Jaipur News: चार साल की सफलता-असफलता के परस्पर विरोधी दावे?
जयपुर. राजस्थान में गहलोत सरकार (Gehlot Government) बनने के बाद पिछले 4 साल में विभिन्न कारणों के के चलते 9 उपचुनाव (By Election) हुए हैं. इनमें कांग्रेस को 66 प्रतिशत सफलता मिली है. यानि 9 में से 6 उपचुनावों में कांग्रेस (Congress) का पलड़ा भारी रहा है और बीजेपी (BJP) या अन्य दलों के प्रत्याशियों को पटखनी दी है. इसी के दम पर सीएम अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) बार-बार दावा करते हैं कि राज्य में सरकार विरोधी कोई लहर नहीं है.
राज्य विधानसभा में बजट सत्र चल रहा है. इसकी समाप्ति के बाद सरकार और विपक्षी दल पूरी तरह से इलेक्शन मोड में आ जाएंगे, क्योंकि इसके 6-7 माह बाद ही विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लग जाएगी.
भाजपा सांसद की खाली हुई सीट कांग्रेस ने हथियाई
विधानसभा चुनाव 2018 में खींवसर से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक हनुमान बेनीवाल और मंडावा से बीजेपी के नरेंद्र खींचड़ विधायक बने थे. 2019 में लोकसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल के नागौर और नरेंद्र खींचड़ के झुंझुनू से सांसद चुने जाने के बाद दोनों सीटें खाली हो गईं. इसी साल हुए उपचुनाव में नागौर की खींवसर पीट पर तो आरएलपी कायम रही. उसके उम्मीदवार नारायण बेनीवाल विजयी रहे. लेकिन झुंझुनू जिले की मंडावा सीट बीजेपी के हाथ से निकल गई. उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रीटा चौधरी ने यहां शानदार जीत दर्ज की थी.
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4 सालों में 9 उपचुनाव, कांग्रेस को मिली तवज्जो
राज्य में वर्ष 2018 के बाद कुल नौ उपचुनाव हुए हैं. इन उपचुनावों में कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है. 9 में से 6 उपचुनावों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की है, जबकि बीजेपी महज दो सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी है. धौलपुर से शोभारानी कुशवाह (बीजेपी), राजसमंद से दीप्ति माहेश्वरी (बीजेपी) ने जीत हासिल की. खींवसर के उपचुनाव में आरएलपी के नारायण बेनीवाल ने चुनाव जीता. बाकी उपचुनाव की सभी सीटें कांग्रेस की झोली में गईं. धरियावद से नगराज मीणा (कांग्रेस), वल्लभ नगर से प्रीति शक्तावत (कांग्रेस), सुजानगढ से मनोज मेघवाल (कांग्रेस), सहाड़ा से गायत्री त्रिवेदी (कांग्रेस), मंडावा से रीटा चौधरी (कांग्रेस) और अब सरदार शहर उपचुनाव में कांग्रेस के अनिल शर्मा ने जीत हासिल की.
उपचुनावों में सहानुभूति फैक्टर ऐसे किया था काम
उपचुनाव में सहानुभूति फैक्टर जीत का बड़ा आधार रहा है. खासकर जब उपचुनाव सिटिंग विधायक के आकस्मिक निधन के बाद हो रहा हो. पिछले उपचुनावों की बात करें तो वल्लभनगर से कांग्रेस के दिवंगत विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत की पत्नी प्रीति शक्तावत, सहाड़ा सीट से कांग्रेस के दिवंगत विधायक कैलाश त्रिवेदी की पत्नी गायत्री देवी, सुजानगढ से कांग्रेस के दिवंगत विधायक मास्टर भंवरलाल मेघवाल के पुत्र मनोज मेघवाल को मतदाताओं ने अपना विधायक चुना. इन सभी सीटों पर सहानुभूति वोट और सिम्पैथी फैक्टर हावी रहा. लेकिन जब बीजेपी ने धरियावद से पार्टी विधायक गौतमलाल मीणा के निधन से हुए उपचुनाव में उनके बेटे कन्हैयालाल मीणा का टिकट काटकर खेत सिंह को चुनाव लड़ाया, तो कांग्रेस के पूर्व विधायक नगराज मीणा के हाथों उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. यहां बीजेपी सहानुभूति वोट लेने से चूक गई. लेकिन जब बीजेपी ने राजसमंद से अपनी दिवंगत विधायक किरण माहेश्वरी की बेटी दीप्ति माहेश्वरी को टिकट देकर चुनाव लड़ाया, तो सिम्पैथी वोटों से उनकी जीत हुई.
चार साल की सफलता-असफलता के परस्पर विरोधी दावे
इसी साल विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे मुख्यमंत्री उपचुनावों में कांग्रेस को मिल रही लगातार जीत के उत्साहित हैं. वे दावा करते हैं कि यह बड़ी उपलब्धि है कि चार साल बाद भी राजस्थान की जनता राज्य सरकार के खिलाफ नहीं है. आमतौर पर हर जगह ऐसी स्थिति हो जाती है और लोग गलतियाँ निकालने लगते हैं लेकिन राजस्थान में स्थिति अलग है. राज्य सरकार के लिए इससे बड़ी उपलब्धि कोई नहीं हो सकती है. इसका फायदा आने वाले चुनाव में मिलेगा. दूसरी ओर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां ने प्रदेश की गहलोत सरकार के चार साल को पूरी तरह फेल्योर करार दिया. पूनियां के मुताबिक राजनीतिक इतिहास में आज तक की ऐसी निकम्मी, नकारा, भ्रष्ट सरकार कभी नहीं देखी है. कांग्रेस सरकार जितनी भी योजनाओं का बखान कर रही है, उन सबमें कोई ना कोई खामी है.
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Tags: Ashok Gehlot Government, Assembly by election, Assembly election
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