं. कहते हैं कि '2001 के मुकाबले ये कामयाबी कमतर है. उस वक्त कुल 97 आरजेएस में से छह मुस्लिम समुदाय के थे, जबकि इस बार कुल 197 में छह का चयन हुआ है.' लेकिन अगले ही क्षण वह इस बात पर संतोष जताते हैं कि, 'इस कामयाबी में बड़ा हिस्सा बेटियों के पास है और बेटियां न्याय के क्षेत्र में आगे बढ़ेगी तो समाज में शिक्षा के प्रति एक नई ललक जगेगी.'
राजस्थान में यूं तो इस बार बेटियों ने न्यायिक सेवा की इस परीक्षा में जमकर परचम फहराया है लेकिन मुस्लिम बेटियों द्वारा हासिल की गई यह कामयाबी बड़ी इसलिए है क्योंकि ये समुदाय शिक्षा के लिहाज से सत्तर साल बाद भी दूसरों की तुलना में काफी पिछड़ा हुआ है. 30वीं रैंक पर आईं सानिया मनिहार की कामयाबी तो इसलिए भी अहम है क्योंकि मनिहार समुदाय में सानिया के जरिए पहली बार कोई प्रशासनिक अधिकारी के ओहदे तक पहुंचा है.मोहम्मद हसन गौरी के यहां जन्मी जोधपुर की बेटी और झुंझुनूं की बहू सोनिया के अलावा इस बार साजिदा पुत्री अब्दुल शाहिद ने 37वीं रैंक, सना पुत्री हकीम खान ने 130वीं रैंक, हुमा खोहरी पुत्री फिरोज खान ने 136वीं रैंक, शहनाज खान लोहार पुत्री सलीम खान ने 143वीं रैंक हासिल कर सफलता हासिल की है. जबकि अल्पशिक्षित समुदाय के फैसल पुत्र याकूब खान 107वीं रैंक हासिल कर आरजेएस बनने वाले अकेले मुस्लिम युवक हैं.
महिला अधिकारों के लिए बीते तीन दशक से काम कर रही निशात हुसैन इस कामयाबी को कुछ अलग नजरिये से देख रही हैं. नेशनल मुस्लिम वुमेन वेलफेयर सोसायटी की संस्थापक अध्यक्ष निशात हुसैन कहती हैं, 'तीस साल से मैं बेटियों में एक ही तड़प देख रही हूं. और यह तड़फ है अशिक्षा और कुरीतियों से बाहर निकल कुछ हासिल करने की. ये बेटियां उस समुदाय से हैं जिन्हें मौका नहीं मिलता. मौका मिलते ही वह आसमान छूती हैं, उड़ान भरती हैं और स्पष्ट करती हैं कि वह कैद में नहीं रहना चाहती.'
अपनी बात को मजबूती देते हुए निशात कहती हैं, 'इल्म हम सबकी जरूरत है. अफ़सोस कि उसकी जरूरत को हम आज भी पूरी तरह नहीं समझ पा रहे, जबकि कुरआन की पहली आयत में ही इल्म हासिल करने पर खास तवज्जोह दी गयी है.'
मुस्लिम समुदाय में शैक्षणिक/आर्थिक/सामाजिक परिस्थितियां कितनी गंभीर हैं, इसका खुलासा जस्टिस सच्चर कमिटी ने भी 2006 में उस वक्त किया था, जब प्रधानमंत्री कार्यालय को सौंपी गयी रिपोर्ट में देश के हर हिस्से का अध्ययन कर हालात को रेखांकित किया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक, शिक्षा के लिहाज से दक्षिणी राज्यों में भले ही मुस्लिम समुदाय की अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति थी, देश के उत्तरी राज्यों में हालात बेहद बुरे थे.
गौरतलब है कि राजस्थान में आबादी के लिहाज से अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी कुल आबादी का नौवां हिस्सा है. जाहिर है आबादी के लिहाज से चयनित अभ्यर्थियों में से इक्कीस अभ्यार्थी इस वर्ग के हो तो बात बने. लेकिन मुस्लिम समुदाय इस कामयाबी पर जश्न इसलिए मना रहा है क्योंकि बेटियां कामयाबी की राह बता रही हैं और सानिया मनिहार समाज की पहली अधिकारी बन दूसरों के लिए प्रेरक बन रही है.
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जयपुर. शिक्षा के लिहाज से पिछड़े माने जाने वाले मुस्लिम समुदाय में बेटियां (Muslim Girls) उम्मीद की किरण बनकर उभर रही हैं. इसकी ताजा मिसाल बनी हैं, राज्य न्यायिक सेवा (RJS 2018 Results) में चयनित 5 मुस्लिम युवतियां. नतीजा यह है कि मुस्लिम समुदाय (Muslim Community) के सोशल मीडिया समूहों (Social Media Groups) में इनकी कामयाबी के चर्चे हैं और तुलना कर यह भी बताया गया है कि एक के मुकाबले पांच का यह आंकड़ा समाज को अशिक्षा के अंधियारे से बाहर निकालने में बड़ा रोल अदा करेगा. एक यानी एक मुस्लिम युवक का चयन और पांच यानी पांच मुस्लिम बेटियों का राजस्थान की इस प्रतिष्ठित परीक्षा के लिया चयन हुआ. अक्सर इस तरह की कामयाबी और समाज की कमियों को अपने लोगों के बीच ले जाने वाले शेखावाटी के सामाजिक कार्यकर्ता अशफाक कायमखानी इसे नई शुरुआत बताते हैं. वो कहते हैं, 'ये कामयाबी इसलिए अहम है क्योंकि पांच बेटियों ने अपनी मेहनत और शिक्षा के बूते कामयाबी का आसमान छूने में सफलता हासिल की है.'
पुराने आंकड़ों पर गौर करते हुए अशफाक थोड़ा हताश नजर आते हैं. कहते हैं कि '2001 के मुकाबले ये कामयाबी कमतर है. उस वक्त कुल 97 आरजेएस में से छह मुस्लिम समुदाय के थे, जबकि इस बार कुल 197 में छह का चयन हुआ है.' लेकिन अगले ही क्षण वह इस बात पर संतोष जताते हैं कि, 'इस कामयाबी में बड़ा हिस्सा बेटियों के पास है और बेटियां न्याय के क्षेत्र में आगे बढ़ेगी तो समाज में शिक्षा के प्रति एक नई ललक जगेगी.'
राजस्थान में यूं तो इस बार बेटियों ने न्यायिक सेवा की इस परीक्षा में जमकर परचम फहराया है लेकिन मुस्लिम बेटियों द्वारा हासिल की गई यह कामयाबी बड़ी इसलिए है क्योंकि ये समुदाय शिक्षा के लिहाज से सत्तर साल बाद भी दूसरों की तुलना में काफी पिछड़ा हुआ है. 30वीं रैंक पर आईं सानिया मनिहार की कामयाबी तो इसलिए भी अहम है क्योंकि मनिहार समुदाय में सानिया के जरिए पहली बार कोई प्रशासनिक अधिकारी के ओहदे तक पहुंचा है.मोहम्मद हसन गौरी के यहां जन्मी जोधपुर की बेटी और झुंझुनूं की बहू सोनिया के अलावा इस बार साजिदा पुत्री अब्दुल शाहिद ने 37वीं रैंक, सना पुत्री हकीम खान ने 130वीं रैंक, हुमा खोहरी पुत्री फिरोज खान ने 136वीं रैंक, शहनाज खान लोहार पुत्री सलीम खान ने 143वीं रैंक हासिल कर सफलता हासिल की है. जबकि अल्पशिक्षित समुदाय के फैसल पुत्र याकूब खान 107वीं रैंक हासिल कर आरजेएस बनने वाले अकेले मुस्लिम युवक हैं.
महिला अधिकारों के लिए बीते तीन दशक से काम कर रही निशात हुसैन इस कामयाबी को कुछ अलग नजरिये से देख रही हैं. नेशनल मुस्लिम वुमेन वेलफेयर सोसायटी की संस्थापक अध्यक्ष निशात हुसैन कहती हैं, 'तीस साल से मैं बेटियों में एक ही तड़प देख रही हूं. और यह तड़फ है अशिक्षा और कुरीतियों से बाहर निकल कुछ हासिल करने की. ये बेटियां उस समुदाय से हैं जिन्हें मौका नहीं मिलता. मौका मिलते ही वह आसमान छूती हैं, उड़ान भरती हैं और स्पष्ट करती हैं कि वह कैद में नहीं रहना चाहती.'
जयपुर में हुए कौमी फसाद के बाद से महिलाओं में बतौर सामाजिक कार्यकर्त्ता सक्रिय निशात हुसैन इस कामयाबी को मजहब के दायरों में बांधकर देखने के पक्ष में नहीं. वो कहती हैं, हर मजहब की बेटियां मौका मिले तो बेटों से आगे निकल सकती हैं. उन्हें तवज्जोह मिलेगी तो कट्टरता ख़त्म होगी.
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मुस्लिम समुदाय में शैक्षणिक/आर्थिक/सामाजिक परिस्थितियां कितनी गंभीर हैं, इसका खुलासा जस्टिस सच्चर कमिटी ने भी 2006 में उस वक्त किया था, जब प्रधानमंत्री कार्यालय को सौंपी गयी रिपोर्ट में देश के हर हिस्से का अध्ययन कर हालात को रेखांकित किया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक, शिक्षा के लिहाज से दक्षिणी राज्यों में भले ही मुस्लिम समुदाय की अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति थी, देश के उत्तरी राज्यों में हालात बेहद बुरे थे.
जमात-ए-इस्लामी-हिन्द के राष्ट्रीय सचिव सलीम इंजिनियर उस रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहते हैं, 'इल्म मिले तो हर मर्ज का इलाज संभव है. बेटियां तालीम में आगे निकलती हैं तो पूरा समाज आगे निकलता है. और वही बेटियां न्याय का हिस्सा बने तो इससे बेहतर कुछ भी नहीं.
गौरतलब है कि राजस्थान में आबादी के लिहाज से अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी कुल आबादी का नौवां हिस्सा है. जाहिर है आबादी के लिहाज से चयनित अभ्यर्थियों में से इक्कीस अभ्यार्थी इस वर्ग के हो तो बात बने. लेकिन मुस्लिम समुदाय इस कामयाबी पर जश्न इसलिए मना रहा है क्योंकि बेटियां कामयाबी की राह बता रही हैं और सानिया मनिहार समाज की पहली अधिकारी बन दूसरों के लिए प्रेरक बन रही है.
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First published: November 20, 2019, 6:42 PM IST
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